नई दिल्ली. दिल्ली की कड़कड़डुमा कोर्ट ने राजधानी में हुई हिंसा के दौरान आगजनी करने के आरोप से 8 आरोपियों को आरोपमुक्त कर दिया. कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपियों का अपराध बिना शक साबित करने में असफल रहा है. शिकायतकर्ता ने न तो आरोपियों की पहचान की है और न ही उनके खिलाफ कोई सीसीटीवी फुटेज है, जिससे साबित हो कि वे घटनास्थल पर थे. कोर्ट ने कहा चार्जशीट में आरोपियों पर अन्य धाराएं जैसे धारा 147 (दंगा), 148 (दंगा, घातक हथियार से लैस), 149 (गैरकानूनी सभा), 457 (घर में जबरन घुसना), 380 (चोरी), 411 (चोरी की संपत्ति प्राप्त करना) भी लगाई गई है. यह मजिस्ट्रेट कोर्ट में सुनवाई योग्य हैं. ऐसे में वे मामले को चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की कोर्ट में ट्रांसफर कर रहे हैं.
कड़कड़डूमा कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने चार्जशीट में IPC की धारा 436 (आग या विस्फोटक पदार्थ से शरारत) की धारा को जोड़ा है, लेकिन वह आरोप साबित करने में असफल रहा है. इन मामलों में दुकानदारों द्वारा दायर 12 शिकायतों के आधार पर आठ लोगों को गिरफ्तार किया गया था. उन्होंने आरोप लगाया था कि पूर्वोत्तर दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा के दौरान दंगाइयों द्वारा उनकी दुकानों को कथित रूप से लूटा गया और तोड़फोड़ की गई. आरोपियों को उनके खिलाफ दर्ज अन्य मामलों में उनके द्वारा दिए गए बयान और बीट अधिकारी पुलिस कांस्टेबलों द्वारा पहचान के आधार पर गिरफ्तार किया गया था.
कोर्ट ने आरोपियों को आरोपमुक्त करते हुए कहा केवल पुलिस कांस्टेबलों के बयानों के आधार पर आगजनी की धारा लागू नहीं की जा सकती है. पीड़ितों ने अपनी लिखित शिकायतों में इस संबंध में कुछ भी नहीं कहा था. किसी भी शिकायतकर्ता ने आरोपियों को दंगाइयों की भीड़ के हिस्से के रूप में नहीं पहचाना, जिन्होंने उनकी दुकानों में तोड़फोड़ की थी. कोर्ट ने कहा कि पेश फोटो से भी आग या विस्फोटक पदार्थ की कोई घटना सामने नहीं आई है. कोर्ट ने गवाहों के बयानों में विरोधाभास पाते हुए कहा कि एक शिकायतकर्ता ने कहा कि घटना 25 फरवरी को हुई. जबकि अन्य ने दावा किया कि यह घटना 24 फरवरी को हुई थी. वहीं किसी भी स्वतंत्र गवाह ने आरोपियों को घटनास्थल पर नहीं देखा.
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