बांज के वृक्षों पर खतरा मंडरा रहा है। अभी तक बांज में होने वाली एक्यूट ओक डिक्लाइन (एओडी) बीमारी यूरोप में मिली थी, अब यह हिमालय मेंं पहली बार मसूरी में मिली है। बांज में होने वाली बीमारी पर एक रिसर्च पेपर भी इंडियन फॉरेस्टर जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
सामान्य तौर पर बांज 1700 मीटर से अधिक ऊंचाई पर मिलता है। मसूरी में एओडी बीमारी का अक्तूबर 2023 में पता चला। इसके बाद चार लोगों ने इस पर अध्ययन किया और रिसर्च पेपर मई में इंडियन फॉरेस्टर जर्नल में प्रकाशित हुआ। अध्ययन में शामिल मुख्य वन संरक्षक मनोज चंद्रन बताते हैं कि एओडी बीमारी का समूह है, पहले यह बीमारी यूरोप में रिपोर्ट हुई थी।
अब हिमालय में होने का पता चला है। इसका पता चलने पर तत्कालीन मसूरी वन प्रभाग के डीएफओ वीके सिंह, तत्कालीन वन निगम के जीएम आकाश वर्मा और ओक ग्रोव्स स्कूल के प्रिंसिपल नरेश के साथ अध्ययन शुरू किया गया। इसमें पता चला कि इलाके के करीब 100 पेड़ ऐसे थे जो इस बीमारी की चपेट में आ गए हैं।
मानो वृक्ष रो रहा हो…
बीमारी से प्रभावित वृक्ष की टहनियों और पत्तियों में बीमारी के लक्षण मिले, टहनियों में जगह-जगह पर दरारें पड़ गई थी और उनमें से एक काले रंग का गाढ़ा द्रव्य निकल रहा था। यह पूरे वृक्ष में जगह-जगह दिखाई देता है। ऐसा लगता है मानो वृक्ष रो रहा है। यह बीमारी वृक्ष की ऊपरी पत्ती और टहनी से शुरू होती है। इस बीमारी के कारण वृक्ष कमजोर हो जाता है और उस पर दूसरी बीमारी और कीड़े लग जाते हैं।
तीन से छह साल में सूख जाता है वृक्ष
मुख्य वन संरक्षक मनोज चंद्रन कहते हैं कि एओडी की चपेट में आने के बाद पेड़ तीन से छह साल में सूख जाता है। इस बीमारी का कारण क्या है? अभी तक इसके बारे में ठोस जानकारी सामने नहीं आ सकी है।
वृक्ष में जो बैक्टीरिया मिले हैं, उससे बीमारी हुई है या बीमारी के बाद बैक्टीरिया आए हैं, अभी इसके बारे में पता चलना और जानकारी सामने आना बाकी है। पर बीमारी का एक कारण जलवायु परिवर्तन को भी माना जा रहा है, जिन 100 पेड़ों में यह बीमारी देखी गई है उसमें कई पेड़ सूखने की स्थिति में है, कुछ सूख गए हैं। जिन वृक्षों में बीमारी मिली है, वह देहरादून से मसूरी जाने की तरफ पहले पड़ते हैं, पहले यहां पर काफी बर्फबारी होती थी, जो अब नहीं होती है।
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