मंडलवादी समाजिक न्याय की बुलंद आवाज शोषित वंचित पीडित हाशिए के समाज की आवाज भारतीय राजनीति और समाजवादी आंदोलन की एक बुलंद रुप रेखा तैयार कर आंदोलन को धार देने वाली एक सदी का अंत बहुत ही दुखदायी हैं शायद यह भरोसे के अनुरूप न हो और भरोसा भी न हो लेकिन यह आवाज 12 जनवरी, 2023 को खामोश हो गई। जेडीयू के पूर्व वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद शरद यादव नहीं रहे। शरद भले का जन्म भले ही मध्य प्रदेश में हुआ हो लेकिन उनकी छात्र राजनीति में कॉलेज की पंचायत से लेकर लोक तंत्र की सबसे बड़ी अदालत संसद तक उनकी आवाज गूंजती रही।छात्र राजनीति से संसद तक का सफर तय करने वाले शरद यादव ने मध्य प्रदेश मूल का होते हुए भी अपने राजनीतिक जीवन की धुरी बिहार और उत्तर प्रदेश की सियासत से बनाई।

शरद यादव ने मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और फिर बिहार में अपना राजनीतिक दबदबा दिखाया और राष्ट्रीय राजनीति में अपना अलग स्थान बनाया।शरद यादव का जन्म एक जुलाई, 1947 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद के बंदाई गांव के एक किसान परिवार में हुआ था। डॉ. लोहिया के समाजवादी विचारों से प्रेरित हुए जब शरद यादव छात्र राजनीति में मशगूल थे तब देश में लोकनायक जय प्रकाश नारायण के लोकतंत्र वाद और डॉ. राम मनोहर लोहिया के समाजवाद की क्रांति की लहरें परवान चढ़ रही थीं। शरद यादव भी इनसे खासे प्रभावित हुए। डॉ. लोहिया के समाजवादी विचारों से प्रेरित होकर शरद ने अपने मुख्य राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। युवा नेता के तौर पर सक्रियता से कई आंदोलनों में भाग लिया और आपातकाल के दौरान मीसा बंदी बनकर जेल भी गए। 27 की उम्र में लोक सभा चुनाव जीता, पहली बार संसद पहुंचे शरद यादव के राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1971 से हुई थी। वे कुल सात बार लोकसभा सांसद रहे जबकि तीन बार राज्य सभा सदस्य चुने गए। वे 27 साल की उम्र में पहली बार 1974 में मध्य प्रदेश की जबलपुर लोकसभा सीट से सांसद चुने गए थे। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और उत्तर प्रदेश की बदायूं लोकसभा सीट और बाद में बिहार की मधेपुरा लोकसभा सीट से भी सांसद चुने गए। केंद्र सरकार में अहम मंत्रालय भी संभाले शरद यादव जनता दल के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। वे 1989-1990 में केंद्रीय टेक्सटाइल और फूड प्रोसेसिंग मंत्री भी रहे। उन्हें 1995 में जनता दल के कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया। 1996 में बिहार से वे पांचवीं बार लोकसभा सांसद बने। 1997 में जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने और 1998 में जॉर्ज फर्नांडीस के सहयोग से जनता दल यूनाइटेड पार्टी बनाई और एनडीए के घटक दलों में शामिल होकर केंद्र सरकार में फिर से मंत्री बने। 2004 में शरद यादव राज्यसभा गए। 2009 में सातवीं बार सांसद बने लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों में उन्हें मधेपुरा सीट से हार का सामना करना पड़ा।जय प्रकाश नारायण के छात्र आंदोलन का भारतीय राजनीति पर कितना असर होने वाला था, इसकी पहली झलक 1974 में देखने को मिली थी.जय प्रकाश नारायण ने छात्र आंदोलन के बाद जिस पहले उम्मीदवार को हलधर किसान के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़वाया वो शरद यादव थे. 27 साल के शरद यादव तब जबलपुर यूनिवर्सिटी छात्रसंघ के अध्यक्ष थे और छात्र आंदोलन के चलते जेल में थे.जेल से ही उन्होंने जबलपुर का चुनाव जीत लिया. 1977 में जनता पार्टी की आंधी की पहली झलक शरद यादव के चुनाव से ही लोगों को मिली थी. लेकिन शरद यादव किस मिट्ठी के बने थे, इसकी झलक एक साल बाद देखने को मिली.चरण सिंह और देवीलाल से क़रीबी बहरहाल, आपातकाल हटाए जाने के बाद 1977 में जब चुनाव हुए तो शरद यादव दोबारा सांसद चुने गए. उस वक्त वह युवा जनता दल के अध्यक्ष भी थे. और शायद यह भी एक वजह रही होगी कि उन्हें जनता पार्टी की सरकार में मंत्री का पद नहीं मिला. इसको लेकर भी शरद यादव में अरसे तक मलाल रहा.राजनीतिक गलियारों में ये चर्चा होती है कि मधु लिमये चाहते थे कि युवा जनता दल के अध्यक्ष के तौर पर शरद यादव ख़ुद को मांजें ताकि समाजवादी दल की राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए एक मजबूत चेहरा तैयार हो सके. शरद यादव 1978 में लोकदल के महासचिव बने थे.हालांकि मोरारजी भाई देसाई की सरकार बहुत दिनों तक नहीं चली. जब चरण सिंह प्रधानमंत्री बनने जा रहे थे तो उनकी कार में उनके बगल में शरद यादव थे, लेकिन मंत्रालय नहीं मिला. चरण सिंह का भरोसा उन्हें हासिल था.
1980 में शरद यादव लोकदल के उम्मीदवारों को लड़ाने में लगे रहे, ख़ुद चुनाव नहीं लड़े. जबलपुर से राजमोहन गांधी को टिकट दिया गया हालांकि वे चुनाव हार गए.शरद यादव ने कहा, “हम दोनों मंडल आयोग की अनुशंसाओं को लागू करने के पक्ष में थे. लेकिन वीपी सिंह उसे तत्काल लागू करने के पक्ष में नहीं थे. मैंने उनसे कहा कि अगर आप चाहते हैं कि लोकदल (बी) के सांसद आपके साथ रहें तो ये करना होगा नहीं तो सब देवीलाल के साथ जाएंगे.”शरद यादव ये भी कहते हैं, “गर्दन पकड़ के करवाया उनसे.”यहीं से शरद यादव की छवि मंडल मसीहा नेता के तौर पर बनी और इससे पहले उन्होंने बिहार में लालू प्रसाद यादव को नेता प्रतिपक्ष बनाने में मदद की थी. 1990 में जब बिहार में जनता दल के मुख्यमंत्री पद की दावेदारी आयी तो वीपी सिंह के उम्मीदवार राम सुंदर दास को पीछे करके लालू प्रसाद यादव को बिहार का मुख्यमंत्री बनवाया. हिंदी प्रदेश में देखते-देखते शरद यादव एकदम से महत्वपूर्ण हो गए थे.वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार जयशंकर गुप्त कहते हैं, “सामाजिक न्याय की लड़ाई में मंडल कमीशन का अहम योगदान रहा है और इसको मुख्यधारा में लाने का काम शरद जी का है. उनमें बहुत संभावनाएं थीं, लेकिन उन्हें उतने मौके नहीं मिले.”इस बीच जैन हवाला कांड में पांच लाख रुपये लेने का आरोप भी शरद यादव पर लगा, जिसमें अदालत ने उन्हें बरी कर दिया. हालांकि उन्होंने आरोप के बाद नैतिकता के आधार पर लोकसभा से इस्तीफ़ा दे दिया था.
विनोद यादव
भावभीनी श्रद्धांजलि