डब्ल्यूएचओ सम्मेलन में दिल्ली घोषणापत्र पर सभी देशों ने सहमति जताई है। ऐसे में अब पारंपरिक चिकित्सा सिर्फ घरेलू इलाज नहीं है।
पारंपरिक चिकित्सा को लेकर अब तक जो बातें मंचों और घोषणाओं तक सीमित रहीं, उन्हें दिल्ली घोषणापत्र ने ठोस दिशा दी है। नई दिल्ली में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के दूसरे ग्लोबल समिट ऑन ट्रेडिशनल मेडिसिन के समापन पर अपनाई गई इस घोषणा पर सभी सदस्य देशों की सहमति बनी है।
इसका साफ संदेश है कि आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध, लोक और आदिवासी चिकित्सा अब केवल घरेलू नुस्खों या वैकल्पिक उपचार के तौर पर नहीं बल्कि स्वास्थ्य प्रणाली के जिम्मेदार हिस्से के रूप में देखी जाएगी। घोषणापत्र में कहा है कि दुनिया की बड़ी आबादी आज भी आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध, लोक चिकित्सा और पारंपरिक उपचार पद्धतियों पर निर्भर है, लेकिन अब तक इन्हें वैज्ञानिक शोध, सरकारी नीतियों और स्वास्थ्य सेवाओं में वह जगह नहीं मिल पाई, जिसकी जरूरत थी।
इस कमी को दूर करने के लिए देशों ने मिलकर ठोस कदम उठाने पर सहमति जताई है। केंद्रीय आयुष मंत्रालय के सचिव वैद्य राजेश कोटेचा ने कहा, अब यह साफ संदेश गया है कि पारंपरिक चिकित्सा सिर्फ अतीत की विरासत नहीं, बल्कि भविष्य की स्वास्थ्य जरूरतों का भी अहम हिस्सा बनने जा रही है। दो साल पहले डब्ल्यूएचओ का पारंपरिक चिकित्सा को लेकर पहला वैश्विक सम्मेलन भी भारत के जामनगर में हुआ। उस वक्त गुजरात घोषणापत्र में जहां पारंपरिक चिकित्सा के महत्व को वैश्विक स्तर पर स्वीकार किया गया वहीं अब दिल्ली में रिसर्च, नियम, गुणवत्ता और सुरक्षा जैसे व्यावहारिक सवालों के जवाब दिए गए हैं।
आदिवासी चिकित्सा को मिलेगा सम्मान व सुरक्षा
दिल्ली डिक्लेरेशन का एक अहम पहलू आदिवासी और स्वदेशी चिकित्सा से जुड़ा है। अब तक यह ज्ञान या तो अनदेखा रहा या फिर उसे झोलाछाप इलाज कहकर खारिज कर दिया गया। घोषणा में कहा है कि आदिवासी समुदायों के पारंपरिक ज्ञान पर वैज्ञानिक अध्ययन किए जाएंगे, लेकिन इसके साथ यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि उनके अधिकार, पहचान और लाभ-साझेदारी सुरक्षित रहे। इसका मतलब यह नहीं है कि हर पारंपरिक दावा मान लिया जाएगा, बल्कि यह कि जो प्रभावी है, उसे प्रमाणित किया जाएगा, और जो खतरनाक या भ्रामक है, उस पर रोक लगेगी।
दिल्ली डिक्लेरेशन के अहम फैसले
पारंपरिक चिकित्सा को राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणालियों से जोड़ा जाएगा
इलाज के तरीकों पर वैज्ञानिक शोध और सबूत जुटाए जाएंगे
दवाओं और उपचारों की सुरक्षा व गुणवत्ता सुनिश्चित की जाएगी
फर्जी दावों और असुरक्षित प्रथाओं पर नियंत्रण किया जाएगा
आदिवासी और स्वदेशी समुदायों के ज्ञान और अधिकारों का सम्मान होगा
पारंपरिक चिकित्सा को सस्ती और सुलभ स्वास्थ्य सेवाओं के रूप में विकसित किया जाएगा।
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