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माउंटेन मौन दशरथ मांझी का सरकार नहीं रख रहीं मान ,आखिर क्यूं नहीं देती भारत रत्न का सम्मान 

दिलों में जज्बा हो और हौसला हो तो पहाड़ों का भी सीना चीर कर रास्ता निकाला जा सकता हैं।और यही जज्बा दशरथ मांझी के अंदर रहा जो कमेरा वादी समाज के लिए आदर्श मार्गदर्शक एवं प्रेरणा स्रोत के रूप में मिलता है।नाम तो दशरथ मांझी था मगर हौसले ने माउंटेन मैन का नाम दे दिया कहा जाता हैं पक्का इरादा ,एंग्री यंग मैन,दृढ़ संकल्प, धुन के पक्के,जुल्म के खिलाफ विद्रोह करने वाले दशरथ मांझी का जन्म 14 जनवरी 1929 को गहलोर गांव,गया में एक दलित परिवार में हुआ था। गरीबी के कारण उनकी बहुत ज्यादा पढ़ाई लिखाई नहीं हो पाई।दशरथ मांझी के पिता ने जमींदार से कर्ज लिए थें जिसे नहीं लौटाने के कारण इनके पिता ने जमींदार के यहां इनको बंधक/बंधुआ मजदूर रख दिया। विद्रोही स्वभाव के होने के कारण इनको जमींदार की गुलामी पसंद नहीं आई और भाग कर धनबाद चले गए। वहीं कोयला खदान में काम करने लगे। 1955 में 7 वर्षों के बाद पुनः अपने गांव लौटे। वही एक लड़की से इन्हें प्रेम हुआ और 1960 में उससे शादी की। पत्नी को पानी लाने के लिए पहाड़ के उस पार जाना पड़ता था। वही अतरी और वजीरगंज ब्लॉक की दूरी पहाड़ के कारण 55 किलोमीटर होती थी। उसे पार करने के लिए लोगों को काफी कठिनाई होती थी।

एक दिन पहाड़ी पार करते हुए उनकी पत्नी के गिरने से घायल हुई। बाद में बच्चे जन्म देने के क्रम में उनके मृत्यु हो गई। इन्हीं घटनाओं ने उन्हें पहाड़ का सीना चीरने के लिए प्रेरित किया। केवल एक हथोड़ा और छेनी से अकेले ही 360 फीट लंबा,30 फुट चौड़ा और 25 फीट ऊंचा पहाड़ को काटकर एक सड़क बना डाला।उन्हें सड़क बनाने के लिए 22 वर्षों तक अथक,अनवरत परिश्रम करना पड़ा,तब जाकर के अतरी और वजीरगंज की दूरी 55 किलोमीटर से घटकर 15 किलोमीटर हो गई। लोगों को पानी ले जाने आने में भी सुविधा होने लगी। इन्होंने जब पहाड़ तोड़ना शुरू किया तो लोग इन्हें पागल कहा करते थे। धुन के पक्के,उनके जिद के आगे पहाड़ भी बौना पड़ गया और छेनी हथौड़े ने पहाड़ के बीच रास्ता बना डाला। एक बार इंदिरा गांधी गया में आई थी। तब उनका मंच टूट गया था,तो मंच को संभाले दशरथ मांझी और उनके साथियों ने रखा।इसी कारण इंदिरा गांधी का कार्यक्रम हो पाया। इसके बाद इंदिरा गांधी जी उनके साथ फोटो खींची और मदद की बात कही।वहां के जमींदारों ने उनसे अंगूठा लगाकर मदद के नाम पर 25 लाख रुपए उनसे ठग लिया। इसकी शिकायत करने वह मात्र ₹20 लेकर दिल्ली ट्रेन से जा रहे थे। जहां टीटी ने उन्हें ट्रेन से उतार दिया। किसी तरह दिल्ली पहुंच गए।उन्होंने इंदिरा गांधी के साथ अपनी फोटो सुरक्षा गार्ड को दिखाई तो गार्ड ने उस फोटो को फाड़ दिया। उन्हें पीएम इंदिरा गांधी से मिलने नहीं दिया।अंततः थक हार कर वापस आ गए। गरीबी मुफलिसी में जीने वाले एंग्री यंग मैन दशरथ मांझी लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत है। उनके जीवन पर माउंटेन मैन फिल्म भी बना। पद्मश्री के लिए उन्हें नामित किया गया। आमिर खान ने सत्यमेव जयते के सीजन 2 में उनकी कहानी लोगों तक पहुंचाई। ऐसे महान व्यक्ति,धुन के पक्के,दशरथ मांझी की मृत्यु, लिवर में कैंसर के कारण दिल्ली एम्स में इलाज के दौरान 17अगस्त 2007 में हो गई।एक संघर्षशील जीवन का अंत हो गया। आज उनके जयंती के अवसर पर उनके श्री चरणों में सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी जब होने बिना भेदभाव किए सरकार भारत रत्न से नवाजे और दशरथ माझी के नाम पर किसी जिले चौराहे का नाम रखें तथा प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक पाठ्यक्रमों में दशरथ मांझी को पढ़या जाए। शोषित वंचित पीडि़त समाज से आने वाले दशरथ मांझी को दशकों बाद भी सरकारों ने सम्मान नहीं दे पायी । वर्तमान दौर में तमाम जिले के नाम बदले गये ,योजनाओं के नाम बदले गये, शहरों के नाम बदले गये लेकिन माउंटेन मौन के नाम पर सरकारों ने पता नहीं क्यूँ परहेज कर दिया समझ में नहीं आया । क्रिकेट सिर्फ भावनाओं का खेल उसमें भारत रत्न दिया जा सकता हैं लेकिन अपनी जवानीं 22 सालों तक पहाड़ों का सीचा चीरने में कुर्वान करने वाले दशरथ मांझी को भारत रत्न क्यूं नहीं ? लोग आज भी कहते हैं कि

प्यार की निशानी हैं मांझी का पहाड़।शायद दशरथ मांझी की लव स्टोरी पर कई फिल्में बनाई गई है और बने भी क्यूं न लेकिन उससे जो कमाई हुई मांझी के नाम पर और उनके परिजनों को क्या फायद मिला शायद इसपर किसी ने कोई सवाल क्यूं नहीं किया उन डारेक्टरो से ,मांझी के नाम पर आखिर क्यूं नहीं हैं कोई मेडिकल कॉलेज क्यूं नहीं जैसे मुगल बादशाह शाहजहां ने अपने प्यार की खातिर ताजमहल बना डाला था. इस तरह उन्होंने अपनी पत्नी की खातिर पहाड़ का सीना चीर डाला और जीवन के 22 साल पहाड़ को काटकर सड़क बनाने में लगा दी. दशरथ मांझी के बेटे भागीरथ मांझी बताते है कि उस वक्त दशरथ मांझी को लोग पागल कहते थे. वह सुबह होते हीं छेनी हथौड़ी लेकर पहाड़ को काटने चले जाते थे।और मैं आज मानता हूँ कि सरकार मैं बैठकर दशरथ मांझी को नजरअंदाज करने वाले लोग पागल हो गयें हैं जो उनके हौसलें को नहीं समझ पा रहें हैं ।दशरथ मांझी को भारत रत्न की उपाधि से नवाजे जाने की मांग को लेकर गया से दर्जनों लोग पैदल दिल्ली यात्रा पर निकले हैं. पर्वत पुरुष दशरथ मांझी के गांव गहलौर से पैैदल यात्रा की शुरूआत की गई है. गहलोर स्थित बाबा दशरथ मांझी के समाधि स्थल से पदयात्रा की शुरुआत हुई. भारत रत्न की मांग को लेकर यह पैदल यात्रा चल रहीं हैं लेकिन सरकार को कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा हैं।सत्येंद्र गौतम मांझी बाबा दशरथ मांझी उद्यान सेवा संस्थान के अध्यक्ष ने कहां बाबा का बनाया गया यह रास्ता मील का पत्थर साबित हुआ है।बाबा ने इतना बड़ा काम किया तो उन्हें पुरस्कार दिलाने के लिए दिल्ली पैदल यात्रा कर रहे हैं, जो कि 2 महीने की रहेगी. वहां पहुंचकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मांग करेंगे कि बाबा को भारत रत्न मिले. इस तरह करोड़ों लोगों का यह सम्मान होगा. 35 लोग अस्थाई रूप से गहलोर घाटी से दिल्ली के लिए निकले हैं. कुछ लोग बीच में अस्थाई रूप से जुड़ते रहेंगे और बाबा को भारत रत्न की मांग को लेकर पैदल यात्रा चलती रहेगी।खैर गया जिला अंतर्गत गहलौर में पहाड़ काटकर रास्ता बनाने वाले दशरथ मांझी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। वे माउंटेनमैन के नाम से भी जाने जाते हैं उन्हें यह सम्मान दिया जाना चाहिए।