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अब पा सकते हैं अपनी खोई हुई संपत्ति कश्मीरी पंडित

नई दिल्ली: 1990 के दशक में जब कश्मीर में आतंकवाद चरम पर था. तब लाखों कश्मीरी पंडितों को अपने घर छोड़ने पडे थे. आतंकवादियों ने कश्मीरी पंडितों के सामने तीन विकल्प रखे थे कि या तो वो इस्लाम कबूल कर लें, मारे जाएं या फिर कश्मीर छोड़कर भाग जाएं. इसके बाद कश्मीर में रहने वाले हिंदुओं को अपने ही देश में विस्थापित होना पड़ा था और ये लोग अपने ही देश में शरणार्थी बन गए थे. 31 साल पहले करीब एक लाख कश्मीरी पंडित परिवारों को अपना घर बार छोड़ना पड़ा था. इनमें से बहुत सारे लोग भारत छोड़कर भी चले गए थे.

हालांकि बाद में बहुत सारे कश्मीरी पंडितों को कश्मीर में बसाने की कोशिश हुई. इसके लिए कश्मीर में अलग अलग कॉलोनियां बनाई गईं, लेकिन इनमें जगह की कमी की वजह से घर बहुत छोटे थे. नतीजा ये हुआ कि कई परिवार एक ही घर में रहने पर मजबूर हो गए. कुछ घरों में तो आज भी एक साथ पांच या उससे ज्यादा परिवार रह रहे हैं. जबकि बहुत सारे कश्मीरी पंडित ऐसे थे, जिनके घरों को जला दिया गया, उन्हें तोड़ दिया गया या फिर उन पर कब्जा कर लिया गया. इसी वजह से वो फिर कभी कश्मीर लौटने की हिम्मत नहीं कर पाए.

अब जम्मू कश्मीर के राज्यपाल ने एक ऐसा पोर्टल लॉन्च किया है, जिस पर वो कश्मीरी पंडित रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं, जिनके घरों को आतंकवाद की वजह से नुकसान पहुंचा था या फिर उनके घर या जमीनों पर कब्जा कर लिया गया था. इस पोर्टल पर अपनी पुश्तैनी जमीन या मकान की जानकारी देने के बाद अगले 15 दिनों के अंदर कार्रवाई शुरू कर दी जाएगी. तो चलिए बताते हैं कि कश्मीरी पंडितों के परिवार आज किन हालात में रहे हैं और इस नई योजना के तहत उनकी घर वापसी कैसे होगी.

1990 के दशक में 60 हजार से ज्यादा हिंदू परिवारों ने कश्मीर में अपने पुश्तैनी घरों को छोड़ दिया था. उनकी घर वापसी के लिए मुकम्मल कोशिशें कभी नहीं हुईं और इसकी चर्चा कभी नहीं होती कि वो आज किस हाल में हैं. यहां हम बात उन कश्मीर पंडितों की कर रहे हैं जो 90 के दशक में घाटी छोड़कर चले गए थे, लेकिन सरकारी आश्वासनों के भरोसे कश्मीर लौट आए.

कई कश्मीरी पंडित इस उम्मीद में कश्मीर लौट आए थे कि उन्हें इनका पुराना सम्मान और पुश्तैनी मकान दोनों मिल जाएगा, लेकिन एक ही फ्लैट में कई परिवारों को रहने पर मजबूर होना पड़ा. एक-एक फ्लैट में 6-7 कश्मीरी परिवार रहते हैं और एक ही किचन में कई परिवारों के चूल्हे लगे हुए हैं. सब अपने हिसाब से जिंदगी बिता रहे हैं. वो भी इस उम्मीद में अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर की स्थिति बदलती है तो उनकी भी बदलेगी. ये लोग जब कश्मीर में बसने के इरादे से आए थे, तब मनमोहन सिंह की सरकार थी. लेकिन तब से लेकर अब तक हालात में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं है. बड़े तो फिर भी जिंदगी बिता ले रहे हैं, लेकिन बच्चों के स्थिति के बारे में सोचिए.

सरकार विस्थापित कश्मीरी पंडितों को उनकी जमीनें वापस दिलाने के लिए गंभीर नजर आ रही है. विस्थापित कश्मीरी पंडितों के लिए एक खास वेब पोर्टल बनाया गया है. इसका नाम www.jkmigrantrelief.nic.in है. इस पोर्टल को कश्मीरी पंडितों की पुश्तैनी जमीन या पुश्तैनी मकान दिलवाने के लिए बनाया गया है. इसमें कब्जाई गई जमीनों को वापस पाने के लिए आवेदन किया जा सकता है. दरअसल 1990 के दशक में इनकी जमीनों और मकानों पर या तो जबरन कब्जा कर लिया गया. या फिर उन्हें इसे बहुत कम दामों में बेचकर कश्मीर से भागना पड़ा था.

इस पोर्टल पर अब तक 745 शिकायतें भी दर्ज हो गई हैं और 30 सालों से विस्थापन का दर्द झेल रहे कश्मीरी पंडितों को अब लग रहा है कि उनकी जमीनें और मकान वापस मिल जाएंगे. कश्मीरी पंडित कई बार अपनी जमीन को वापस दिलाने के लिए सरकार से मांग करते रहे, लेकिन पिछली सभी सरकारों ने जमीनों से कब्जे छुड़ाने के बाद उन्हें वापस दिलाने का आश्वासन दिया. अफसोस ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. हर बार कश्मीरी पंडितों को मायूसी ही हाथ लगी. अनुच्छेद 370 के हटने के बाद अब उन्हें विश्वास हुआ है कि बदल रहे कश्मीर में उनको भी उनका हिस्सा मिलेगा.