कहा जाता है कि जिस व्यक्ति पर शनि की वक्री दृष्टि पड़ जाए, उसे जीवन में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। शनि की वक्री दृष्टि से तो राजा हरिश्चंद्र भी नहीं बच पाए थे। आज हम आपको एक ऐसी अद्भुत कथा बताने जा रहे हैं, जिसमें आपको पता चलेगा कि आखिर शनिदेव ने अपने ही आराध्य देव अर्थात भगवान शिव पर अपनी वक्री दृष्टि क्यों डाली और इसका महादेव पर क्या प्रभाव पड़ा।
महादेव से मिलने पहुंचे शनिदेव
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार शनिदेव, शिव जी से भेंट करने कैलाश पर्वत पहुंचे। तब उन्होंने महादेव से कहा कि ‘हे प्रभु! कल मैं आपकी राशि में आने वाला हूं, जिसका अर्थ है कि मेरी वक्र दृष्टि आपके ऊपर पड़ने वाली है। कृपया इसके लिए तैयार हो जाएं।”
इसके बाद शनि की दृष्टि से बचने के लिए भगवान शिव मृत्युलोक अर्थात पृथ्वी लोक पर गए और उन्होंने एक हाथी का रूप धारण किया। महादेव को लगा कि इस तरह वह शनि की वक्र दृष्टि से बचे रहेंगे। शाम होने के बाद भगवान शिव के मन में यह विचार आया कि अब तो दिन बीत चुका है, ऐसे में शनि की दृष्टि का अब मुझपर कोई असर नहीं होगा।
कैलाश लौटे महादेव
भगवान शिव पुनः कैलाश पर्वत लौट आए। जैसे ही भगवान शिव कैलाश पर्वत पर पहुंचे, तो उन्होंने पाया कि शनिदेव उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। तब शनिदेव ने शिव जी को प्रणाम किया। इसपर महादेव मुस्कराकर बोले कि आपकी दृष्टि का मुझपर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
इसपर शनिदेव ने उत्तर दिया कि मेरी दृष्टि के कारण ही आपको सवा प्रहर के लिए देव योनी को छोड़कर पशु योनी में रहना पड़ा। यह सुनकर महादेव प्रसन्न हुए कि किस प्रकार शनिदेव ने अपना कर्तव्य पूरा किया और शनिदेव को आशीर्वाद दिया।