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काबुल की सत्ता एक झटके में पाने वाले तालिबान के शासन करने में होश उड़े

काबुल. तालिबान को अफगानिस्तान की सत्ता इतनी जल्दी मिली जितना खुद चरमपंथी संगठन के टॉप कमांडर्स ने भी नहीं सोचा था. एक तालिबानी कमांडर मावलावी हबीब तवाकोई के मुताबिक 15 अगस्त को वो लोग काबुल के बाहरी बॉर्डर पर आ चुके थे. उन्हें लग रहा था कि काबुल में एंट्री करने में हफ्तों का वक्त लग सकता है. लेकिन अशरफ गनी और उनके साथ देश छोड़कर भाग खड़े हुए. मावलावी को टॉप लीडरशिप से शहर में प्रवेश करने का ऑर्डर मिला.

महज कुछ घंटों के भीतर ही काबुल की गलियों में तालिबानी लड़ाके देखे जा सकते थे. ये सबकुछ बहुत जल्दी हुआ. लेकिन इसके बाद का रास्ता सबसे ज्यादा मुश्किल था. क्योंकि काबुल की सत्ता पर काबिज होने के बाद तालिबान के सामने सत्ता चलाने और अपनी नरम छवि दिखाने की चुनौती थी. एक तरफ संगठन के टॉप नेता दुनिया को अपनी नरम छवि पेश करते रहे और महिलाओं पर कुछ उदार फैसले लेने का ऐलान किया. आम माफी की घोषणा की. लेकिन छोटे शहरों और काबुल से इतर इलाकों में तालिबान लड़कों की क्रूरता जारी रही.

अब तालिबान के सामने सामने सबसे बड़ी समस्या ये है कि इकोनॉमी बिल्कुल टूट चुकी है. सेंट्रल बैंक सीज हो जाने और विदेशी मदद पूरी तरह बंद हो जाने के कारण कैश की बहुत समस्या है. ज्यादातर सरकारी कर्मचारी बुरी तरह डरे हुए हैं जिन्हें भरोसे में लेने की तालिबान कोशिश कर रहा है.

तालिबान की आमद देखकर अशरफ गनी के अलावा काबुल से बड़ी संख्या में संभ्रांत वर्ग ने विदेशों का रुख कर लिया था. लेकिन गनी सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे वाहिद मजरूह ने देश में बने रहने का फैसला किया. उन्होंने एक मीडिया इंटरव्यू में बताया है-तालिबान के कब्जे के दूसरे दिन मैं अपने दफ्तर गया था. वहां पर उनसे तालिबान के हेल्थ कमिश्नर मिलने आए. उनका व्यवहार बहुत सम्मानपूर्ण था.

मजरूह तब हिंसा फैलने को लेकर बहुत चिंतित थे. वो चाहते थे कि अस्पतालों में उनके कर्मचारियों का नेटवर्क काम करता रहे. मजरूह ने इंटरव्यू में बताया कि तालिबान की तरफ से उन्हें मदद मिली. लेकिन अब देश के हेल्थ सेक्टर में भी बाहरी मदद पूरी तरह से बंद हो चुकी है. कोरोना वैक्सीनेशन कार्यक्रम बुरी तरह टूट चुका है. अस्पताल की पूरी व्यवस्था बिगड़ चुकी है
तालिबान अब भी अपनी नई सरकार की घोषणा नहीं कर सका है. चरमपंथी संगठन चाहता है कि दुनिया उसे मान्यता दे. हालांकि रूस, चीन, पाकिस्तान और तुर्की की तरफ से तालिबान के लिए नरमी के पूरे संकेत मिले हैं लेकिन अभी कोई मान्यता देता नहीं दिख रहा है. जब तक पश्चिमी देश तालिबान को मान्यता नहीं देते तब तक अंतरराष्ट्रीय संगठनों की तरफ से आर्थिक मदद मिलना भी असंभव है. ऐसे में काबुल की सत्ता एक झटके में पाने वाले तालिबान के शासन करने में होश उड़े हुए हैं.