पूर्व मुख्यमन्त्री होने के कारण येदुरप्पा की गिरफ्तारी पर रोक क़ानून का मज़ाक- शाहनवाज़ आलम
सीजेआई चंद्रचूड़ जी को बताना चाहिए कि क्या क़ानून के समक्ष सबके बराबर होने का सिद्धन्त अब बदल गया है
लखनऊ, 18 जून 2024. अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने कर्नाटक हाईकोर्ट के जज एस कृष्ण दीक्षित द्वारा कर्नाटक के वरिष्ठ भाजपा नेता वीएस येदुरप्पा को पूर्व मुख्यमन्त्री होने के कारण पोस्को के मामले में गिरफ्तारी से छूट देने को क़ानून का मज़ाक बताया है. उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार में कानून के समक्ष सभी के बराबर होने का सिद्धांत दम तोड़ चुका है.
कांग्रेस मुख्यालय से जारी प्रेस विज्ञप्ति में शाहनवाज़ आलम ने कहा कि हाल के सालों में राजनेताओं से जुड़े मामलों में जजों द्वारा सेलेक्टिव नज़रिए से फैसले सुनाने के उदाहरण बढ़े हैं. आख़िर ऐसा कैसे हो जाता है कि विपक्षी दलों के मुख्यमन्त्रीयों हेमन्त सोरेन और अरविंद केजरीवाल को कम आपराधिक चार्ज के मामलों में भी अदालतें जेल भेज देती हैं और नाबालिग बच्ची के यौन शोषण के गंभीर आरोप से घिरे भाजपाई नेता को पूर्व में मुख्यमन्त्री रहने के कारण गिरफ्तारी से छूट दे दी जा रही है. उन्होंने कहा कि इससे पहले भी बरेली के जिला जज ने एक मामले के फैसले में मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ को ‘दार्शनिक राजा’ बताया था.
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि मीडिया में अपनी सचेत मुख्य न्यायधीश की छवि गढ़ने की कोशिश करने वाले डी वाई चंद्रचूड़ जी को इस मुद्दे पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए कि क्या उनके मुख्य न्यायाधीश रहते हुए अब सारे लोग कानून के समक्ष बराबर नहीं रह गए हैं और क्या जेल सिर्फ़ विपक्षी नेताओं को ही जाना होग?
उन्होंने कहा कि नागरिकों में ऐसी धारणा बनती जा रही है कि भाजपा से जुड़े किसी भी बड़े नेता के खिलाफ़ संगीन से संगीन आरोप में भी न्यायपालिका कार्यवाई करने का साहस नहीं दिखा पा रही है. वहीं, 370, सीएए-एनआरसी, यूनिफॉर्म सिविल कोड, पूजा स्थल अधिनियम 1991, राज्यपालों की भूमिका या मणिपुर की राज्य प्रायोजित हिंसा जैसे आरएसएस के वैचारिक एजेंडों पर भी अदालतें सरकार के आगे झुकती जा रही हैं. आम लोगों में बनती यह धारणा लोकतंत्र के लिए घातक है
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