लखनऊ। आत्मविस्मृति ही समस्त दुःखों का कारण है। स्वयं को भुला देना ही मानव जीवन की सबसे बड़ी विडंबना है। अज्ञान दुःखों का मूल है और आत्मबोध ही उसका समाधान है।
उक्त उद्गार स्वर्वेद कथामृत के प्रवर्तक सुपूज्य संत प्रवर श्री विज्ञान देव जी महाराज ने शहर के डिप्लोमा इंजिनियर्स एसोसिएसन परिसर में आयोजित एक दिवसीय जय स्वर्वेद कथा एवं ध्यान साधना सत्र में उपस्थित हजारों श्रद्धालुओं के मध्य व्यक्त किए।
महाराज जी ने बताया कि आज मन पर नियंत्रण न होने से समाज में विसंगतियाँ बढ़ रही हैं। युनेस्को की एक प्रस्तावना कहती है कि “युद्ध की प्राचीरें कुत्सित मन से निकलती हैं।” अतः मन पर नियंत्रण आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि हमारे मन में असीम शक्ति है। ईश्वर ने हमें बड़ी शक्तियों वाला अन्तःकरण दिया है। मानव के मन में अशांति है और जब तक यह अशांति है, तब तक विश्व में शांति की कल्पना नहीं की जा सकती। मन की अशांति को विहंगम योग की ध्यान-साधना के द्वारा दूर किया जा सकता है।
महाराज श्री ने दिव्यवाणी के अंत में विहंगम योग साधना का अभ्यास भी कराया। बताया कि ब्रह्मांड की ध्वनि है “ॐ”, जो सर्वत्र गुंजायमान है। यह ध्वनि हमारे मन-मस्तिष्क को प्रकाशित कर रही है। हम सबको प्रतिदिन ईश्वर के पवित्र वाचक नाम “ॐ” का उच्चारण करना चाहिए। नित्य प्रति का अभ्यास हमें आंतरिक शांति का अनुभव कराता है।
संत प्रवर श्री विज्ञान देव जी महाराज की दिव्यवाणी “जय स्वर्वेद कथा” के रूप में लगभग 2 घंटे तक प्रवाहित हुई। स्वर्वेद दोहों की संगीतमय प्रस्तुति से सभी श्रोता मंत्रमुग्ध हो उठे।
आयोजकों ने बताया कि “समर्पण दीप अध्यात्म महोत्सव” विहंगम योग संत समाज के 102वें वार्षिकोत्सव एवं 25,000 कुण्डीय स्वर्वेद ज्ञान महायज्ञ के निमित्त संत प्रवर श्री विज्ञान देव जी महाराज द्वारा 29 जून को संकल्प यात्रा का शुभारंभ कश्मीर की धरती से हो चुका है।
यह संकल्प यात्रा कश्मीर, जम्मू, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, राजस्थान के बाद अब उत्तर प्रदेश के लखनऊ में स्वर्वेद सन्देश यात्रा के रूप में पहुँच चुकी है।
25 एवं 26 नवम्बर 2025 को विशालतम ध्यान-साधना केंद्र (मेडिटेशन सेंटर) स्वर्वेद महामंदिर, वाराणसी के पावन परिसर में 25,000 कुण्डीय स्वर्वेद ज्ञान महायज्ञ होना है। उसी क्रम में यह संकल्प यात्रा हो रही है, जिससे अधिक से अधिक लोगों को पूरे भारतवर्ष में लाभ मिल सके।
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