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भारतीय समाज की पुरानी कमजोरी जातिवाद खत्म करने का आया समय

भारत में जातिवाद एक बड़ी और गहरी समस्या है. अगर पिछली कुछ सौकड़ों साल में भारतीय समाजमें हिंदुत्व की स्थिति खराब होने का सबसे बड़ा कारण है, तो वह जातिवाद और जाति व्यवस्था ही है. यह हिंदू समाज की सबसे बड़ी और प्रमुख कमजोरी के रूप में सामने आती रही है. हाल ही में जिस तरह से भारत की केंद्र सरकार ने देशहित में साहसिक फैसले लिए हैं, उससे स्पष्ट होता है कि देश में जातिवाद खत्म करने का समय आ गया है. इसके लिए राजनैतिक और सामाजिक और व्यक्तिगत हर स्तर पर प्रयास करे होंगे.
दुनिया में दो पौराणिक योद्धाओं के पतन में बहुत खास समानता है. ये योद्धा हैं अकिलीज और दुर्योधन, अकिलीज का जिक्र ग्रीक कथाओं में मिलता है. जब अकिलीज नवजात था, तब एक भविष्यवाणी हुई थी कि वह युवा ही मर जाएगा. इस भविष्यवाणी को गलत साबित करने के लिए अकिलीज की मां थेटिस उसे स्टिक्स नाम की नदी पर ले गई जिसका पानी लोगों को ताकतवर बना देता था. थेटिस ने नवजात अकिलीज को ऐड़ी से पकड़ कर उसी पानी में डुबोया जिससे जादुई पानी ऐड़ी को छू भी ना सका. इसी वजह से वह ऐड़ी ही अकिलीज के विनाश का कारण बनी.

इसी तरह भारतीय पौराणिक महाकाव्य महाभारत में युद्ध से पहले दुर्योधन की मां गांधारी ने उसे अपनी आंखों से देखने की इच्छा जताई. इसके लिए उसने एक अजीब शर्त रखी. वह चाहती थी कि दुर्योधन उनकी आंखों के सामने पूरी तरह से निर्वस्त्र आए. गांधारी ने पति धृतराष्ट्र के अंधे होने पर जीवन भर के लिए अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी. उसे भगवान शिव का वरदान था कि वह आंखों से पट्टी हटाने के बाद जिस किसी को भी सबसे पहले देखेगी उसके शरीर का देखा गया खुला हिस्सा वज्र का हो जाएगा.

दुर्योधन इस बात को नहीं जानता था. वह अपने माता के सामने निर्वस्त्र जाने में संकोच कर गया और उसने पने कमर और जांघों पर पत्ते पहन लिए. इससे जब गांधारी ने उसे देखा तो उसी ढके हिस्से को छोड़कर पूरा शरीर वज्र का हो गया. जब भीम से दुर्योधन का युद्ध हुआ तो भीम ने दुर्योधन की जंघा तोड़ कर उसका अंत किया.

दो संस्कृति. दो महान पौराणिक योद्धा. लेकिन दोनों में एक खास सबक छिपा है. व्यक्ति को अपने कमजोरियों पर काबू पाने के लिए जागरुक, खुला और निर्दयी रूप से ईमानदार होना चाहिए. अगर इन कमजोरियों को बिना सुधारे छोड़ दिया गया तो वे शक्तिशाली का भी अंत कर सकती हैं.

दुनिया का सबसे पुरातन धर्म या हिंदुत्व ने बाहरी आक्रमण और उपनिवेशवाद के बीच खुद को कायम करने में सफलता पाई है. लेकिन उसने भी अपने एक कमजोरी को खुला छोड़ दिया जिससे उसका शोषण हो सके और उसे हिंदुओं को विभाजित करने के उपकरण के तौर पर उपयोग में लाया जा सके.

परंपरावादी कर्म और समुदाय आधार वर्ण व्यवस्था और कठोर ज्नम आधारित जाति व्यवस्था के बीच का अंतर बताते हुए कहते हैं कि अस्पृश्यता और जाति व्यवस्था की कट्टरता को इस्लामिक आक्रमण और अंग्रेज औपनिवेशकों ने इसका पूरा फायदा उठाया. बहुत से लोग यह तर्क भी देते हैं कि भारतीय समाज पूरी तरह से धर्मपरिवर्तन की कुनीतियों का शिकार जातियों के गर्व की वजह से नहीं हुआ.
वर्णों का निर्माण एक जटिल व्यवस्था में कार्यों के प्रकारों के अंतर को समझाने के लिए किया गया हो, लेकिन इस सच को भी नकारा नहीं जा सकता है कि अंततः इसी वर्ण व्यवस्था ने सबसे ज्यादा दमनकारी एवं कठोर सामाजिक वर्गीकरण, अति शोषणात्मक परंपराएं, और भेदभाव एवं शोषण का सिलसिला चला दिया.

इसी व्यवस्था ने आक्रमणकारियों को वह मौका दिया जिससे वे मुठ्ठी भर सेना के जरिए हमें हरा सके क्योंकि केवल युद्ध करने वाला वर्ग ही सेना बना कर भूमि की रक्षा कर सकता था. इसी ने हमारे औपनिविशिक मालिकों को हमें बांटने का मौका दिया. इसी ने मिशनरियों और मुल्लाओं को बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन कराने का मौका दिया. जहां इन दुश्मनों का बल से काम नहीं चला उन्होंने सम्मान की झूठे वादे से जीत हासिल की.

यही वजह है की सद्गुरू जग्गी वासुदेव सही होते हैं जब वे कहते हैं कि कट्टरपंथी , हिंदुओं में खौफ फैलाने वाली डिस्मेंटलिंग ग्लोबल हिदुत्व कांफ्रेंस जैसे प्रयासों पर कोई असर नहीं होगा जब तक हम खुद जाति व्यवस्था को खत्म करके जातिवाद को समाप्त ना कर दें.

पेजावर अधोक्षजा मठ के 34वे चतुरमास महोत्सव के अवसरपर ईशा फाउंडेशन के संस्थापक ने कहा, “यदि कोई हिंदु जीवनशैली को खत्म करने का प्रयास कर रहा हो तो हमें इस बात की चिंता नहीं करनी है. यदि हमें हिंदू जीवनशैली को मजबूत बनाते हैं, और जाति और पंथ के आधार पर भेदभाव खत्म कर हिंदुओं के लिए सम्मान के साथ रहने वाला ढांचा बनाकर लोगों के लिए आकर्षक बनाते हैं तो कोई उसे नष्ट नहीं कर सकता.”

इस अपील में डॉ भीमराव अम्बेडकर की दृष्टी शामिल है जो उनकी किताब जाति का उद्छेद में दिखती है. “मेरे विचार से जब हिंदू समाज जातिविहीन समाज होगा तभी हमें उम्मीद कर सकते हैं कि हममें खुद की रक्षा करने की पर्याप्त क्षमता है. बिना इस आंतरिक्ष क्षमता के हिंदुओं के लिए स्वराज गुलामी की ओर एक कदम ही होगा.
नागरिक संशोध कानून धारा 370 के तहत कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करना, राष्ट्रीय शिक्षा नीति, और अयोध्या में राम मंदिर के लिए रास्ता साफ करना श्री नरेंद्र की सरकार के सत्ता में आने के बाद से बड़े कदम हैं.अब समय आ गया है कि हिंदुओं को जातिवाद की समस्या को सुलझाने के लिए काम करना चाहिए. एक समाज के रूप में हिंदू कभी आत्म निरीक्षण और सुधार से नहीं डरे. अगर कोई बुराई में अपने समाज से बाहर निकालनी है दो वह निंदनीय जाति व्यवस्था ही है. यदि पहचान और व्यवसाय जन्म के आधार पर किसी भी काल में अन्याय रही तो वह पूरी तरह से आज भी घृणित ही है.

हिंदू सामाजिक और आध्यात्मिक नेताओं को लोगों को जाति व्यवस्था के खिलाफ मनाने के लिए साथ में आने की जरूरत है. सरकारी काम काज और कागजों में जाति का जिक्र खत्म होना चाहिए खास तौर पर वहा जहां जरूरी ना हो और ज्यादा दलित नेताओं को अपने समुदायों के विकास की चर्चा करनी चाहिए ना कि वे सिर्फ शिकार होने की राजनीति में उलझे रहें जैसा चरम वामपंथी और इस्लामिक मीम-भीम पैरवी करने वाले चाहते हैं

अंबेडकर चाहते थे, आरक्षण केवल सीमित समय के लिए लागू होना चाहिए. हमारी पाठ्यपुस्तक और मीडिया में और ज्यादा जनजातीय, दलित और अन्य पिछड़ी जातियों के राष्ट्रवादी नेता को जगह मिलनी चाहिए अंतरजातीय विवाह का सामान्यीकरण कर उसे मनाना चाहिए.
जैसे जैसे भारत मजबूत होता जा रहा है और ज्यादा राष्ट्रवाद जागृति आ रही है, देश के अंदर और बाहर दोनों से ही खतरा बढ़ रहा है. हमें अपने समाज को यूं ही नहीं छोड़ सकते हैं. अकिलीज और दुर्योधन की कहानी इस महान सभ्यता के सबसे बड़ी कमजोरी को खत्म करने के लिए एक अच्छी शुरुआत हैं.