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लखनऊ के पत्रकार हुए एक जुट, लड़ेंगे उ.प्र.राज्य मुख्यालय संवाददाता समिति का चुनाव

लखनऊ : लोकतांत्रिक व्यवस्था की लड़ाई बहुत शानदार होती है। आरोप-प्रत्यारोप, बहसबाजी और प्रश्नों की गूंज में अधिकारों के हक़ की बात का उत्सव होता है चुनाव। इस लोकतांत्रिक अनुष्ठान में मित्रों में भी मोहब्बत से तलवारें खनकने का रिवाज है। पत्रकार लोकतंत्र के रक्षक होते हैं। गेट टू गेदर स्वरूप जब खुद अपने परिवार में चुनावी प्रक्रिया की रस्म को अंजाम देते हैं तो लोकतंत्र के हर रस का रसास्वादन करते है।

तमाम तकरारों और विवादों का लुत्फ लेने के बाद लखनऊ के पत्रकारों ने एकजुट होकर उ.प्र. राज्य मुख्यालय संवाददाता समिति में निष्पक्ष और सौहार्दपूर्ण चुनाव कराने के लिए आपसी सामंजस्य स्थापित कर लिया है। संकेत मिल रहे हैं कि संवाददाता समिति की तरफ से तीस जनवरी को बुलाई गई आम सभा में समस्त वरिष्ठजन चुनावी कार्यक्रम तय करेंगे। और संभवतः फरवरी मे ही नई संवाददाता समीति निर्वाचित होकर पत्रकारों और पत्रकारिता के हित में नये आयाम स्थापित करेगी।

करीब दो दशक तक संवाददाता समिति और प्रेस क्लब के उच्च पदों पर रहकर पत्रकारों के हित में तमाम काम करने वाले पत्रकार नेता और प्रतिष्ठित पत्रकार सुरेश बहादुर सिंह को पूरा यक़ीन है कि पूरी एकता और एकजुटता के साथ सौहार्दपूर्ण वातारवरण में समिति का चुनाव सम्पन्न होगा। सेतु बनकर पत्रकारों को जोड़ने के लिए वो पुराने किस्से सुनाते हैं और नई पीढ़ी को लखनऊ की पत्रकारिता से सबक लेने की हिदायत देते हैं। वो कहते हैं कि लखनऊ के पत्रकारों की आपसी एकता मोहब्बत और अपनेपन के किस्सों का अहसास भर समिति के चुनाव की सियासी तल्खियों को भाईचारे के धागे में बांध देगा।

हेराल्ड ग्रुप की यूनियन, नवभारत टाइम्स मैनेजमेंट से टकराव और स्वतंत्र भारत की हड़ताड़ जैसी मुश्किल घड़ी में पत्रकार एकजुट एकजुट हो जाया करते थे। अपने ज़माने की मक़बूल सहाफी ओसामा तलहा का पत्रकार सुरेश बहादुर से अग्रज-अनुज जैसा रिश्ता। घनश्याम पंकज, ज्ञानेंद्र शर्मा, विनोद शुक्ला, गुरुदेव नारायण, प्रमोद जोशी, नवीन जोशी जैसे पत्रकार पत्रकारिता की यूनिवर्सिटी बन कर किस तरह नई पीढ़ी को तैयार करते थे। तीन दशक पहले के पुराने जमाने में भी पीटीआई, यूएनआई के जरिए राज्य मुख्यालय की खबरों को मिनटों में दुनिया तक पंहुचाने वाले प्रमोद गोस्वामी, सुरेंद्र दुबे का दैनिक जागरण में उभरते हेमंत तिवारी जैसे युवाओ को आगे बढ़ाना। अपने जमाने की मारुफ पत्रिका माया की खबरों की आत्मा अजय कुमार और बीबीसी की ख़ास पहचान रामदत्त त्रिपाठी का स्वाभीमान तहजीब के इस शहर को तहज़ीब सिखाता था।

प्रदीप शाह, आ.रबी थापा, मनमोहन और गर्ग साहब जैसे छायाकारों की यूनिटी की मिसालों के किस्से भर नई पीढ़ी के लिए सबक हैं। शिवशंकर गोस्वामी, किशोर निगम, अशोक निगम, राजेंद्र द्विवेदी, प्रदीप कपूर,भास्कर दुबे, घनश्याम दुबे, योगेश मिश्रा, ताहिर अब्बास, वाशिंद मिश्रा, प्रदुम्न तिवारी, अखिलेश वाजपेयी, मनोज श्रीवास्तव , अशोक त्रिपाठी, नदीम, राजबहादुर, सदगुरू, गोलेशस्वामी, हेमसिंह…की पॉलीटिकल और मुख्यालय रिपोर्टिंग के आगे देश की सियासत और नौकरशाही सहम जाती थी।

दीपक मिश्रा,पारितोष, विश्वजीत घोष ताहिर अब्बास,,आरडी शुक्ला, अजय शुक्ला… जैसे अपराध संवाददाताओं की हनक भी लखनऊ की पत्रकारिता का आईना रही है। बाइलाइन खबरों में सब प्रतिद्वंद्वी थे,पर विश्वास के रिश्तों में हम निवाला हम प्याला रहने वाले पत्रकारों के मधुर रिशतों की चार दशकों की कहानी सुनहरे हर्फों से लिखी जाएगी। काश ये इतिहास दोहराए और वर्तमान भी इन खूबियों से जगमगाए।