भारतीय परिवारों और समाज में मां बनने को लेकर अक्सर उम्र-आधारित अपेक्षाएं होती हैं । जब एक महिला 30 वर्ष की उम्र पार करती है तो उस महिला से ज्यादा उसके परिवार या पड़ोसी इस बात की चिंता करने लगते हैं कि मां क्यों नहीं बन रही है? मतलब यह कि मातृत्व का संबंध महिला की सिर्फ उम्र के हिसाब से तय किए जाने चिंता दिखाई पड़ती है। लेकिन स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि मां बनने का निर्णय महिला की अपनी मानसिक तैयारी, समग्र स्वास्थ्य और चिकित्सीय देखभाल की व्यवस्था के आधार पर लिया जाना चाहिए, न कि उम्र आधारित परंपरागत समयसीमा के अनुसार।
बदलते समय के साथ शहरी भारत में जीवनशैली में एक स्पष्ट बदलाव देखा गया है, जहां महिलाएं परिवार की योजना बनाने से पहले शिक्षा, करियर, आर्थिक स्वतंत्रता और भावनात्मक स्थिरता को प्राथमिकता देने लगी हैं।
सिर्फ ‘उम्र’ देखकर न लें मां बनने का फैसला
डाक्टरों का कहना है कि इन बदलती वास्तविकताओं के बावजूद, महिलाएं रिश्तेदारों और सामाजिक दायरे से उम्र से संबंधित डर के कारण तीव्र दबाव का सामना करती हैं, जो अक्सरचिकित्सीय तथ्यों के बजाय उम्र से संबंधित चिंताओं पर केंद्रित होता है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह सही है कि विशेष रूप से 35 वर्ष के बाद बढ़ती उम्र के साथ प्रजनन क्षमता धीरे – धीरे घटती है। लेकिन सिर्फ इस जैविक वास्तविकता के आधार पर मां बनने का निर्णय जल्दबाजी में नहीं लिया जाना चाहिए। उन्होंने इसके बजाय संसूचित योजना, प्रारंभिक परामर्श और नियमित स्वास्थ्य जांच के महत्व पर जोर दिया है।
सिल्वर स्ट्रीक मल्टीस्पेशियलिटी अस्पताल की प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. स्वप्निल अग्रहरी का कहना है कि उम्र और प्रजनन क्षमता के बीच एक स्पष्ट मेडिकल संबंध है, लेकिन इस पर जिम्मेदारी से आगे बढ़ना चाहिए । महिलाओं पर मां बनने के लिए सिर्फ उम्र के आधार पर दबाव बनाना न तो उचित है और न ही जच्चा-बच्चा के स्वास्थ्य के हित में। मौजूदा समय में गर्भावस्था के परिणाम कई कारकों जैसे – जीवनशैली, पोषण, मानसिक स्वास्थ्य और समय पर चिकित्सा सुविधा से प्रभावित होते हैं।
बायोलॉजिकल क्लॉक का डर छोड़ें
स्त्री रोग विशेषज्ञों ने बताया कि प्रजनन चिकित्सा, प्रीनेटलडायग्नोस्टिक्स और गर्भावस्था की देखभाल में उत्तरोत्तर सुधार 30-35 वर्ष की उम्र के बाद भी गर्भधारण करने वाली महिलाओं के लिए बेहतर परिणाम साबित हो रहे हैं। मैक्ससुपरस्पेशियलिटी अस्पताल, द्वारका की गायनेकोलाजिस्टडा. यशिकागुडेसर का कहना है कि डर आधारित बातचीत एक सकारात्मक और सशक्त जीवन निर्णय को छिपा सकती है।
महिलाओं को अपनी स्वास्थ्य और तैयारी पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, न कि बाहरी समयसीमाओं पर । सक्रिय देखभाल से उम्र से संबंधित कई जोखिमों का सफलतापूर्वक निदान किया जा सकता है। कई महिलाएं, जो मातृत्व को बाद में चुनती हैं, वे अधि भावनात्मक स्थिरता, आर्थिक सुरक्षा और मजबूत समर्थन प्रणाली लाती हैं, जो स्वस्थ पारिवारिक वातावरण में योगदान करते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि जैसे-जैसे चिकित्सा विज्ञान का विकास हो रहा है, परिवार और समाज को भी अपने सोच में बदलाव लाना चाहिए, जिसमें महिलाओं के सामने विकल्पों का सम्मान हो और इसे स्वीकार करे कि मातृत्व के लिए कोई एक ‘सही उम्र’ नहीं होती। ऐसे में मातृत्व मामले में सभी आयामों पर संवेदनशील होना चाहिए।
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