Saturday , December 23 2023

जुल्म और अत्याचार के साथ सामंतवाद के खिलाफ एक कहानी के रुप में दबी आवाज नेता जी मुलायम सिंह ने बनाया था भाई को माननीय

विनोद यादव

डेस्क सफर में नवयुवक के डकैत से देवता बनने की बात भलें आज कुछ लोगों को एक कहानी लगें मगर कुछ सच्चाइयों से हम मुख को फेर नहीं सकतें हैं। बुंदेलखंड का वीरप्पन,”चंबल का राजा” ददुआ या “दादू” न जाने ऐसे कितने नाम है जो पुलिस रिकॉर्ड में नही बल्कि आम जनमानस के मन मस्तिष्क में हैं दर्ज हैं शोषण और जिहालत भरी जिंदगी में यदि कोई सामंतशाही व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाता हैं तो वह कुछ न कुछ अपने लोगों के हक हुकूम के लिए एक इबादत जरुर लिखता हैं।एक संघर्ष है जो न्यायिक व्यवस्था में “डकैत” दर्ज है एक आवाज है जो जंगलों से निकल कर मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान तक को सुनाई दी है एक योजनाबद्ध तरीक़े से हत्या है जिसके परवान चढ़ने में 100 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं आखिर इसके पीछे छुपे कारणों को क्या हमने कभी टटोला या वैसे ही एक डकैत समझ कर भुला दिया गया है कि वह अपने आप अपने एक कहानी बन कर रह गया। शिवकुमार पटेल उर्फ “ददुआ” का नाम आखिर कैसे इतनी सुर्खियों में था या इसके पीछें और क्या कारण थें शायद वर्तमान दौर में हाशिए पर रहने वाला समाज शायद न जानने की कोशिश की न समझने की। एक सामान्य सा नौयुवक जिसने अपनी आंख के सामने अपने पिता को सामंतवादियों द्वारा नंगा घुमाया जाना देखा हो,

 

एक युवक जिसके सामने उसके पिता को बेरहमी से मारा गया हो

एक असहाय जो की सेवा की आड़ में दासप्रथा उस पुरानी परंपरा को झेल रहा हो जिसमे बस उत्पीड़न हो, शायद ये उसका जुर्म नहीं था कि जाति से एक कुर्मी था वह पिछडे़ समाज से आता था उसने सामंतवादी ताकतों की गुलामी और चाटुकारी करना पसंद नहीं किया इस लिए उसे यह सब झेलना और देखना पड़ा। सामंतवाद की चौखट पर घुटने न टेकना और सामंतवादी ताकतों को माकूल जबाब देना शिव कुमार पटेल से ददुआ बना देता हैं।जिसके ऊपर एक भैंस चोरी के आरोप (जो सिद्ध ना हो सका) से पिता की मौत का बदला लेने तक की गई 8 हत्याएं और जंगल का रुख बैक टू बैक 400 से ज्यादा मुकदमे दर्ज हो गये हो,लेकिन इसके बाद भी जिसकी एक भी तस्वीर पुलिस के पास नहीं थी शिवकुमार पटेल जो एक पिछडे़ शोषित समाज से आते थें उनके ददुआ बनने की पटकथा लिखी जा चुकी थी और ये पटकथा किसी दलित पिछडे़ के चौखट पर नहीं कुछ समंतियों के घर में पुलिस की निगरानी में लिखी गयी।और इसी छांव में पनप रहा था ददुआ का “आतंक” एक ऐसा आतंक जो पुलिस रिकॉर्ड में “अपराधी” और जनता की नजर में देवता बनने तक का सफर चल रहा था।

सामंतवाद के विरुद्ध कागजी लड़ाई नहीं लड़ी

22 जुलाई 2007 को इंसानों के देवता को न्यायिक व्यवस्था की रखवाली पुलिस ने सदा सदा के लिए जंगल की आवाज को जंगल के दबा दिया।शायद इसलिए कि कोई सामंतवाद के खिलाफ मुखर होकर आवाज न उठा सके ,शायद इसलिए कि कोई शोषित समाज की रक्षा और भलाई न कर सकें ,शायद इस लिए कि सामंतियो द्वारा जब मन में आए किसी शोषित समाज के बहन बेटियों को आबरू को लूटे और कोई आवाज न उठा सके इस लिए शिव कुमार पटेल से बने ददुआ को किले को नस्तोनाबूत कर सरकार और सामंतवादी ताकते शोहरत लूटने का काम कर रहीं थी और कामयाब भी रहीं। लेकिन उसके बाद भी कोई ऐसा न था जो शिव कुमार पटेल को पहचान सकता, बस एक आवाज थी,एक कही सुनी कहानी, पुलिस रिकॉर्ड में एक “डकैत” का अंत हो चुका था जो अपने ऊपर और समाज के ऊपर हो रहें हर जुल्म का जबाब सामंतवादी ताकतों को दिया था।शिव कुमार पटेल उर्फ ददुआ ने सामंतवाद के विरुद्ध कागजी लड़ाई नहीं लड़ी जिसने अत्याचार को सहन नहीं किया जिसने खुद को “सभ्य नागरिक” के तमगे से बाहर रख ईंट का जवाब पत्थर से दिया इस लिए उसके साम्राज्य का अंत मौजूद समय में सत्ता में बैठे सामंतवाद और मनुवादी व्यवस्था ने खत्म करने को जो चक्रव्यूह रचा उसमें कामयाब रहें।

मुठभेड़ में एसटीएफ के कई जवान मारे गए 

ददुआ को डकैत बनाने में सबसे बड़ा हाथ उसकी जाति का रहा है।भलें पुलिस रिकॉर्ड में तो यह भी दर्ज है की अंबिका पटेल जिसे दुनिया ठोकिया नाम से जानती थी, यह कोई कहानी नहीं बल्कि पुलिस रिकॉर्ड के दर्ज एक ऐसी घटना है जो साबित कर देती है की शिव कुमार जनता के कितने चहेते थे।
एक रिकॉर्ड यह कहता है की जब एनकाउंटर टीम ददुआ का एनकाउंटर कर के लौट रही थी तभी पहाड़ों के पीछे से तेज गोलाबारी चालू हुई जिसने की एनकाउंटर टीम की इस आवाज को भी उन्ही जंगलों में दफन कर दिया जहां ददुआ की हुई थी। ठोकिया इसके बाद मोस्ट वॉन्टेड अपराधी था। चित्रकूट बांदा के सीमावर्ती फतेहगंज थाना क्षेत्र(बांदा) अंतर्गत बघोलन का टीला बघोलनबारी वन चौकी के पास हुई इस मुठभेड़ में एसटीएफ के कई जवान मारे गए थें।तत्कालीन डीजीपी विक्रम सिंह ने जवानों के क्षत विक्षत शव देखकर तत्कालीन मुख्यमंत्री से ठोकिया की सुपारी ली ली।अपराध जगत में एक अपराधी द्वारा अपराध का ठेका लिए जाना शायद सुपारी ही कहलाता है।
पुलिस को पुलिस कहें भी कैसे ? बीहड़ों में पुलिस आज भी अपराधी और ददुआ आज भी देवता दर्ज हैं।शिवकुमार ने सिर्फ इतना किया बल्कि जहां एक ओर गोलियों की आवाज से बीहड़ को शांत कर रहे थें वहीं दूसरी ओर सपा प्रमुख मुलायम सिंह सामंतवाद के खिलाफ बुलंद इस आवाज को अच्छे से समझ रहे थें और शायद यही वजह थी कि उन्होंने बाल कुमार पटेल (शिवकुमार पटेल के छोटे भाई) को सदन में भेज दिया। बाल कुमार पटेल सांसद थे एक साथ मुखर हुई दो आवाजें दोनों सामंतवाद के विरुद्ध बस एक आजीवन अपराधी बना रहा तो दूसरे को समाजवादी विचारधारा से जोड़कर सामंतवाद के खिलाफ हमेशा लड़ने वाले धोबी पछाड़ में मशहूर समाजवाद की आवाज कै और बुलंद करने के लिए तथा सामंतवादी ताकतों को माकूल जबाब देने के लिए नेता जी मुलायम सिंह यादव ने बाल कुमार पटेल को सासंद समाजवादी पार्टी से बनाकर सामंतवाद के मुह पर करारा तमाचा मारने का काम किया और नेता जी ने उसी परिवार के एक लोग को “माननीय” बना दिया था शायद यह सोच दूरदर्शी थी नेता जी की और पूर्व मुख्यमंत्री स्मृति शेष मुलायम सिंह यादव जी भलीभांति समझते थें समातंवाद की एक ही काट हैं जो समाजवाद के रास्ते से होकर गुजरती हैं और चाहें जुल्म आत्याचार के खिलाफ लडाई लड़ रहीं वीरांगना पूर्व सांसद फूलनदेवी को सदन भेजने का रहा हो या शिव कुमार पटेल उर्फ ददुआ के भाई बाल कुमार पटेल को सदन भेजने का काम रहा हैं सामंतवादी ताकतों को उस दौर में नेता जी के सहयोग से सदन जाना सामंतवाद के मुह पर करारा तमाचा था।