हाल फिलहाल में माल भाड़े में कोई इजाफा नहीं हुआ, न दवाओं के रसायन, कच्चे माल की कीमतें बढ़ीं फिर भी कंपनियों ने छह महीने के अंदर दूसरी बार दवाओं के दाम बढ़ा दिए। अधिकांश बढ़ोतरी उन दवाओं की कीमत में हुई है, जिनका सर्वाधिक और ताउम्र इस्तेमाल होता है। कंपनियों ने इन दवाओं के एक पत्ते की कीमत में 5 से 15 रुपये का इजाफा किया है, जिससे पांच प्रतिशत तक दाम बढ़े हैं। इसका मनमानी वृद्धि का खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है।

इससे ब्लड प्रेशर, शुगर, दिल, स्टराइड समेत दूसरी गंभीर बीमारियों का इलाज महंगा हो गया है। इन बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली करीब 30 तरह की दवाओं की कीमतों में लगातार इजाफा हो रहा है। हालात यह है कि एक साल के दौरान पांच से छह बार दवाओं की कीमतों में बढ़ोत्तरी हो चुकी है। लखनऊ केमिस्ट एसोसिएशन के वरिष्ठ सदस्य विकास रस्तोगी ने बताया कि बार-बार दवाओं की कीमतें बढ़ने पर मरीज आपत्ति जता रहे हैं। कंपनियां साल में एक बार में अधिकतम 10कीमत बढ़ा सकती हैं।
आक्रोश दवा विक्रेता वेलफेयर समिति अध्यक्ष विनय शुक्ला के मुताबिक कुछ दवाओं की कीमतें बढ़ाने के लिए सरकार से अनुमति लेनी होती है। कुछ की कीमतें कंपनियां कर सकती हैं। बार-बार दवाओं की कीमतें बढ़ाना गलत है।
दो से 12 रुपये तक की वृद्धि
दिसंबर में कंपनियों ने फिर से नए स्टॉक की कीमतों में वृद्धि की है। दो से 12 रुपये तक बढ़ाए हैं। कंपनियों ने वजह मेडिकल स्टोर संचालकों से साझा नहीं की है। राजधानी में 4800 फुटकर दवा विक्रेता हैं, 3000 थोक दवा विक्रेता हैं। यहां से शहर के साथ-साथ आस-पास के जनपदों को दवा आपूर्ति होती है।
जेनेरिक दवाओं की कीमतें नहीं बढ़ी
एक साल में जेनेरिक दवाओं में वृद्धि नहीं हुई है। कारोबारियों का कहना है यदि माल-भाड़ा या फिर रसायन की कीमतों में इजाफा होता है, उसका फर्क जेनेरिक दवाओं पर भी पड़ता। बुखार से ब्लड प्रेशर, दिल आदि के दवाओं की कीमतें नहीं बढ़ीं।
इन दवाओं की कीमतें बढ़ी (दाम प्रति पत्ता रुपये में)
दवा पुरानी कीमत नई कीमत
डेफकॉरट 124 136
एजिथ्रोमाइसिन 47 52
टेल्मीसेट्रॉन 109 121
टेल्मीकाइंड 21 23
जीरोडॉल एसपी 107 118
ईको स्प्रिन 55 60
एफएसडीए के सहायक आयुक्त ब्रजेश कुमार ने बताया कि दवाओं की कीमत बढ़ाने और कम करने का अधिकार एफएसडीए का नहीं होता है। केंद्र सरकार दवाओं की कीमतों पर नियंत्रण करती है।
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