लंबे इंतजार के बाद केंद्र सरकार ने जल प्रबंधन को लेकर नई राष्ट्रीय नीति की दिशा में काम करना आरंभ कर दिया है। लगभग एक साल के परामर्श के बाद राज्यों में पानी के पूरे ढांचे का एक नियंत्रण स्थापित करने के लिए केंद्र सरकार ने एक ड्राफ्ट बिल उनके साथ साझा किया है, जो हर राज्य में एक एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन प्राधिकरण स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त करेगा।
दैनिक जागरण ने 25 जनवरी के अंक में इस आशय के प्रस्ताव पर राज्यों के साथ विचार-विमर्श होने की जानकारी दी थी। प्रस्ताव के अनुसार राज्यों में मुख्यमंत्री इस प्राधिकरण के प्रमुख होंगे और पानी से जुड़े सभी विषय इसमें आएंगे, जिसमें जल संसाधनों का रखरखाव, उनकी निगरानी और घरेलू, उद्योग तथा कृषि क्षेत्रों में इसके इस्तेमाल में सुधार करने जैसे उपाय शामिल हैं।
राज्यों के जल संसाधन मंत्रियों की बैठक में हुई अहम चर्चा
इस तरह का सुझाव केंद्र सरकार के ब्यूरो आफ वाटर यूज एफिशिएंसी की विशेषज्ञ समिति ने पिछले साल दिया था। समिति ने केंद्रीय स्तर पर भी इस तरह के प्राधिकरण के गठन की जरूरत बताई थी ताकि पानी को लेकर अलग-अलग मंत्रालयों और विभागों के कामकाज को एक छत के नीचे लाया जा सके। अभी इस बारे में केंद्रीय स्तर पर कोई निर्णय नहीं हुआ है।
इस साल जनवरी में राज्यों के जल संसाधन मंत्रियों की बैठक में इस तरह के प्राधिकरण के गठन पर चर्चा की गई थी। जल राज्यों का विषय होने के कारण केंद्रीय स्तर पर इस तरह का प्राधिकरण बनाना आसान नहीं है। राज्यों में बनने वाले प्राधिकरण में मुख्य सचिव भी होंगे। इस प्राधिकरण को ही घरेलू इस्तेमाल वाले पानी के शुल्क का व्यावहारिक ढांचा भी तय करना होगा।
पानी की रिसाइक्लिंग का एजेंडा में प्राथमिकता पर
इसी तरह एक और अहम मसला कृषि में पानी के प्रयोग का भी है। राजनीतिक रूप से अहम होने के कारण राज्यों ने केंद्र के साथ बैठक में अपनी चिंताएं प्रकट की थी, लेकिन नई राष्ट्रीय नीति में केंद्र सरकार यह स्पष्ट करने जा रही है कि पानी के हर तरह के इस्तेमाल के प्रति दूरगामी सोच होना चाहिए। शहरों में 40 प्रतिशत पानी की रिसाइक्लिंग को अगले पांच साल के एजेंडे में प्राथमिकता के आधार पर शामिल किया गया है। इसी तरह की पहल ग्रामीण क्षेत्रों और कृषि के लिए भी की जानी है।
पिछली बार राष्ट्रीय जल नीति 2012 में जारी की गई थी
पिछली बार राष्ट्रीय जल नीति 2012 में जारी की गई थी। अब केंद्र सरकार नई नीति में यह स्पष्ट रूप से रेखांकित करने जा रही है कि मांग का प्रबंधन सबसे अधिक आवश्यक है। जल संसाधनों की योजना, विकास और प्रबंधन का काम एकीकृत रूप से होना चाहिए और दृष्टि स्थानीय, क्षेत्रीय, राज्य संबंधी और राष्ट्रीय, सभी पर समान रूप से फोकस होना चाहिए।