नई दिल्ली. भारत और ऑस्ट्रेलिया ने शुक्रवार को फैसला किया कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थायित्व के लिए दोनों देश रक्षा संबंधों को और बेहतर बनाएंगे. इस फैसले के जरिए चीन के आक्रामक व्यवहार को भी संदेश दिया गया है. साथ ही दोनों देशों ने अफगानिस्तान में तालिबान शासन को लेकर चिंता भी जाहिर की है. तालिबान शासन के बाद सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा मिलने पर चिंता जाहिर की गई है.
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने ऑस्ट्रेलियाई समकक्ष पीटर डटन से वार्ता में कहा कि तालिबान का उदय भारत सहित पूरे क्षेत्र के लिए सुरक्षा के मद्देनजर बेहद चिंता का विषय है. साथ ही राजनाथ सिंह ने कहा- भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच साझेदारी स्वतंत्र और खुले हिंद प्रशांत क्षेत्र के साझा विचार पर आधारित है.
दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग, सैन्य भागीदारी विस्तार, रक्षा प्रौद्योगिकी में सहयोग, रक्षा सूचना साझीदारी बढ़ाने जैसे विषयों पर व्यापक बातचीत हुई. दरअसल भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच बीते वर्षों में रक्षा सहयोग मजबूत हुआ है. बीते साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके ऑस्ट्रेलियाई समकक्ष स्कॉट मॉरिसन ने साजो-सामान की सैन्य ठिकानों तक पारस्परिक पहुंच के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए थे.
इससे पहले खबर आई है कि अफगानिस्तान में तालिबान का शासन आने के बाद जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमले बढ़ सकते हैं. भारत की आंतरिक सुरक्षा रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है. दरअसल तालिबान के शासन में अन्य देशों के आतंकी संगठनों को अफगानिस्तान में फलने-फूलने का बेहतर माहौल मिलेगा. ग्लोबल जिहाद भारत के सामने बड़ी चुनौती बन सकता है.
अफगानिस्तान में नाटो और अमेरिकी सेनाओं की हार दुनियाभर में चिंता का सबब बन चुकी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनियाभर में जिहादी गतिविधियों में 9/11 के हमले के वक्त की तुलना में 400 गुना की बढ़ोतरी हो चुकी है. ग्लोबल जिहाद दुनियाभर में बढ़ता दिखाई दे रहा है. और दुनिया की सबसे ताकतवर सेनाओं की हार से जिहादी ताकतों को बल मिलने जा रहा है.
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