बेटियों को समान अधिकार की बातें धरातल पर लागू नहीं हो पा रहीं। उत्तराखंड में एक तरफ जहां महिलाएं सरकारी नौकरी में आरक्षण की लड़ाई लड़ रही हैं, दूसरी तरफ प्राइवेट सेक्टर में उनके रास्ते बंद किए जा रहे
बेटियों को समान अधिकार की बातें धरातल पर लागू नहीं हो पा रहीं। उत्तराखंड में एक तरफ जहां महिलाएं सरकारी नौकरी में आरक्षण की लड़ाई लड़ रही हैं, दूसरी तरफ प्राइवेट सेक्टर में उनके रास्ते बंद किए जा रहे हैं। रोजगार मेलों का हाल यह है कि वहां महिलाओं को सिर्फ एक चौथाई नौकरियां मिल पा रही हैं।
निजी कंपनियां साधारण पदों के लिए भी सिर्फ पुरुषों के आवेदन ले रही हैं, महिलाओं को पात्रता से ही बाहर कर दिया गया है। कंपनियों के लिए सरकारी स्तर पर गाइडलाइन नहीं होना इसका मुख्य कारण माना जा रहा है। सेवायोजन विभाग के हाल के दो रोजगार मेलों में पुरुषों की तुलना में आधी महिलाओं को भी रोजगार नहीं मिला।
देहरादून में नौ सितंबर को होने वाले रोजगार मेले के लिए निजी कंपनियों ने करीब 25 फीसदी पद पहले ही पुरुषों के लिए आरक्षित कर दिए हैं। जिन पदों पर केवल पुरुषों के आवेदन मांगे गए हैं, उन पर योग्यता के अनुसार महिलाएं भी आवेदन कर सकती हैं। फार्मा सेक्टर की सात कंपनियां ने तो 14 पदों में से 10 पदों पर केवल पुरुषों से आवेदन मांगे हैं।
पुरुषों के लिए रिजर्व पद
माइक्रोबायोलॉजिस्ट 07 पद, टैक्नीशियन ऑपरेटर 10 पद, प्रोडक्शन फार्मा 06 पद, क्वालिटी कंट्रोल 02 पद, अप्रैंटिस ट्रेनी 05 पद, ऑफिसर एग्जीक्यूटिव 07 पद, ऑफिसर इंजीनियरिंग 01 पद, प्रोडक्शन ऑपरेटर 10 पद, कैमिस्ट 05 पद, सर्विस/सेल्स 10 पद, सुरक्षा कर्मी 08 पद, सफाईकर्मी 04 पद, कंप्यूटर सेल्स 03, ड्राइवर 25 पद।
निजी क्षेत्र में मनमानी हो रही है। इसपर अंकुश जरूरी है। हर क्षेत्र में महिलाओं को बराबरी का हक मिलना चाहिए। भेदभाव बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
निर्मला बिष्ट, जिला संयोजक, उत्तराखंड महिला मंच
रोजगार मेलों के लिए कंपनियां अपनी जरूरत के हिसाब से पद निकालती हैं। महिलाओं के कम चयन को लेकर पूछा जाएगा।
अजय सिंह, क्षेत्रीय सेवायोजन अधिकारी
कई क्षेत्रों में महिलाएं पुरुषों से आगे हैं। इसके बाद भी उनके साथ भेदभाव होना दुभाग्यपूर्ण है। सरकारों को निजी क्षेत्रों के लिए नियम बनाने चाहिए।
अनीता शास्त्री, मंडल संयोजिका, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ