बीजिंग:उल्टा चोर कोतवाल को डांटे वाली कहावत ड्रैगन पर पूरी तरह से फिट बैठती है। जिस चीन पर आरोप लग रहे हैं कि वुहान लैब से ही कोरोना फैला, अब चीन इस थ्योरी को बदलने की कोशिशों में जुट गया है। चीन में कोरोना वायरस के सबसे पहले अमेरिका से फैलने का शोर है। गानों, फेसबुक पोस्ट और अन्य सोशल मीडिया मंच के जरिये खबर फैलाई जा रही है कि अमेरिका के मेरीलैंड स्थित फोर्ट डेट्रिक सैन्य अड्डे की लैब में कोरोना वायरस को तैयार किया गया। कोरोना की उत्पत्ति को लेकर अमेरिकी जांच रिपोर्ट के आने से पहले ही चीन में इस बेबुनियाद खबर का प्रसारण तेज हो गया है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, चीन ऐसा घरेलू माहौल बनाने में कामयाब रहा है कि कोरोना को लेकर चीन की अंतरराष्ट्रीय आलोचना पर उसके नागरिक संशय करने लगें। चीन में पिछले कुछ हफ्तों से लोग इस खबर की चर्चा कर रहे हैं, लेकिन बाहर के देशों में इसका कोई असर नहीं है। आक्रामक कूटनीति में विश्वास करने वाले झाओ का ‘वायरस की अमेरिकी उत्पत्ति’ संबंधी इस खबर के प्रसारण में अहम योगदान है।
चीन में अमेरिका में कोरोना वायरस के बनाए जाने को लेकर गाना तक बना दिया गया है जिसके बोल हैं- फोर्ट डेट्रिक का दरवाजा खोलो, गोपनीय सीक्रेट से परदा उठाओ…। इस गाने को चीनी अधिकारी धड़ल्ले से सोशल मीडिया में साझा कर रहे हैं।
हैशटैग फोर्ट डेट्रिक को 10 करोड़ लोगों ने देखा:
चीन में ट्विटर जैसे सोशल मीडिया मंच वीबो पर हैशटैग ‘फोर्ट डेट्रिक’ से संबंधित खबर को 10 करोड़ से अधिक लोगों ने देखा। सबसे पहले झाओ के ही ट्वीट से लोगों का ध्यान फोर्ट ड्रेट्रिक पर गया। उन्होंने ट्वीट किया था-फोर्ट डेट्रिक स्थित बायोलैब को बंद करने का क्या कारण है। इसके बाद चीन की सरकारी सीसीटीवी ने इस खबर पर स्पेशल रिपोर्ट देना शुरू कर दिया।
चीन के सरकारी प्रोपगेंडा अखबार ग्लोबल टाइम्स ने अमेरिका से कोरोना के फैलने को लेकर एक अलग थ्योरी दी है। इस अखबार के मुताबिक फोर्ट डेट्रिक में शोध कर रहे अमेरिका के विशेषज्ञ डॉ. राल्फ बारिक ने कोरोना वायरस को बनाया।
ग्लोबल टाइम्स ने एक ऑनलाइन हस्ताक्षर अभियान चलाया है। इसके तहत चीनी इंटरनेट यूजर्स से अपील की जा रही है कि वह खुला पत्र लिखकर डब्ल्यूएचओ से फोर्ट डेट्रिक में जांच करने की मांग करें। अब तक 2.5 करोड़ हस्ताक्षर एकत्र किए गए हैं।
फोर्ट डेट्रिक एक अमेरिकी सैन्य अड्डा है जो अमेरिका के मेरीलैंड में स्थित है। 13 हजार एकड़ में फैले इस सैन्य अड्डे का इस्तेमाल वर्ष 1931 से किया जा रहा है। वर्ष 1943 से वर्ष 1969 तक यहां स्थित प्रयोगशाला में बायोलॉजिकल हथियार पर गहन शोध का प्रोग्राम चलाया गया। इस प्रोग्राम के बंद होने पर भी यहां अमेरिकी बायोलॉजिकल डिफेंस से जुड़े अन्य प्रोग्राम चलते रहे हैं। यहां की लैब में इबोला और स्मालपॉक्स वायरस पर काफी अध्ययन किए गए। यहीं पर सेना का मेडिकल रिसर्च एंड डेवलपमेंट कमांड और नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट भी है। अगस्त, 2019 में यहां एक घातक जीवाणु पर चल रहे अनुसंधान कार्य को सुरक्षा कारणों से अचानक बंद करना पड़ा।