श्रीनगर. जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने डॉमिसाइल सर्टिफिकेट जारी करने की समयावधि अब 15 मई 2022 कर दिया है. दरअसल राज्य से बाहर जा चुके पूर्व निवासियों और उनके पूर्वजों को राहत और पुनर्वास आयुक्त (प्रवासी) के यहां पंजीकृत होना था, ताकि उन्हें राज्य के निवासी होने का प्रमाण पत्र मिल सके. हालांकि इसके लिए कुछ ही लोग आगे आए. ऐसे में इसकी तारीख बढ़ा दी गई है. राहत एवं पुनर्वास आयुक्त के कार्यालय ने भी आवेदन स्वीकार करने के लिए विशेष शिविर आयोजित करने का निर्णय लिया है, जहां कम से कम 50 ऐसे परिवार निवास करते हैं. बीते दिनों ऐसा ही एक कैंप दिल्ली में आयोजित किया गया था. तारीख बढ़ाने की घोषणा करते हुए जम्मू-कश्मीर सरकार के आपदा प्रबंधन, राहत, पुनर्वास और पुनर्निर्माण विभाग के एक आदेश में कहा गया, ‘इसके बाद कोई और विस्तार नहीं दिया जाएगा.’
साल 1980 के दशक के अंत में उग्रवाद शुरू होने के समय, जम्मू-कश्मीर में सिखों के अलावा कश्मीरी पंडित समुदाय का बड़े पैमाने पर पलायन हुआ. प्रशासन को उम्मीद थी कि वे डॉमिसाइल सर्टिफिकेट का लाभ उठाएंगे, जिससे उनके लिए केंद्रशासित प्रदेश में जमीन का मालिक होने के साथ-साथ नौकरी और शिक्षा के अवसर हासिल करना आसान हो जाएगा.
हालांकि दिल्ली के कैंप में कम ही लोग आए. अधिकारियों ने कहा कि लगभग 25,000 अपंजीकृत कश्मीरी पंडित परिवारों के 1989 से पहले दिल्ली में बसने का अनुमान है. इसमें से केवल 3,000 ही आवेदन पत्र लेने के लिए आए थे, जिनमें से 806 रजिस्टर्ड थे. इन लोगों को मौके पर ही प्रमाण पत्र जारी किए गए. अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार राहत आयुक्त (प्रवासी) अशोक पंडिता ने कहा कि शेष 2,200 परिवारों के आवेदन आगे की कार्रवाई के लिए जम्मू लाए जाए जा रहे हैं.
आधिकारिक अनुमानों के अनुसार लगभग 45,000 कश्मीरी पंडित परिवार राहत और पुनर्वास आयुक्त (प्रवासी) में रजिस्टर्ड हैं, जो उग्रवाद की शुरुआत के बाद घाटी छोड़ चुके हैं (और इसलिए पहले से ही केंद्र शासित प्रदेश के स्थायी निवासी हैं). इसी तरह, माना जाता है कि 41,119 हिंदू और सिख परिवार साल 1947 में पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर क्षेत्रों से पलायन कर गए थे. उनमें से, 31,619 लोग प्रांतीय पुनर्वास अधिकारी के यहां रजिस्टर्ड हैं. इनमें से, 26,319 परिवार पहले से ही स्थायी जम्मू-कश्मीर निवासी के रूप में गिने जाते हैं.