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एड्स के भी इलाज की उम्मीद कोरोना वैक्सीन ने जगाई

नई दिल्ली. वैश्विक स्तर पर एड्स की महामारी के 40 साल बाद वैक्सीन की तलाश को नई उम्मीद मिली है. अमेरिकी दवा और बायोटेक कंपनी मॉडर्ना ने हाल ही में एड्स की दो वैक्सीन के ट्रायल का ऐलान किया है. ये वैक्सीन भी mRNA आधारित हैं, इसी तकनीक पर कंपनी ने कोरोना वायरस की वैक्सीन भी बनाई है. मॉडर्ना दुनिया की पहली कंपनी है, जिसने कोविड-19 का mRNA आधारित पहला टीका बनाया है.

वैक्सीन का मानव परीक्षण
मॉडर्ना अपनी एचआईवी वैक्सीन के दो वर्जन का ट्रायल करेगी. ये एड्स की पहली mRNA आधारित वैक्सीन है, जिसका इंसानों पर ट्रायल किया जाएगा. अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के क्लिनिकल ट्रायल रजिस्ट्री के मुताबिक पहले चरण के ट्रायल के लिए 18 से 50 आयु वर्ग के 56 एचआईवी निगेटिव लोगों को चुना गया है. पहले चरण के ट्रायल में चार ग्रुप होंगे. इनमें से दो ग्रुप को वैक्सीन की मिक्स डोज दी जाएगी, वहीं अन्य दो ग्रुप को दो वैक्सीन में से कोई एक दी जाएगी. हालांकि ट्रायल शामिल होने वाले लोगों को यह पता होगा कि वे किस ग्रुप में हैं.

बता दें कि मॉडर्ना की दोनों वैक्सीन का इस्तेमाल एक दूसरी वैक्सीन के साथ किया जाएगा, जिसे इंटरनेशनल एड्स वैक्सीन इनिशिएटिव और स्क्रिप्स रिसर्च ने विकसित किया है. दरअसल फॉर्मूला ये है कि मॉडर्ना की दोनों वैक्सीन के पास खास तरीके के बी-सेल पैदा करने की क्षमता है, जिससे प्रभावी एंटीबॉडीज विकसित होते हैं, वहीं दूसरी वैक्सीन वायरस को मारने के लिए इन एंटीबॉडीज को प्रेरित करती है. इस अध्ययन को IAVI ने स्पांसर किया है और पहले चरण का ट्रायल मई 2023 तक चलेगा, पहले चरण को पूरा होने में 10 महीने का समय लग सकता है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक एड्स से दुनिया भर में अभी तक 3 करोड़ 60 लाख से ज्यादा (36.3 मिलियन) लोगों की मौत हुई है. अनुमान है कि 2020 के अंत तक दुनिया भर में 3 करोड़ 70 लाख से ज्यादा (37.7 मिलियन) लोगों एचआईवी संक्रमण के साथ जीवन गुजार रहे हैं. हालांकि एचआईवी का अभी तक कोई इलाज मौजूद नहीं है. लेकिन हाल के वर्षों में प्रभावी रोकथाम, रोग की पहचान और देखभाल के साथ एचआईवी को मैनेज करने में स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने सफलता हासिल की है. भारत के नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन के 2019 की एचआईवी रिपोर्ट के मुताबिक 23 लाख से ज्यादा एचआईवी संक्रमण के साथ जी रहे हैं. लेकिन, साल 2000 के बाद से भारत में 15 से 49 आयु वर्ग के लोगों में एचाईवी के प्रिवैलेंस ट्रेंड में गिरावट देखी जा रही है. और हाल के वर्षों में यह स्थिर होती दिख रही है.

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महामारी विज्ञान और संचारी रोग विभाग के पूर्व प्रमुख और राष्ट्रीय एड्स अनुसंधान संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ आर आर गंगाखेडकर ने कहा कि एचआईवी अपना स्वरूप बेहद तेजी के साथ बदलता है, जिससे एंटीबॉडी कवर प्रदान करना मुश्किल हो जाता है. इसके साथ एचआईवी वायरस का बाहरी स्वरूप शुगर कोटिंग से ढंका होता है, जिससे शरीर को इम्यून रेस्पांस पैदा करने में मुश्किल आती है. आईसीएमआर में सीजी पंडित नेशनल चेयर डॉ गंगाखेडकर ने कहा, ‘एंटी एचआईवी वैक्सीन एक चुनौती है, क्योंकि ये वायरस बड़ी तेजी से अपनी प्रतिकृति बनाता है और उतनी ही तेजी से म्यूटेट भी होता है. उच्च प्रतिकृति दर होने की वजह से इम्यून सिस्टम को गच्चा देने वाले म्यूटेंट पैदा होते हैं.’

वहीं डॉ. गगनदीप कंग ने कहा कि एचआईवी के मामले में जब तक शरीर एंटीबॉडी पैदा करता है, तब तक वायरस अपना स्वरूप बदल लेता है और एंटीबॉडीज वायरस को खत्म नहीं कर पाती है. लगातार बदल रहे म्यूटेशन की वजह से वायरस एंटीबॉडी को गच्चा देने में कामयाब रहता है. डॉ. कंग ने कहा कि उदाहरण के लिए अगर आप एचआईवी संक्रमित व्यक्ति के वायरस सीक्वेंस का अध्ययन करें तो पाएंगे कि तीन महीने के अंतराल पर वायरस का स्वरूप बदल गया है, पहले और तीन महीने के बाद के वायरस सीक्वेंस में काफी अंतर होगा.

डॉ. कंग ने कहा कि पहले वायरस के निष्क्रिय रूपों और एडेनोवायरस वायरस वेक्टर आधारित वैक्सीन की कोशिशें हुई थीं, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. उन्होंने कहा कि पहले कुछ एचआईवी क्लिनिकल ट्रायल किए गए थे, लेकिन वैक्सीन के प्रभावी न होने के चलते या तो बंद कर दिए गए और स्थगित कर दिए गए. वहीं एडेनोवायरस वेक्टर वैक्सीन के केस में पाया गया कि ट्रायल में शामिल हो रहे प्रतिभागी एचआईवी के प्रति ज्यादा संवेदनशील थे, बजाय वैक्सीन के चलते सुरक्षित होने के.