अमेरिका ने यूपी में बनने वाली इस रिवाल्वर के 10 हजार पीस का बल्क आर्डर दिया है। अमेरिका के साथ इसकी भारी मांग साउथ अमेरिका, ब्राजील के अलावा यूरोप के 16 देशों में है। बेहद घातक इस रिवाल्वर का उपयोग प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में भी किया गया था।
ईस्ट इंडिया कंपनी इसे पहली बार यूरोप से निकाल कर भारत लाई थी। वेब्ल स्काट इंडिया के निदेशक मनिंदर स्याल ने बताया कि भारत में 455 बोर की रिवाल्वर प्रतिबंधित है लेकिन अमेरिका में वेब्ले-455 की भारी मांग है। इसे देखते हुए यूपी में पहली बार अमेरिका को करीब 10 हजार वेब्ले-455 का निर्यात किया जाएगा। इसके निर्माण के लिए लाइसेंस जल्द जारी हो जाएगा।
100 साल बाद यूपी से फिर निकलेगी 1.1 किलो वजनी वेब्ले-455
वर्ष 1887…जब ब्रिटिश राज का सूरज अस्त नहीं होता था। उस दौर में ब्रिटेन की ग्लोबल कंपनी वेब्ले ने 455 रिवाल्वर बाजार में उतारा था। 1924 तक इसे बनाया गया। इन 37 वर्ष में ये रिवाल्वर दुनिया भर हुई क्रांति और युद्ध में प्रमुख हथियार के रूप में उभर कर सामने आई। तकदीर का खेल देखिए, 100 वर्ष पहले बंद हो चुकी ऐतिहासिक वेब्ले 455 का पुर्नजन्म उत्तर प्रदेश में होगा।
भारत में वेब्ले ने स्याल मैन्यूफैक्चर प्राइवेट लिमिटेड के साथ समझौता किया है, जिसमे टेक्नोलाजी वेब्ले की और उत्पादन स्याल मैन्यूफैक्चरर के अधीन है। कंपनी के निदेशक मनिंदर स्याल ने बताया कि यूपी की औद्योगिक नीति से प्रभावित होकर वेब्ले ने प्रदेश को अपना मुख्यालय बना लिया। गर्व की बात है कि अमेरिका जैसा देश यहां के बने रिवाल्वर का इस्तेमाल करेगा। इसी के साथ अमेरिका का विशाल बाजार हमारे लिए खुल गया है।
दरअसल एंटीक श्रेणी के 455 रिवाल्वर की मांग लंबे समय से थी। यही वजह है कि यूपी में इसे दोबारा बनाने का फैसला वेब्ले ने लिया। 455 रिवाल्वर ही मार्क सीरीज की रिवाल्वरों की जनक है। इसकी उत्कृष्टता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद तक ब्रिटेन के सैन्य बलों के लिए ये मानक बना रहा। 1894 और 1897 में मूल डिजाइन में संशोधन के कारण मार्क II और मार्क III रिवॉल्वर की शुरुआत हुई।
घातक वेब्ले-455 एतिहासिक विशेषता
1887 में डिजायन की गई थी
1887 से 1924 तक बनी
1.25 लाख पीस बने थे
1887 से 1963 इस्तेमाल में रही
वेब्ले-455 क्यों है डिमांड में
वजन 1.1 किलो
11.25 इंच कुल लंबाई
6 इंच बैरल की लंबाई
20 से 30 राउंड प्रति मिनट फायरक
46 मीटर इफेक्टिव फायरिंग रेंज
कहां-कहां इस्तेमाल
प्रथम विश्वयुद्ध
द्वितीय विश्वयुद्ध
आयरलैंड का स्वतंत्रता संग्राम
इंडोनेशिया राष्ट्रीय आंदोलन
भारत-चीन युद्ध
कोरिया युद्ध
वियतनाम युद्ध
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