
मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन स्नान दान के साथ पितरों का तर्पण करना विशेष माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन अपने पितरों का तर्पण करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही वह सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैें।
हिंदू पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मार्गशीर्ष अमावस्या कहा जाता है। इस अमावस्या को अगहन अमावस्या भी कहते है। शास्त्रों के अनुसार मार्गशीर्ष मास भगवान श्री कृष्ण के प्रिय माह में से एक माना जाता है। मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन स्नान, दान के साथ पितरों का तर्पण, श्राद्ध आदि करना लाभकारी होता है। आज के दिन पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध आदि कर्म किए जाते हैं। ऐसा करने से पितरों के लिए मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं। जानिए मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन कैसे करें पितरों का तर्पण।
मार्गशीर्ष अमावस्या 2022 मुहूर्त वार को सुबह 06 बजकर 53 मिनट से शुरू होगी और अमावस्या तिथि का समापन 24 नवंबर 2022 को सुबह 04 बजकर 26 मिनट पर होगा।
स्नान-दान का शुभ मुहूर्त – सुबह 05 बजकर 06 मिनट से सुबह 06 बजकर 52 मिनट तक
मार्गशीर्ष अमावस्या 2022 पर ऐसे करें पितरों का तर्पण
पितरों को जल देने की विधि को तर्पण कहते हैं। सबसे पहले हाथों में कुश लेकर दोनों हाथों को जोड़कर पितरों का ध्यान करना चाहिए। इसके बाद उन्हें आमंत्रित करते हुए इस मंत्र को बोलें- ॐ आगच्छन्तु में पितर एवं गृह्णन्तु जलान्जलिम’ यानी हे पितरों, आइए और जलांजलि ग्रहण करें।
पिता का ऐसे करें तर्पण
अगर आप पिता का तर्पण कर रहे है, तो अपने गोत्र का नाम लेते हुए इस मंत्र को बोलें, गोत्रे अस्मतपिता (पिता का नाम) शर्मा वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः। इस मंत्र को बोलने के साथ ही गंगाजल या फिर जल के साथ दूध, तिल और जौ को मिलाकर 3 बार पिता को जलांजलि दें।
इसी तरह पितामह को दे रहे हैं तो अस्मत पिता की जगह अस्मतपितामह का इस्तेमाल करें
माता का ऐसे करें तर्पण
शास्त्रों के अनुसार, माता का तर्पण पिता से अलग होता है। क्योंकि माता का ऋण सबसे बड़ा होता है। इसलिए उन्हें अधिक बार जल देने का विधान है। जानिए माता का तर्पण करने की विधि।
माता को जल देने का मंत्रः-
अपने गोत्र का नाम लें लेते हुए कहे कि गोत्रे अस्मन्माता (माता का नाम) देवी वसुरूपास्त् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जल वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः। इस मंत्र को पढ़कर जलांजलि पूर्व दिशा में 16 बार, उत्तर दिशा में 7 बार और दक्षिण दिशा में 14 बार दें।
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