गांधी जी के स्वच्छता अभियान में मन की स्वच्छता एक प्रमुख हिस्सा था। क्या मोदी सरकार के स्वच्छ भारत अभियान में जनमानस के अंदर सफाई को लेकर सकारात्मक भाव पनप पायेंगे। सच यह भी है कि भारतीयों को साफ-सफाई एवं स्वच्छता जैसे विचार थोड़े बौने प्रतीत होते हैं, यह किसी और का काम समझते हैं जबकि गांधी जी ने कहा है कि हर प्रत्येक व्यक्ति में धोबी, साफ-सफाई करने वाला, भोजन पकाने वाला आदि निहित होते हैं। बीसवीं शताब्दी में जब गांधी जी का आगमन हुआ तो स्वच्छता कोई साधारण कार्य नहीं रहा। गांधी जी क्रांति और आंदोलन के अगुवा थे। सत्य और अहिंसा के हथियार से समाज में फैली छल-कपट, झूठ-फरेब तथा समाज को हिंसा से स्वच्छ बनाने का प्रयास किया।
इतना ही नहीं गांधी ने मन के मैल को भी धोने की विचारधारा दी। एक अच्छे विचार और एक बुरे विचार का भी अंतर बताया। मन पर काबू रखना, मन का रख-रखाव करना और कुरीतियों के प्रति मन? स्थिति बनाना यह गांधी विचारधारा से निकले अचूक दर्शन हैं। लेकिन आज की ढस्वच्छता सिर्फ सड़क पर कूडे़ उठाने से दूर होगी या मन्दिर, अस्पताल, गिरजाघर, मस्जिद, घर, कार्यालय, होटल, बगीचा आदि, के अन्दर या बाहर पड़े कचरे को हटाने से दूर होगी या यूं कहें जो आपके अंदर जाति का धर्म का मजहब का ऊच नीच का भेदभाव का जो कचरा भरा हैं क्या हमें उसे भी साफ करने की जरूरत हैं या झाडू उठाए और कचरा साफ करते हुए चार लोगों के साथ सोशल मीडिया पर फोटो डाल दिए उसी से सब स्वच्छ माना जाए। आपका शरीर, मन, दिल, हृदय, आत्मा स्वच्छ है क्या? क्या आपके विचार, आहार-व्यवहार, आदतें व चरित्र इत्यादि भी स्वस्थ, सुंदर, आकर्षक-मनमोहक नहीं होने चाहिए? यदि होने चाहिए तो ये प्रतिदिन क्यूं नहीं क्या जरुरी हैं बापू की जयंती पर ही हम स्वच्छता का पाठ पढे़।मेरी समझ से “स्वच्छता अभियान” बहुत विस्तार एवं व्यापक है। जो टेलीविजन के जरिए दिखाया जाता है, क्या यही स्वच्छता अभियान है। करोड़ों-अरबों रुपए खर्च करना ही स्वच्छता अभियान तो नहीं।मां गंगा की सफाई में अनेक वर्षों से हमारे और आपके रूपए- पैसे स्वाहा नहीं हो रहें हैं क्या! अगर नहीं, तो फिर हम-सब आपसे सहमत हैं। हम सभी और बढ़-चढ़कर हिस्सा लें, इस महान अभियान को सफल बनाने हेतु! तनिक विचार अवश्य कीजिए।खैर शोषित वंचित पीडि़त हाशिए पर रहने वाले समाज के प्रति फैली गंदगी को भी स्वच्छता अभियान का हिस्सा होना चाहिए ताकि कोई अपमानित न हो पाए ।मन में गंदगी और जुबां पर बंदगी सिर्फ दिखावे के लिए हैं अगर तन की गंदगी बीमारी लाती है तो मन की गंदगी महामारी लाती है, जब तक इन्सान का मन और सोच स्वच्छ नहीं होगा स्वच्छता का कोई भी अभियान कारगर साबित नहीं होगा, इसलिए हम देखते हैं कि घर का मुखिया तो बाहर स्वच्छता अभियान में भाग ले रहा है और उसके घर वाले अपने घर का कचरा दूसरे की छत पर अथवा दूसरे के खाली प्लाट में फेक रहे हैं।गली मुहल्ले और घर की गंदगी तो सिर्फ एक सीमित क्षेत्र को प्रभावित कर प्रदूषण और बीमारी का कारण बनती है लेकिन इन्सान की सोच मन और दिल में गंदगी हो तो इन्सानी समाज एक बड़ी मानव त्रासदी की ओर त्रीव गति से अग्रसर होता है। आज स्वच्छता की बात करने वाले तमाम सफेद पोश काली कमाई कर देश को खोखला बना दिए हैं जो जाति धर्म मजहब के नाम पर गंदगी फैलाने में तनिक भी देर नहीं लगाते यदि ओ भी तन की स्वच्छता का सबसे अनिवार्य कार्य कर ले तो नफरत खत्म हो जायेगीं। आज स्वच्छता अभियान मात्र खानापूर्ति के लिए होते हैं जिनका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं होता, अगर हमें वाकई स्वच्छता की चिन्ता होती तो हम उन तमाम बातों को बढ़ावा देते जो इसके लिए जरूरी हैं, अगर बढ़ावा न भी देते तो विरोध तो हरगिज न करते।मीडिया चैनलों पर डिबेट के नाम पर बैठकर एक दूसरे के करेक्टर पर कीचड़ उछालने का गंदा खेल होता है, महापुरुषों की शान में अभद्र भाषा तक का उपयोग कर दिया जाता है,संसद में बैठकर धर्म और जाति के नाम पर सड़क छाप गाली दी जाति हैं क्या ये वहीं लोग हैं जो स्वच्छता के ठेकेदार हैं जो करोडों के माकानों में लक्जरी गाडियों में खुद टहलते हैं और गरीब दिहाड़ी करते करते जिहालत भरीं जिंदगी जीता हैं कर्ज से दबा किसान फांसी के फंदो को चूमता हैं और उद्योगपतियों का लाखों हजारों करोड़ रुपये लोन का माफ कर दिया जाता हैं नौजवान बेकार और बेरोजगार घूमता हैं दर दर की ठोकरे खाता हैं सदन में बैठकर काली कमाई वाला नेता मौज उडा़ता हैं क्या यहीं स्वच्छता हैं आखिर हम कैसा सपना देख रहें हैं जो गांधी को रात दिन कोसते हैं वहीं गांधीवादी होने का उपदेश देते हैं।
*1922 के दौर में असहयोग आंदोलन खत्म हो गया था, गांधी को जेल हो गयी हालांकि 1924 में जब बीमारी के चलते उनकी रिहाई हुई तो एक नए गांधी का भी अवतार हुआ था। इस काल में गांधी अतिरिक्त स्वच्छता, भेद-भाव को समाप्त करना और समस्त भारतवासियों में एकता हेतु सारे कार्यक्रमों को आगे बढ़ाया। गौरतलब यह भी है कि गांधी ने क्रमिक तौर से जहां एक ओर भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को बढ़ाया वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीयता से भी लोगों को ओत-प्रोत किया। जिसमें ऊंच नीच के अंतर को समाप्त करने को लेकर स्वच्छता अभियान एक अहम हिस्सा था*
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी सिर्फ एक नाम ही नहीं, बल्कि विचारधारा का नाम है। सत्याग्रह, सत्य व अहिंसा, स्वदेशी, स्वच्छता, सेवा भाव, स्वानुशासन की जो सीख गाँधी जी ने दी, आज सम्पूर्ण दुनिया इसकी कायल है और इन पर शोध कर रही है। आज युवा पीढ़ी को भी गाँधी जी के इन विचारों से जोड़ने की जरूरत है, यही सच्चे रूप में उनके प्रति श्रद्धांजलि होगी।