अफगानिस्तान में तालिबान शासन की क्रूरताएं सामने आने लगी हैं। एक तरफ जनता की आवाज दबाई जा रही है। वहीं महिलाओं के साथ अन्याय और जुल्म तो हो ही रहा है। इन सबके बीच मीडिया के ऊपर अत्याचार की खबरें भी बाहर आने लगी हैं। हाल ही में बीबीसी ने अफगानिस्तान के कुछ पत्रकारों और रिपोर्टरों का इंटरव्यू किया। इस दौरान इन लोगों ने अपने टॉर्चर की खौफनाक दास्तान बयां की। इन पत्रकारों ने बताया कि उनका जुर्म बस यही था कि उन्होंने काबुल में तालिबान के खिलाफ चल रहे विरोध प्रदर्शनों को कवर किया।
नेमातुल्लाह नकदी एटिलाट्रोज अखबार के फोटोजर्नलिस्ट हैं। वह बताते हैं कि एक तालिबान ने उनके चेहरे पर अपना पैर रखकर कुचलने की कोशिश की। नेमातुल्लाह के मुताबिक यह सब तब हुआ जब वह काबुल में चल रहे एक विरोध प्रदर्शन की फोटो लेने की कोशिश कर रहे थे। इस दौरान उनका कैमरा छीनने की भी कोशिश की गई। नकदी उन दो पत्रकारों में थे जिन्हें तालिबान अधिकारियों ने काबुल में गिरफ्तार किया था।
नकदी ने बताया कि कैसे उन्हें और उनके साथी को जिला पुलिस थाने में ले जाया गया। इसके बाद उन दोनों को डंडों और बिजली के तारों से पीटा गया। उनके साथी तकी दरयाबी ने बीबीसी को बताया कि जब उन्हें बांधा जा रहा था तो खुद को बचाने का ख्याल भी डराने वाला लग रहा था। वजह, उन्हें डर था कि ऐसी कोई भी कोशिश करने के बाद टॉर्चर और ज्यादा बढ़ जाएगा। उन्होंने बताया कि वह आठ थे और सभी उन्हें पीट रहे थे। उनके हाथ में जो भी आता था, उसे उठाकर पीटने लगते थे। दरयाबी ने बताया कि उन्होंने हमारे चेहरों पर निशान बना दिए और पैरों से भी मारा।
वहीं अमेरिका के नॉन प्रॉफिट संगठन कमेटी टु प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट सीपीजे तालिबान शासन में पत्रकारों का हाल बताने वाली रिपोर्ट जारी की है। इस संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक नकदी और दरयाबी समेत करीब 14 पत्रकारों को इस हफ्ते तालिबान ने उठाया था। इन मामलों की जानकारी रखने वाले लोगों ने सीपीजे को फोन पर बताया कि इन 14 में से कम से कम नौ पत्रकार कस्टडी में रहते हुए हिंसा के शिकार हुए हैं। यह सारी बातें तालिबान के उन दावों से बिल्कुल उलट हैं, जिसमें उसने कहा था कि इस बार वह ज्यादा बेहतर ढंग से शासन चलाएगा।
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