संतान सुख हर किसी को नहीं मिलता। कभी-कभी कुछ लोग इस सुख के लिए तरस जाते हैं। हालाँकि ऐसे लोगों के लिए कई व्रत है जो रखे जा सकते हैं और इन्ही में शामिल है वत्स द्वादशी।
जी दरअसल वत्स द्वादशी का पर्व भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है और इस पावन पर्व के अवसर पर गाय और बछड़े की पूजा की जाती है। इस साल वत्स द्वादशी 23 अगस्त को है और कहा जाता है यह पर्व कार्तिक माह में भी आता है और तब इस पर्व को बछ बारस के नाम से भी जाना जाता है। वहीं हिंदू धार्मिक पुराणों में सभी तीर्थ गौमाता में है और ऐसा माना जाता है कि गौ माता के दर्शन मात्र से ऐसा पुण्य फल मिलता है, जो बड़े-बड़े यज्ञ, दान आदि करने से भी प्राप्त नहीं होता।
वत्स द्वादशी महत्व- जी दरअसल पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान कृष्ण के जन्म के बाद, माता यशोदा ने इस दिन गौमाता के दर्शन और पूजा की थी। जिस गौ माता को स्वयं भगवान कृष्ण नंगे पांव जंगल चराते थे और जिन्होंने उनका नाम गोपाल रखा था और उनकी रक्षा के लिए उन्होंने गोकुल में अवतार लिया था, तो ऐसी गाय की रक्षा और पूजा करना प्रत्येक व्यक्ति का धर्म है। जी हाँ और आपको यह भी पता होगा कि गौमाता के रोम-रोम में देवी-देवता और सभी तीर्थों का वास है। इस वजह से हिंदू शास्त्र बताते हैं कि अगर सभी देवी-देवताओं और पूर्वजों को एक साथ प्रसन्न करना है, तो दुनिया में गौ भक्ति-गौसेवा से बड़ा कोई अनुष्ठान नहीं है। जी हाँ और अगर गाय माता को खिलातें हैं, फिर वह स्वतः ही समस्त देवी-देवताओं के पास पहुंच जाता है। इसके अलावा भविष्य पुराण के अनुसार गाय की पृष्ठभूमि में ब्रह्मा, कंठ में विष्णु, मुख में रुद्रदेव महादेव शिव, मध्य सभी देवताओं और रोमों में महर्षिगण पूंछ में, पूंछ में अनंत सर्प, खुरों में सभी पर्वत, गंगा यमुना और नदियाँ लक्ष्मी और आँखों में सूर्य और चन्द्रमा का वास होता है।