देश के सभी सरकारी स्कूलों में एक जैसी ड्रेस होने की मांग करने वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। जस्टिस हेमंत गुप्ता और सुधांशु धूलिया की बेंच ने कहा कि यह ऐसा मामला ही नहीं है, जिसे अदालत में लेकर आया जाए। लेकिन याची की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव भाटिया ने कहा कि अदालत को इस मामले पर विचार करना चाहिए क्योंकि यह संवैधानिक मुद्दा है और अलग-अलग ड्रेस होना राइट टू एजुकेशन ऐक्ट के विपरीत है। उन्होंने कहा, ‘यह संवैधानिक मामला है। कृपया पेज नंबर 58 पर देखें। स्टाफ और टीचर्ज के लिए एक जैसी ड्रेस की बात की गई है। आप कोई भी आदेश दे सकते हैं। राइट टू एजुकेशन के तहत ड्रेस में एकरूपता होनी चाहिए और अनुशासन दिखना चाहिए।’

हालांकि अदालत ने उनके तर्कों को खारिज कर दिया और कहा कि यह तय करना अदालत का काम नहीं है। इसके बाद याची ने अदालत से अनुमति लेकर अर्जी को वापस ले लिया। याची निखिल उपाध्याय का कहना था कि कॉमन ड्रेस को़ लागू करने से सामाजिक एकता और समानता दिखेगी। स्कूलों एवं कॉलेजों में हिजाब को लेकर छिड़े विवाद के मद्देनजर यह अर्जी दाखिल की गई थी। इसे लेकर याचिका में कहा गया, ‘शैक्षणिक संस्थान सेकुलर कैरेक्टर वाले होते हैं। यहां ज्ञान, रोजगार की शिक्षा दी जाती है और लोगों को तैयार किया जाता है ताकि वे राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दे सकें।’
याची ने कहा कि शैक्षणिक संस्थानों में धर्मों की जरूरी अथवा गैर-जरूरी परंपराओं को निभाने से कोई मतलब नहीं होता है। इसलिए यह जरूरी है कि सभी स्कूलों और कॉलेजों में कॉमन ड्रेस कोड लागू किया जाए।’ यही नहीं याची दिलचस्प तर्क देते हुए कहा कि यदि ऐसा नहीं हुआ तो कल को कोई नागा साधु भी कॉलेज में एडमिशन ले सकता है और बिना कपड़ों के लिए क्लास अटेंड करने के लिए पहुंच जाएगा। वह कहेगा कि यह तो उसका जरूरी धार्मिक कर्तव्य है। याची का कहना था कि समान ड्रेस कोड रहने से किसी भी मजहब, जाति और क्षेत्र के लोग समानता का अनुभव करेंगे।
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