Thursday , April 10 2025

गुरु प्रदोष व्रत पर करें इस कथा का पाठ, तभी पूरा होगा व्रत

गुरु प्रदोष व्रत बहुत ही शुभ माना जाता है। यह भगवान शिव की पूजा के लिए समर्पित है। इस दिन शिव परिवार की विधिपूर्वक से पूजा करने से भगवान शिव का आशीर्वाद मिलता है। इसके साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि आती है। इस बार गुरु प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat 2025 Methodology Story ) आज यानी 10 अप्रैल को भी रखा जाएगा तो आइए इससे जुड़ी प्रमुख बातों को जानते हैं।

गुरु प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित है। इस शुभ दिन पर विधिपूर्वक पूजा के साथ-साथ प्रदोष व्रत कथा का पाठ करना बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस कथा का पाठ या सुनें बिना व्रत पूरा नहीं होता है। प्रदोष व्रत कथा भगवान शिव और माता पार्वती से जुड़ी हुई है।

बता दें कि गुरु प्रदोष व्रत के दिन प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा के बाद इस कथा का पाठ करना चाहिए। यह कथा (Pradosh Vrat 2025 Kahani) न केवल व्रत को पूरा करती है, बल्कि भगवान शिव की महिमा को भी दिखाती है। इस कथा को सुनने से मन शांत होता है और श्रद्धा बढ़ती है।

इसलिए अगर आप गुरु प्रदोष व्रत कर रहे हैं, तो भगवान शिव की पूजा के साथ-साथ प्रदोष व्रत कथा का पाठ जरूर करें, जो इस प्रकार है।

गुरु प्रदोष व्रत कथा (Pradosh Vrat 2025 Vrat Kath In Hindi)
एक बार अंबापुर गांव में एक ब्रह्माणी निवास थी। उसके पति का निधन हो गया था, जिस वजह वह भिक्षा मांगकर अपना जीवन व्यतीत कर रही थी। एक दिन जब वह भिक्षा मांगकर लौट रही थी, तो उसे दो छोटे बच्चे मिलें जो अकेले थे, जिन्हें देखकर वह काफी परेशान हो गई थी।

वह विचार करने लगी कि इन दोनों बालक के माता-पिता कौन हैं? इसके बाद वह दोनों बच्चों को अपने साथ घर ले आई। कुछ समय के बाद वह बालक बड़े हो गएं। एक दिन ब्रह्माणी दोनों बच्चों को लेकर ऋषि शांडिल्य के पास जा पहुंची। ऋषि शांडिल्य को नमस्कार कर वह दोनों बालकों के माता-पिता के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की। तब ऋषि शांडिल्य ने बताया कि ”हे देवी! ये दोनों बालक विदर्भ नरेश के राजकुमार हैं। गंदर्भ नरेश के आक्रमण से इनका राजपाट छीन गया है।

अतः ये दोनों राज्य से पदच्युत हो गए हैं।” यह सुन ब्राह्मणी ने कहा कि ”हे ऋषिवर! ऐसा कोई उपाय बताएं कि इनका राजपाट वापस मिल जाए।” जिसपर ऋषि शांडिल्य ने उन्हें गुरु प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। इसके बाद ब्राह्मणी और दोनों राजकुमारों ने गुरु प्रदोष व्रत का पालन भक्तिपूर्ण किया। फिर उन दिनों विदर्भ नरेश के बड़े राजकुमार की मुलाकात अंशुमती से हुई।

दोनों विवाह करने के लिए राजी हो गए। यह जान अंशुमती के पिता ने गंदर्भ नरेश के विरुद्ध युद्ध में राजकुमारों की सहायता की, जिससे राजकुमारों को युद्ध में विजय प्राप्त हुई। गुरु प्रदोष व्रत के शुभ प्रभाव से उन राजकुमारों को उनका राजपाट फिर से वापस मिल गया। इससे प्रसन्न होकर उन राजकुमारों ने ब्राह्मणी को दरबार में खास स्थान दिया, जिससे ब्राह्मणी भी धनवान हो गई और शिव की बड़ी उपासक बन गई।