Saturday , November 23 2024

टीवी धारावाहिक सी नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज

होना तो यही चाहिए था चौधरी, के सीजन टू में नेटफ्लिक्स को अपनी सीरीज ‘ये काली काली आंखें’ के तीतर टाइट कर देने चाहिए थे, लेकिन नहीं। उनको सौरभ शुक्ला के रचनात्मक ज्ञान पर भरोसा है। याद है ना कि कैसे ‘इस रात की सुबह नहीं’ को घुमाकर सौरभ शुक्ला और अनुराग कश्यप ने ‘सत्या’ ठेल दी थी, राम गोपाल वर्मा को। सुधीर मिश्रा बेचारे आज तक नहीं समझ पाए कि कैसे उनकी ‘इस रात की सुबह नहीं’ रामू की ‘सत्या’ के सामने सेकंड क्लास कूपे में सवार होकर रह गई। अब जाकर इसका ताजा खुलासा सौरभ शुक्ला ने किया अपनी रचनात्मक सलाहगिरी में बनी वेब सीरीज ‘ये काली काली आंखें’ के सीजन टू में। सीरियल जैसी वेब सीरीज का दूसरा सीजन  वेब सीरीज ‘ये काली काली आंखें’ के पहले सीजन का अगर रिव्यू याद हो तो उसमें मैंने एक बात की तरफ इशारा किया था और वो ये कि टेलीविजन सीरियल बनाने वालों को ओटीटी की वेब सीरीज बनाने से बचना चाहिए। इतना ड्रामा रचते हैं टीवी सीरियल के निर्देशक कि घर में खाना बनाते समय सीरियल देखने वालों का भले टाइम पास होता हो, 499 रुपये महीने देकर इसे देखने वाला मजबूरी में इसकी स्पीड 1.5 एक्स पर ले जाकर इसे पूरा करने को मजबूर हो जाता है। इतना सस्पेंस किस काम का भाई कि ये तय होने में ही चार मिनट लग जाएं कि हीरोइन छज्जे पर खड़ी रहेगी या गिर जाएगी..! ध्यान रहे कि ये तो बस अंगड़ाई है, आगे और पुरवाई है। कहानी क्राइम की, दिमाग कॉमिक्स का सीरीज कितनी तरंग में लिखी और बनाई गई है, उसका बस एक उदाहरण दिए देते हैं। स्पॉयलर जैसा है कुछ। चाहें तो रिव्यू पढ़ना यहीं रोक सकते हैं। दूसरे एपिसोड में एक सीन है। अखेराज अवस्थी का गोद लिया लड़का कहो या साइड वाला चंपू वो शिखा की शादी वाले दिन उसके बाथरूम में बेहोश पड़ा है। विक्रांत बिल्कुल पुराने पेड़ की डाल से बेताल को उतारकर अपने कांधे पर टांगे उसके यहां पहुंचा है। जिनको कभी खून देखकर चक्कर आ जाता था, वो एक छह फुट लंबे इंसान के टुकड़े टुकड़े कर देते हैं और उसे ऐसे झोले में डालकर चल देते हैं, जैसे गोभी खरीद कर बाजार से लौटे हैं। और, न जाने कैसा तो पुलिस वाला है जो वही झोला हाथ में लेकर टहलता रहता है और उसे भनक तक नहीं आती कि उस झोले में एक छह फुटिया इंसान है। सबके चोले बदल डाले नेटफ्लिक्स ने खैर, जैसे सबके दिन बहुरैं, वइसे ही इस सीरीज के भी दिन बहुरैं, इतनी तो प्रार्थना नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज टीम से की ही जा सकती है। सीरीज के कलाकार लगता है इन दिनों इंस्टाग्राम पर नहीं हैं। कल ही एक रील मैं देख रहा था कि कैसे अभिनेता को अपने भाव दिखाने के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए और कैसे एक कलाकार को कैमरे के सामने अपने किरदार में स्वाभाविक दिखना चाहिए। यहां पूरब के दबंग ब्राह्मण नेता के ठाकुर जमाई यानी विक्रांत सिंह चौहान इतने स्वाभाविक बने रहने की कोशिश करते हैं कि लगता ही नहीं कि उनकी जान आफत में हैं। हां, कहानी ने इस बार इस किरदार के कपड़े खूब उतारे हैं। पिछले सीजन में जो हीरो था, वह अब विलेन बनने की ओर बढ़ चला है और पूर्वा के बचपन की कहानी सानकर सीरीज बनाने वालों ने उसे पीड़िता का चोला पहना दिया है। जमा नहीं गुरमीत चौधरी का इम्पोर्टेड कैरेक्टर कहानी में हाथ डालकर इसके झोले से इस बार सीरीज के राइटर ने एक स्पेशल एजेंट जैसा भी कुछ निकाल लाए हैं। लंदन से इम्पोर्ट किया गया है। बताया जाता है कि पूरी फौज के साथ काम करता है। ड्रोन उड़ाकर द्रोणाचार्य के शागिर्द जैसा निशाना लगाता है। और हां, अवस्थी जी की बिटिया पूर्वा का विदेश वाला प्रेमी भी है। तो अगर आपको लग रहा था कि प्रेम त्रिकोण यहां केवल पूर्वा, शिखा और विक्रांत का ही है तो आप गलत है। उधर, अपने विक्रम का बेताल यानी गोल्डन, अपने पिछले सीजन में किए सारे किए कराए पर पानी फेर नहीं बल्कि बहा चुका है। इस किरदार का काम अब कुल मिलाकर नौटंकी में ईनाम मिलने पर देने वालों के नाम पढ़ने जितना रह गया है, जिसके चुटकुलों पर अब हंसता तो कोई नहीं। हां, टाइम की बर्बादी पर गुस्सा जरूर आता है। कमजोर कहानी, लचर पटकथा, दिशाहीन निर्देशन सिद्धार्थ सेन गुप्ता और उनकी टीम ने पिछली बार की तरह इस सीजन में भी कुछ खास सस्पेंस सीरीज बनाई नहीं है। सस्पेंस इसका सास-बहू के टीवी सीरियल जैसा है और कलाकार इसके सबके सब एक्टिंग करते दिखाई दे रहे हैं। वरुण बडोला वाले किरदार का आइडिया जिसका भी है बहुत बुरा है। उनकी फौज तो ऐसे लगता है जैसे रामगढ़ से सीधे उनके तम्बू पर ही शिफ्ट हुई है। कहानी, पटकथा और संवादों में सीरीज ऐसी मात खाई है कि किसी भी किरदार के साथ दर्शक छठे एपिसोड तक जुड़ ही नहीं पाते। मामला फिर खाई पर आकर लटका है और हो सकता कि नेटफ्लिक्स के जियाले इसका तीसरा सीजन भी बना डालें। लेकिन, याद यहां यही रखना है कि ठाकुर ने कहा था कि दो हैं! सौरभ शुक्ला को खामखां गब्बर बनने की कोशिश करना छोड़ देना चाहिए। जॉली एलएलबी के जज वो बढ़िया बनते हैं, उनको वैसा ही कुछ करते रहना चाहिए। मार्केट में वैल्यू कुछ साल और बनी रहेगी।