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बहन, बेटियां अपने पारिवारिक जीवन के साथ कैरियर से समझौता करें मैं नहीं मानता


विनोद यादव

सुल्तानपुर (DDC NEWS AGENCY)बहन ,बेटियां शादी के बाद अपने पारिवारिक जीवन के साथ अपने कैरियर के साथ समझौता करें मैं ऐसा नहीं मानता न समर्थन करता हूँ । लोग कहते हैं कि शादी के बाद बेटी का घर बसेगा या नहीं ये काफी हद तक बेटी की माँ पर निर्भर करता है।पितृसत्तात्मक एंव आदर्शवादी लोग मानते हैं कि कन्यादान के बाद बेटी के जीवन में हस्तक्षेप करना गलत है।लड़कियों में बचपन से ही सहनशीलता का विकास करना चाहिए ताकि आगे चलकर वे ससुराल की विषम परिस्थितियों का सामना कर सकें। लेकिन इस विषय में मेरा अपना एक अलग ही नज़रिया है।

मेरी पढ़ी-लिखी बेटी या बहन को अगर सिर्फ़ घर संभालने के नाम पर अपने सपने और कैरियर को छोड़ना पड़े तो मुझे उससे ऐतराज है । और उसका पुरजोर विरोध भी करता हूँ । और मैं समझता हूँ कि मां के न रहने पर घर में रहने वाली बेटी हो या बहन वहीं मां के रुप में परिवार को संभालने का प्रयास करती हैं हमें इस पर गर्व होना चाहिए।शायद कितनी रातों की नींद और चैन गंवा कर, ना जाने कितनी चुनौतियों को पार करने के बाद कोई बहन ,बेटी इस काबिल बनती है कि वो ज़माने की आँख में आँख मिला कर चल सके और चलती भी हैं । इस सुअवसर को मेरी बिटिया यूँ ही जाने देगी तो मुझे ऐतराज होगा, चाहे उसका कन्यादान ही क्यों न कर दिया हो।मैं नहीं सिखा पाऊँगा उसको बर्दाश्त करना एक ऐसे आदमी को जो उसका सम्मान न कर सके।आखिर कैसे कोई पिता सिखाए अपनी बेटी को कि पति की मार खाना सौभाग्य की बात है? मैंने तो सिखाया है कोई एक मारे तो तुम चार मारो। हाँ, मैं बेटी का घर बिगाड़ने वाला बुरा बाप हूँ और उस बहन का भाई हूँ ,लेकिन नहीं देख पाऊँगा उसको दहेज के लिए बेगुनाह सी लालच की आग में जलते हुए। मैं उसे विदा कर के भूल नहीं पाऊँगा, अक्सर उसका कुशल क्षेम पूछने आऊँगा। हर अच्छी-बुरी नज़र से, ब्याह के बाद भी उसको बचाऊँगा।बहन को मैं विरोध करना सिखाऊँगा गलत नीतियों के खिलाफ चाहें परिवार में हो या समाज में । ग़लत मतलब ग़लत होता है, यही बताऊँगा। देवर हो, जेठ हो, या नंदोई, पाक नज़र से देखेगा तभी तक होगा भाई। ग़लत नज़र को नोचना सिखाऊँगा, ढाल बनकर उसकी ब्याह के बाद भी खड़ा हो जाऊँगा। “डोली चढ़कर जाना और अर्थी पर आना”, ऐसे कठिन शब्दों के जाल में उसको नहीं फसाऊँगा। बहन मेरी पराया धन नहीं, कोई सामान नहीं जिनकी नजरों में ऐसे लोगों से बगावत का रास्ता सिखाऊँगा तभी जाकर सावित्रीबाई फूले और वीरांगना फूलनदेवी जैसी बन पायेगी गलत के खिलाफ मजबूती से आवाज उठा पायेगी।अनमोल है वो अनमोल ही रहेगी आखिर बहन जो ठहरी मेरी। रुपए-पैसों से जहाँ इज़्ज़त मिले ऐसे घर में मैं अपनी बहन नहीं ब्याहूंगा। औरत होना कोई अपराध नहीं, खुल कर साँस लेना मैं अपनी बहन को सिखाऊँगा। शायद मेरी खुद की बेटी भी होती तो भी यही बात उसे भी बहन की तरह बताता और समझाता । हर सुख दुःख-दर्द में उसका साथ रहूंगा वाद संवाद बेशक आपस में हंसी ठिठोली में निकले ओ चाहें बहन हो या बेटी उसे मन पर न लेने की बात सिखाऊँगा और उस अनमोल बहन का हर स्थिति में साथ निभाऊँगा जिसने एक मां का स्नेह दिया और कभी मां की कमी महसूस होने नहीं दी ,ऐसी बहन व बेटी के लिए खून का आखिरी कतरा तक उसके लिए बहाऊंगा ।