दिल्ली हाईकोर्ट ने जैश -ए-मोहम्मद के पांच आतंकियों की आजीवन कारावास की सजा घटाकर दस साल कारावास में बदल दी। कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने आरोपों की विशालता से प्रभावित हो और इस तथ्य को महत्व नहीं दिया कि दोषियों को पछतावा था और उन्हें पहले उपलब्ध अवसर पर दोषी ठहराया।
जस्टिस सुरेश कुमार कैत व जस्टिस मनोज जैन की खंडपीठ ने कहा, आतंकवादियों की कम उम्र और इस तथ्य के साथ कि उनके पास कोई अन्य दोषसिद्धि नहीं है, ट्रायल कोर्ट का दृष्टिकोण उन्हें सुधारने का होना चाहिए था। जैसा कि ट्रायल कोर्ट ने अपने फैसले में उल्लेख भी किया है। खंडपीठ ने कहा, इसलिए यह एक उपयुक्त मामला है जहां धारा 121ए आईपीसी और धारा 23 यूएपीए के तहत दी गई सजा को कम करने की आवश्यकता है।
दोषी बिलाल अहमद मीर, सज्जाद अहमद खान, मुजफ्फर अहमद भट, मेहराज उद दीन चौपाल और इशफाक अहमद भट को धारा 121ए (भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने की साजिश) और धारा 23 के तहत अपराध के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
रूसी उपन्यासकार को किया कोट…पीठ ने रूसी उपन्यासकार फ्योडोर दोस्तोवस्की के उपन्यास क्राइम एंड पनिशमेंट को कोट करते हुए कहा, जिस व्यक्ति के पास विवेक है वह अपने पाप को स्वीकार करते हुए कष्ट सहता है। जेल के साथ वही उसकी सजा होगी।
पीठ ने कहा, इस मामले में न्याय का उद्देश्य पूरा हो जाएगा यदि सजा को घटाकर दस साल के कठोर कारावास में बदल दिया जाए। हम इस संशोधन के साथ सभी अपीलों का निपटारा करते हुए अपराध के लिए अपीलकर्ताओं को 2000 रुपये के जुर्माने के साथ दस साल के कठोर कारावास की सजा देते हैं।
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