बरेली से आठ बार सांसद रहे संतोष गंगवार का नया ठिकाना अब झारखंड का राजभवन होगा। राष्ट्रपति ने राज्यपाल नियुक्त कर उन्हें यह अहम जिम्मेदारी सौंपी है। शहर से राज्यपाल नियुक्त होने वाले वह पहले राजनेता होंगे। वह वर्ष 1989 से वर्ष 2004 तक लगातार सांसद रहे। सिर्फ वर्ष 2009 में कांग्रेस ने उनका विजय रथ रोका था। उसके बाद वर्ष 2014 व 2019 में वह फिर लगातार सांसद चुने गए। वह केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी व मोदी सरकार में मंत्री भी रहे।
इस बार लोकसभा चुनाव में उनका टिकट काट दिया गया था। उनकी आयु 75 वर्ष होने के नाते टिकट कटने की बात कही गई। पार्टी ने उनकी जगह छत्रपाल गंगवार को यहां से चुनाव लड़ाया। साथ ही उसी समय से संतोष गंगवार को भविष्य में बड़ी जिम्मेदारी मिलने के कयास भी लगाए जा रहे थे।
पीलीभीत की पहली जनसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे मिलने के अंदाज से जता दिया था कि संतोष गंगवार का टिकट भले ही काटा गया है, लेकिन उनका प्रभाव कम नहीं हुआ। बाद में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने भी अलग-अलग कार्यक्रमों में उन्हें पूरा सम्मान दिया।
देर रात खबर मिलने पर जागे और जताया अभार
राष्ट्रपति भवन से विज्ञप्ति जारी होने के बाद जब रात करीब 12 बजे संतोष गंगवार को राज्यपाल बनाए जाने की खबर सार्वजनिक हुई तब वह अपने घर में रात्रि विश्राम करने चले गए थे। लोगों ने उनके घर पर व शुभ चिंतकों को फोन किया तो बताया गया कि वह सो गए हैं, लेकिन बधाइयों का सिलसिला तेज हुआ तो रात डेढ़ बजे के बाद वह जाग गए। लोगों की बधाई स्वीकार की और आभार जताया। यही नहीं घर में पहुंचे समर्थकों ने मिठाई भी खाई। इसके बाद देर रात तक उन्हें बधाई देने का सिलसिला चलता रहा।
वर्ष 1984 से शुरू हुआ राजनीतिक सफर
वर्ष 1948 में जन्मे और बरेली कॉलेज से बीएससी की पढ़ाई के साथ ही एलएलबी की उपाधि हासिल करने वाले संतोष गंगवार का चुनावी सफर वर्ष 1984 में शुरु हुआ था। हालांकि 1984 में पहला चुनाव वह कांग्रेस उम्मीदवार आबिदा बेगम से हार गए थे। इसके बाद 1989 में वह फिर से लोकसभा चुनाव लड़े और जीत हासिल कर पहली बार सांसद बने।
इसके बाद वर्ष 1991, 1996, 1998, 1999, 2004 में लगातार जीत का सेहरा उन्हीं के सिर सजा। उनकी पहचान कुर्मी बिरादरी के प्रभावशाली नेता के रूप में है। हालांकि वह सभी वर्गों में लोकप्रिय हैं। वर्ष 2009 में कांग्रेस से प्रवीण सिंह ऐरन ने उनका विजय रथ रोका था। उसके बाद 2014 व 2019 में वह फिर चुनाव लड़े और जीत हासिल की।
अनुशासित सिपाही होने का मिला फल
बेदाग व जनप्रिय रहते हुए लंबा सियासी सफर तय करने वाले संतोष गंगवार भाजपा से सदैव अनुशासित सिपाही के रूप में जुड़े रहे। आठ बार सांसद रहने और कोई बड़ा विरोध न होने के बावजूद पिछले लोकसभा चुनाव में टिकट काटे जाने पर भी वह विचलित नहीं हुए थे।
अमर उजाला से बातचीत में उन्होंने कहा था कि पार्टी ने हमारा बहुत साथ दिया। इसके लिए पार्टी के हम आभारी हैं। क्योंकि पार्टी ही चुनाव लड़ाती है। हमसे जो हो सका, वह हमने किया। अब बदलाव की बात होनी चाहिए। इसलिए नए का स्वागत है, उसे अच्छे बहुमत से जिताने का प्रयास करेंगे।
यही नहीं उन्होंने इसके बाद छत्रपाल गंगवार को चुनाव भी लड़ाया और प्रचार भी किया। हालांकि उस समय कई बार उनके समर्थकों की नाराजगी सामने आई। प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी की मौजूदगी में उन्होंने नाराजगी तक जता दी थी, लेकिन संतोष गंगवार ने कभी धैर्य नहीं खोया और पार्टी से जुड़े रहे।
पिछले दिनों उनकी पत्नी सौभाग्यवती गंगवार का भी निधन हो गया था। इसके बावजूद वह सार्वजनिक व सामाजिक जीवन में सक्रिय रहे। पार्टी के कार्यक्रमों में भी बराबर से सहभागिता की। उनकी पहचान आज भी सर्व सुलभ नेता के रूप में है।
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