लोगों की रोशनी छिन रहा ऑटोइम्यून डिजीज यूवाइटिस रोग की पकड़ अब आसान हो सकेगी। एम्स के विशेषज्ञों ने एक अध्ययन करके इस रोग के प्राथमिक कारणों को जाना है। आने वाले दिन में और शोध कर रोग का इलाज भी तलाशा जाएगा।
एम्स के बायोटेक्नोलॉजी व आरपी सेंटर के डाक्टरों व विशेषज्ञों ने मिलकर यह शोध किया है। यह शोध हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल इम्युनोलाजी लेटर्स में प्रकाशित हुआ है। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में प्रति एक लाख लोगों में 730 में इस बीमारी की आशंका रहती है। मौजूदा समय में रोग का इलाज नहीं है।
यह रोग 20 से 50 साल की आयु वर्ग में होने की सबसे ज्यादा आशंका रहती है। ऐसे में डॉक्टर उम्मीद कर रहे हैं कि शोध के बाद रोग को बढ़ने से रोका जा सकेगा। साथ ही भविष्य में विस्तार से शोध होने पर इसका इलाज भी खोजा जा सकेगा।
शोध में भागीदार व एम्स के बायोटेक्नोलॉजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा. रूपेश के श्रीवास्तव ने बताया टीएच 17 व टी-रेग सेल खून के अलावा आंखों की जेल (एक्विअस ह्यूमर) में भी पाए जाते हैं। खून में टीएच 17 व टी-रेग सेल के असंतुलन से आंखों में यूवाइटिस होने की आशंका होती है। ऐसे में खून में टीएच 17 व टी-रेग सेल में असंतुलन की जांच कर आंखों में होने वाले यूवाइटिस की पहचान की जा सकती है। पहचान होने से इलाज जल्दी शुरू हो सकता है और आंख की रोशनी बच सकती है।
उनका कहना है कि खून में टीएच 17 व टी-रेग सेल के बीच असंतुलन से सूजन व आटोइम्यून की कई अन्य बीमारी होने की बात पहले कुछ शोधों में सामने आ चुकी है, लेकिन आंखों के तरल पदार्थ में होते हैं, यह बात पहले किसी शोध में सामने नहीं आई थी।
20 मरीजों पर हुआ शोध
इस शोध में 10 पीड़ित मरीज और दस स्वस्थ लोग शामिल किए गए। शोध में पाया गया कि आंखों की जेल (एक्विअस ह्यूमर) टीएच17 व टी-रेग सेल थे। यूवाइटिस से पीड़ित मरीजों की आंखों से लिए गए सैंपल में टीएच17 बढ़ा हुआ था और टी-रेग सेल कम हो गया था। इसके बाद ब्लड से सैंपल लेकर उसका तुलनात्मक अध्ययन किया गया। जिसमें पाया गया कि यूवाइटिस से पीड़ित मरीजों के ब्लड़ में भी टीएच17 बढ़ गया था और टी-रेग सेल कम हो गया था।
शरीर की कोशिकाओं को होता है नुकसान
आरपी सेंटर के डॉ. रोहन चावला ने बताया कि इस रोग में अपने शरीर की प्रतिरोधक क्षमता शरीर की कोशिकाओं को ही नुकसान पहुंचाने लगती हैं। यूवाइटिस होने पर आंख की कार्निया व लेंस के बीच की परत पर सूजन होने लगती है। इससे आंखों में दर्द व लाली आने लगती है। इसके अलावा आंखों की दृष्टि धुंधली होने लगती है। जल्द इलाज शुरू नहीं करने पर आंखों की रोशनी चली जाती है। समस्या यह है कि इस बीमारी की जल्दी पहचान के लिए कोई जांच नहीं है।
रोग का अनुमानित प्रसार
आयु वर्ग फीसदी
बच्चे 5 -16%
बुजुर्ग 6-21%
पूर्ववर्ती यूवाइटिस 45% मामले
मध्यवर्ती 32% मामले
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