नई दिल्ली. सितंबर की शुरुआत में हुए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल हुए थे. अब कुछ दिनों बाद ही भारत चार देशों- अमेरिका, जापान , ऑस्ट्रेलिया के समूह क्वाड की व्यक्तिगत बैठक में शामिल होने जा रहा है. अफगानिस्तान में तेजी से बदल रहे हालात और नए घटनाक्रमों के बीच इस बैठक को काफी अहम माना जा रहा है. इसके अलावा क्वाड मीटिंग को ब्रिक्स के भविष्य से भी जोड़कर देखा जा रहा है.
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के इरादे से तैयार हुए क्वाड के सामने चर्चा के लिए कई मुद्दे हैं. अमेरिकी सेना के अफगानिस्तान छोड़ने और क्षेत्र में बीजिंग की गतिविधियों और काबुल में रूस की दिलचस्पी ने, 24 सितंबर को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की अगुवाई में होने वाली क्वाड बैठक को नया मकसद दे दिया है. खास बात यह है कि भारत ब्रिक्स(ब्राजील, रूस, इंडिया, चीन, दक्षिण अफ्रीका) और क्वाड दोनों समूहों का सदस्य है.
9 सितंबर को वर्चुअल कार्यक्रम में पीएम मोदी के संबोधन पर पश्चिम में किसी का ध्यान नहीं गया. इसका एक बड़ा कारण अफगानिस्तान में जारी उठा-पटक है. इस कार्यक्रम के दौरान नई दिल्ली औऱ ब्रिक्स के सिद्धांतों में फर्क नजर आया. इधर, व्हाइट हाउस का कहना है कि बाइडन-हैरिस प्रशासन ने क्वाड की प्राथमिकता को बढ़ाया है.
हालांकि, उनका कहना है कि क्वाड के नेताओं का ध्यान कोविड-19 से लड़ने, जलवायु परिवर्तन, नई तकनीक और साइबर स्पेस, खुले और मुक्त हिंद प्रशांत जैसे क्षेत्रों में संबंध मजबूत करने पर होगा. लेकिन अफगानिस्तान के घटनाक्रम भी इस चर्चा का बड़ा हिस्सा होंगे. चीन अब अफगानिस्तान में पाकिस्तान, रूस और ईरान के साथ आने की कोशिश कर रहा है.
अब बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या मुख्य तौर पर चीन और लोकतंत्र को लेकर तैयार हुआ क्वाड समूह आर्थिक हितों पर बनेब्रिक्सके खात्मे का कारण बनेगा.
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