सामाजिक न्याय की हत्या कर बिहारी मतदाताओं की उम्मीदों को फिर किया तार तार ,सिर्फ कुर्सी की राजनीति तक सीमित हैं नीतीश कुमार
विनोद यादव
(लेखक,कवि स्वतंत्र पत्रकार)
बिहार की राजनीति बिहारी मतदाताओं के अंगूठे की स्याही के उतरने से पहले ही सियासत का खेल कर देती हैं। यह वजह हैं जो धरती सामाजिक न्याय की बात करने वाले नेताओं को जन्म देती हो वहीं पर उन्हीं के जनादेश के खिलाफ खड़ा मिलती हैं लगातार 2002 से बिहार की राजनीति में सिर्फ कुर्सी का खेल चल रहा हैं। कभी गाड़ी नाव पर कभी नाव गाडी़ पर सवार होती दिखती हैं.बात यदि सामाजिक न्याय की हो तो शायद उसके पैमाने पर खरें उतने में कई दशक लग चुके हैं शायद अब कुर्सी महारानी की ही राजनीति होती हैं। यहीं वहज हैं।शिक्षा ,चिकित्सा ,रोजगार के मुद्दे पर बात करने वाले नेताओं को हमेशा सत्ता से बाहर का ही रास्ता देखना पड़ता हैं ,यदि वहीं यूपी की राजनीति को जोड़कर देखे तो शिक्षा ,चिकित्सा और रोजगार को छोड़कर मंदिर की बात करना कहीं न कहीं सै टका सटीक फिट बैठती हैं हाल हीं में सबसे बड़ी शिक्षक भर्ती निकाल कर एक महीने के अंदर प्रतियोगी छात्रों को शिक्षक का नियुक्त पत्र देखर मानों नीतीश कुमार और आरजेडी ने कोई गुनाह कर दिया हैं और इस गुनाह की सजा बिहार के किंग मेकर कहें जाने वाले नीतीश कुमार ने अपने गैर वैचारिक दल से गले मिलकर पुनः बिहार के मतदाताओं को हताश और निराश करने का काम किया हैं ,खैर नव बार मुख्यमंत्री बन कर नीतीश कुमार ने इस बात पर मुहार जरुर लगा दी हैं कि उन्हें सिर्फ कुर्सी की ही राजनीति करनी हैं मुद्दे की नहीं।

नीतीश कुमार की राजनीति ही हमेशा विश्वासघाती रहीं हैं ,जिसको गले गलाया उसी को हमेशा डसने का काम किया।आखिर नीतीश कुमार कुर्सी की राजनीति में किसका उपयोग नहीं किया सवाल यह भी हैं।नीतीश कुमार ने यह साबित कर दिया आदमी ही आदमी को जब चाहें अपने हित के लिए गिरा सकता हैं और अपने धुर विरोधी को गले लगा सकता हैं। आया राम और गया राम के सारी बातो पर पर्दा डाल दिया।शायद 2015 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी और कांग्रेस के गठबंधन के सहारे बिहार में सरकार नीतीश कुमार ने बनाई और एक महागठबंधन बना लेकिन कुछ दिनों बाद ही महागठबंधन को ठगबंधन में बदलने का काम भी नीतीश कुमार ने ही किया था। 2017 में पुनः बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने में कामयाब रहें।शायद आज के दौर में विश्वासघात की राजनीति की नयी परिपाटी की शुरुआत नीतीश कुमार ने चालू कर दी हैं। जो व्यक्ति अपने राजनैतिक फायदे के लिए अपने राजनैतिक गुरू को नहीं बकसा हो वह किसकों बकसे गा यह भी सोचने वाली बात ही हैं 2016 में पूर्व सांसद शरद यादव जी को अपने पार्टी के अध्यक्ष पद से हटाने का भी नेक काम किया हैं। 13 साल जिस पार्टी के अध्यक्ष शरद यादव रहें हो और उन्हें अपना आवास खाली करना पड़ा हो क्या वह राजनैतिक षड़यंत्र नहीं तो क्या हैं। शायद सामाजिक न्याय की वकालत करने वाले नेताओं को इस बात को तभी समझ लेना चाहिए था लालू प्रसाद तो हमेशा कहते रहें नीतीश कुमार के पेट में दांत हैं लेकिन वह दांत कब अपनों को कुतरने का काम करेंगे।28 जनवरी 2024 में तीसरी बार बीजेपी के साथ गलबहियां खेलकर मुख्यमंत्री बन कर कुर्सी महारानी को हथियाने का काम किया गया।
जो जनता कभी बिहार में नारों के कसीदे पढ़ती थीं बिहार में बहार हैं नीतीश कुमार हैं शायद वहीं जनता लोकसभा चुनाव तक कहीं यह ने पढ़ना चालू कर दे बिहार पर भार हैं पलटू राम नीतीश कुमार हैं।दरअसल जो जनता बिहार के भविष्य के लिए एक आस और उम्मीद की किरण पिछलें 11 महीनों में देख रहीं थीं उसी जनता को पुनः छलने का काम नीतीश कुमार ने किया। शायद लालू यादव बीजेपी की विचारधारा से समझौता कर लिए होते तो आज बिहार की राजनीति का स्वरूप कुछ और होता खैर लालू यादव ने कभी फिरकापरस्त ताकतों के सामने समझौता नहीं किया यहीं वजह हैं आज सीबीआई ,ईडी जैसे सरकार तंत्रों का उपयोग कर सिर्फ परेशान करने का काम किया गया।आखिर जो गृहमंत्री यह बोला हो नीतीश कुमार के लिए हमेशा बीजेपी के दरवाजे बंद रहेंगें कौन सा ऐसा कारण आ पड़ा जो नीतीश के लिए दरवाजे खोलना पड़ा ,क्या बीजेपी को लोकसभा चुनाव का डर सता रहा था या नीतीश कुमार के भी पीछें सीबीआई ,ईडी जैसे संस्थाओं के माध्यम डरा दिया गया हैं
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