सरकार बहुजनों का हक मार रही है इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पिछड़े, दलित ,आदिवासी और दिव्यांगों के आठ पदों NFS को क्यों किया गया : आजम नबी आजाद
देहरादून विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष चौधरी आजम नबी आजाद ने बयान जारी कर कहा है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कॉमर्स एंड बिजिनेस एडमिनिस्ट्रेशन विभाग ने 26 जुलाई, 2024 को प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर एवं असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों का परिणाम जारी कर यह बता दिया कि साक्षात्कार आधारित भर्तियों में जाति, जनेऊ एवं जुगाड़ आधारित मनुवाद और भ्रष्टाचार का किस कदर बोलबाला होता है? इसीलिए इस विभाग ने कुल 32 पदों में से 28 पदों का परिणाम जारी किया, जिसमें 19 अभ्यर्थियों का चयन किया गया, 9 पदों को NFS (नॉट फाउंड सूटेबल) कर दिया गया और शेष 4 पदों का परिणाम ही गायब कर दिया गया है।
भारत में एक तबका ऐसा है जो आरक्षण से नफरत करता है। उसका कहना है कि आरक्षण लागू होने के 70 साल हो गये हैं, इसलिए उसे बंद कर देना चाहिए। अब इस तबके से पूछना चाहिए कि वह किस आरक्षण की बात कर रहा है?
इस सवाल पर वह दांत चियारने लगता है क्योंकि उसे आरक्षण के बारे में न विस्तार से बताया गया है और न ही समझाया गया है जबकि उसे आरक्षण के नाम से नफरत करना जन्म से ही सिखा दिया जाता है। इसलिए उसे कभी यह एहसास ही नहीं होता है कि उसके लिए जातीय श्रेष्ठता आधारित ब्राह्मण आरक्षण सदियों से विराजमान है। इसी के तहत वह मंदिरों में पुजारी और यजमान बनता है।
जबकि डॉ. बीआर अंबेडकर ने अपनी पुस्तक ‘एनिहिलेशन ऑफ कास्ट’ में लिखा है कि ‘हिंदू धर्म में पुजारियों की व्यवस्था ख़त्म हो जाए। अगर यह मुमकिन नहीं है तो इसे वंशानुगत न रहने दिया जाए यानी यह न हो कि पुजारी का बेटा पुजारी बने, जो भी हिंदू धर्म में विश्वास रखता हो, उसे पुजारी बनने का अधिकार हो। ऐसा कानून बने कि सरकार द्वारा निर्धारित परीक्षा पास किये बगैर कोई भी हिंदू पुजारी न बने और सरकारी सनद होने पर ही कोई आदमी पुजारी का काम कर पाए।
सच्चाई यह है कि आजादी के 77 साल बाद बने राम मंदिर में भी जातीय श्रेष्ठता आधारित आरक्षण को स्वीकार करते हुए एक ब्राह्मण को मंदिर का पुजारी बना दिया जाता है।
इस देश में यह एक मिथ की तरह स्थापित हो चुका है कि हजारों जातियों में से सिर्फ ब्राह्मण जाति के लोग ही प्रतिभाशाली होते हैं। इसीलिए उनका वर्चस्व विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका में दिखाई देता है। वे इसी को मेरिट का नाम देते हैं। भले ही साक्षात्कार में उनकी जाति के लोग बैठकर उनका चयन किए हों। ऐसा अक्सर विश्वविद्यालयों की नियुक्तियों में देखा जाता है।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने तो एनएफएस का कीर्तिमान ही स्थापित कर दिया है। कॉमर्स एंड बिजिनेस एडमिनिस्ट्रेशन विभाग ने प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर एवं असिस्टेंट प्रोफेसर के कुल 32 पदों में 9 पदों का एनएफएस और 4 पदों का परिणाम गायब कर नया रिकॉर्ड बना दिया है। इसमें दो ऐसे अभ्यर्थियों का चयन किया गया है, जिनका नाम साक्षात्कार के लिए 15 जुलाई 2024 को जारी की गई सूची में नहीं था। यदि इनके लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय सवर्ण या मनुवादी कोटे के तहत कोई दूसरी सूची गुप-चुप तरीके से जारी करता है तो यह वही बता सकता है। असिस्टेंट प्रोफेसर पद के साक्षात्कार के लिए विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर प्रकाशित अभ्यर्थियों की सूची में ‘कुमार सौरभ’ और ‘कोमल राघव’ का नाम नहीं है जबकि अंतिम परिणाम में ये दोनों व्यक्ति असिस्टेंट प्रोफेसर बना दिए गये थे। यह साक्षात्कार में होने वाले भ्रष्टाचार का जीता जागता सबूत है।
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