आज (15 नवंबर) दुनियाभर की आबादी 8 बिलियन यानी 800 करोड़ हो जाएगी. संयुक्त राष्ट्र (UN) ने जनसंख्या को लेकर एक रिपोर्ट जारी किया है, जिसके अनुसार दुनिया की जनसंख्या आज 8 अरब पहुंच जाएगी. रिपोर्ट के अनुसार, साल 2030 तक दुनियाभर की आबादी करीब 8.5 अरब और 2050 तक 9.7 अरब हो सकती है.
पर्यावरण और स्वास्थ्य वैज्ञानिकों ने जताई चिंता विश्व की बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए जनसंख्या और पर्यावरण-स्वास्थ्य वैज्ञानिकों ने गहरी चिंता जताई है. वैज्ञानिकों का कहना है कि क्या आने वाले समय में बढ़ती वैश्विक आबादी के लिए पर्याप्त भोजन होगा? अगली महामारी में लोगों की देखभाल कैसे होगा? हाई ब्लड प्रेशर वाले लाखों लोगों का गर्मी में क्या होगा? बढ़ते सूखे के कारण क्या पानी के लिए लड़ाई होगी?
1. बढ़ती आबादी में संक्रामक रोग बढ़ाएगी समस्या बढ़ती जनसंख्या की वजह से जलवायु परिवर्तन होगा और शोधकर्ताओं ने पाया है कि सभी मानव संक्रामक बीमारियों में से आधे से अधिक जलवायु परिवर्तन से बिगड़ सकती हैं. उदाहरण के लिए, बाढ़ के पानी की वजह से खतरनाक बैक्टीरिया और मच्छर जैसे वैक्टर पनप सकते हैं और लोगों में संक्रामक रोगों का संचार कर सकते हैं. हर साल 10 करोड़ लोग डेंगू से ग्रसित होते हैं और यह बीमारी गर्म व गीले वातावरण में अधिक तेजी से फैलती है. बाढ़ की वजह से जलजनित जीवाणु भी फैस सकते हैं, जो हैजा, हेपेटाइटिस और डायरिया संबंधी बीमारियों का कारण बनते हैं. इसके अलावा सूखा भी पीने के पानी की गुणवत्ता को खराब कर सकता है. नतीजतन, अधिक कृंतक आबादी भोजन की तलाश में मानव समुदायों में प्रवेश करती है, जिससे हंतावायरस फैलने की संभावना बढ़ जाती है
. 2. अत्यधिक गर्मी की हो सकती है समस्या दुनियाभर में बढ़ती जनसंख्या की वजह से एक और गंभीर जोखिम बढ़ता तापमान है. दुनियाभर में गर्मी बढ़ने से मौजूदा स्वास्थ्य समस्याओं, जैसे हृदय और श्वसन रोग बढ़ सकती है. हीट स्ट्रोक की वजह से दिल, मस्तिष्क और किडनी को नुकसान पहुंच सकता है और यह घातक हो सकता है. आज, वैश्विक आबादी का लगभग 30 प्रतिशत हर साल संभावित रूप से घातक गर्मी के तनाव के संपर्क में है. इसके अलावा जैसे-जैसे आबादी बढ़ती है और गर्मी बढ़ती है, वैसे-वैसे अधिक लोग जीवाश्म ईंधन द्वारा संचालित एयर कंडीशनिंग पर निर्भर होंगे, जो आगे चलकर जलवायु परिवर्तन में योगदान देता है.
3. खाद्य और जल सुरक्षा की समस्या बढ़ती आबादी के लिए गर्मी की वजह भोजन और पानी की सुरक्षा प्रभावित होती है. लांसेट की समीक्षा में पाया गया कि 2021 में बढ़ते तापमान ने मकई, या मक्का उगाने के सत्र को औसतन लगभग 9.3 दिन और गेहूं के लिए 1981-2020 के औसत की तुलना में छह दिनों तक छोटा कर दिया. गर्म होते महासागर शेलफिश को मार सकते हैं और मत्स्य पालन को स्थानांतरित कर सकते हैं. साल 2020 में गर्मी की लहरों की वजह से 1981-2010 के औसत की तुलना में नौ करोड़ 80 लाख से अधिक लोगों को खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा. संयुक्त राष्ट्र के अनुमानों के अनुसार, पानी की कमी और सूखे के कारण 2030 तक लगभग 70 करोड़ लोग माइग्रेट हो सकते हैं.
4. खराब एयर क्वालिटी से परेशान होंगे लोग बढ़ती जनसंख्या और जयवायु परिवर्तन की वजह से वायु प्रदूषण की समस्या बढ़ती जाएगी. गर्म मौसम और ग्रह को गर्म करने वाली वही जीवाश्म ईंधन गैसें जमीनी स्तर पर ओजोन में योगदान करती हैं, जो स्मॉग का एक प्रमुख घटक है. यह एलर्जी, अस्थमा और अन्य श्वसन समस्याओं के साथ-साथ हृदय रोग को बढ़ा सकता है. गर्म मौसम में जंगलों में आग की समस्या बढ़ सकती है और आग वायु प्रदूषण के जोखिम को बढ़ा देती है. धुएं में छोटे-छोटे कण होते हैं जो फेफड़ों में गहराई तक जा सकते हैं, जिससे हृदय और श्वसन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं.