उत्तर प्रदेश के आगरा में यमुना नदी की तलहटी में सिल्ट और प्लास्टिक जम गई है। इससे भूजल रिचार्ज बंद हो गया है। ऐसे में यमुना में पानी कम होने के कारण प्रदूषण बढ़ेगा। इससे तास सहित अन्य स्मारकों गोल्डी काइरोनोमॉस जैसे कीड़ों का हमला बढ़ सकता है। इसकी डी-सिल्टिंग के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। इस पर 22 अप्रैल को सुनवाई होगी।
रविवार को यमुना छठ थी। माना जाता है कि इसी दिन यमुना का जन्म हुआ था। लेकिन, यमुना स्वयं अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही है। सामाजिक कार्यकर्ता केसी जैन ने बताया कि यमुना में सिल्ट जमा होने से जलधारण क्षमता घट गई है। सिल्ट के नीचे प्लास्टिक की परत भी जम गई है। यमुना से भूजल री-चार्जिंग प्रभावित है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में यमुना की डी-सिल्टिंग के लिए याचिका दायर की है।
रिवर कनेक्ट कैंपेन के संयोजक ब्रज खंडेलवाल ने बताया कि यमुना के प्रति जनप्रतिनिधि उदासीन हैं। किसी भी दल ने चुनावी एजेंडे में यमुना को शामिल नहीं किया। दस साल से यमुना प्रेमी रोज नदी के घाट पर इस उद्देश्य से आरती उतार रहे हैं कि लोग नदी से जुड़े। निर्मल व अविरल जलधारा बहे।
मथुराधीश मंदिर के महंत जुगल श्रोतिया ने कहा कि यमुना का पानी सिंचाई के लायक भी नहीं रहा। जिस नदी के किनारे बृज की संस्कृति रची-बसी आज उसकी दुर्दशा से सनातनी आस्था दुखी है।
60 नाले घोल रहे गंदगी, बैराज भी रुका
यमुना पर बैराज की मांग चार दशक से उठ रही है। तीन बार शिलान्यास के बाद भी बैराज नहीं बना। 2017 में सूबे की कमान संभालने के बाद पहली बार सीएम योगी आगरा आए थे। तब उन्होंने ताजमहल के पार्श्व में नगला पैमा में रबर डैम की घोषणा की थी। बजट मिला लेकिन सालभर बाद भी बैराज तो क्या रबर डैम तक नहीं बन सका।
अधिवक्ता केसी जैन ने बताया कि यमुना में 90 नाले गिरते हैं। इनमें 30 आंशिक रूप से टैप हैं। 60 नाले गंदगी घोल रहे हैं। इसके कारण यमुना में कीड़े पनप रहे हैं, जो ताजमहल सहित यमुना किनारे बने अन्य स्मारकों को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
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