ज्योतिरादित्य सिंधिया के चलते मध्य प्रदेश में तत्कालीन कमल नाथ सरकार गिरने को लेकर दिए बयानों से आमने-सामने आए कमल नाथ और दिग्विजय सिंह एक बार फिर साथ आ गए हैं। दोस्ती बरकरार रहना प्रदेश में कांग्रेस नेतृत्व की मुश्किलें बढ़ा सकता है।
अरुण यादव को जोड़कर यह तिकड़ी बन सकती है
अगर 2028 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अरुण यादव को जोड़कर यह तिकड़ी खड़ी हो गई, तो राहुल गांधी द्वारा प्रदेश में युवा नेतृत्व पर लगाया गया दांव भी पलट सकता है। इन दिग्गजों की एकता केंद्रीय नेतृत्व के लिए कई चुनौतियां खड़ी करेगी।
वर्ष 2020 में कांग्रेस सरकार गिरने के मुद्दे पर दोनों नेताओं के बीच पिछले कुछ दिनों से बयान युद्ध छिड़ा हुआ था। दिग्विजय सिंह ने कहा था कि कमल नाथ ज्योतिरादित्य सिंधिया की उपेक्षा कर रहे थे, इस कारण सरकार गिरी थी।
कमल नाथ ने सिंधिया पर साधा था निशाना
जवाब में कमल नाथ ने कहा था कि सिंधिया को यह भ्रम था कि कांग्रेस सरकार दिग्विजय चला रहे हैं, इसलिए सिंधिया ने सरकार गिरा दी थी। इस विवाद के लगभग एक पखवाड़े बाद दोनों दिग्गजों के बीच दिल्ली में बैठक हुई, इसके बाद दिग्विजय सिंह ने इंटरनेट मीडिया पर पोस्ट जारी कर कहा कि हम दोनों के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आए, मन मुटाव भी हुए, लेकिन मनभेद कभी नहीं रहे।
इस पर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के मीडिया सलाहकार केके मिश्रा ने प्रतिक्रिया में दोनों दिग्गजों को कांग्रेस की पहचान, स्थापित चेहरे और कार्यकर्ताओं का आदर्श बताया है। साथ ही लिखा है कि कम से कम मुझे तो यह गलतफहमी नहीं है कि आप दोनों की सार्थक युति के बिना हम प्रदेश में सरकार बनाने का लक्ष्य पूरा कर पाएंगे।
दिग्विजय और कमल नाथ के इस यूटर्न को कांग्रेस नेतृत्व के लिए चुनौती के रूप में देखा जा रहा है। इसकी वजह लंबे समय से दोनों नेताओं की उपेक्षा मानी जा रही है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी दोनों को नापसंद करते हैं। 2023 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से कमल नाथ को हटा दिया गया था।
माना जा रहा है कि दोनों नेताओं की एकजुटता कांग्रेस के लिए मध्य प्रदेश सहित देश में राहुल गांधी विरोधी नेताओं को एकजुट करने में भी मददगार साबित होगी। इसमें सबसे महत्वपूर्ण नाम अरुण यादव का है, जो प्रदेश में कांग्रेस के लिए ओबीसी वर्ग का सबसे बड़ा चेहरा हैं।
जीतू पटवारी को प्रदेश की कमान
पीढ़ी परिवर्तन के फेर में कांग्रेस हाई कमान ने जीतू पटवारी को प्रदेश की कमान सौंप दी, लेकिन दो साल पूरे होने को हैं, अब तक वह कोई प्रभाव नहीं दिखा सके हैं। उनकी अपेक्षा कमल नाथ और दिग्विजय सिंह कम सक्रियता में भी ज्यादा प्रभावशाली साबित हुए हैं।
कमल नाथ का चार दशक से बड़ा राजनीतिक सफर
मध्य प्रदेश के पूर्व मख्यमंत्री कमल नाथ का चार दशक से बड़ा राजनीतिक सफर रहा है, जिसमें उन्होंने कभी आम चुनाव में हार का सामना नहीं किया है। प्रदेश कांग्रेस की कमान मिली, तो सरकार में पार्टी की वापसी भी कराई, वहीं दिग्विजय सिंह अविभाजित मध्य प्रदेश के 10 वर्ष तक मुख्यमंत्री रहे हैं। राष्ट्रीय संगठन में महासचिव के पद के साथ कई राज्यों के प्रभारी की जिम्मेदारी भी निभाई है। अरुण यादव प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं और केंद्र में मंत्री रहे हैं।