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अफगानिस्तान में ज्यादा दिन चल नहीं पाएगी ‘कठपुतली सरकार’इमरान खान

काबुल. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा कि अफगानिस्तान लंबे समय तक ‘इशारों पर चलने वाली सरकार’ के नेतृत्व में नहीं रह पाएगा और तालिबान को सिर्फ ‘सही दिशा’ में काम करने के लिए ‘प्रोत्साहित’ किया जा सकता है. अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद से ही पाकिस्तान पर लगातार देश के मामलों में दखलंदाजी करने के आरोप लग रहे हैं. इसमें सरकार में हक्कानी की साझेदारी हो या फिर पंजशीर पर कब्जे के लिए आतंकियों का इस्तेमाल हो, पाकिस्तान लगातार अफगानिस्तान के आंतरिक मामलों में दखल देने की फिराक में है.
इमरान खान ने अफगानिस्तान में महिलाओं के आधिकारों, देश के लिए ‘आजादी’ का गठन और भी कई मुद्दों पर बात की. खान ने कहा कि कोई भी अफगानिस्तान के भविष्य की भविष्यवाणी नहीं कर सकता.

इमरान खान ने कहा, “हम 40 वर्षों के बाद शांति के लिए आशा और प्रार्थना कर सकते हैं. तालिबान एक समावेशी सरकार चाहता है. वे अपने हिसाब से महिलाओं के अधिकार चाहते हैं. वे मानवाधिकार चाहते हैं. इसलिए, अब तक उन्होंने जो कहा है, उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि वे अंतर्राष्ट्रीय स्वीकार्यता चाहते हैं. 1962 से 2001 के बीच कभी भी उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता की बात नहीं की.”

खान ने कहा, लेकिन इस बार चूंकि तालिबान इस तरह के बयान दे रहे हैं, उन्हें उस दिशा में प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. “लेकिन अफगानिस्तान का एक और भ्रम है कि इसे बाहर से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है. उनका ऐसा इतिहास है.”

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने कहा, “अफगानिस्तान में कोई कठपुतली सरकार लोगों द्वारा समर्थित नहीं है. लोगों के बीच उसकी बदनामी होती है. इसलिए यहां बैठकर यह सोचने के बजाय कि हम उन्हें कुछ हद तक नियंत्रित कर सकते हैं, हमें उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए.”

उन्होंने कहा कि मौजूदा सरकार को साफ लगता है कि अंतरराष्ट्रीय फंडिंग और मदद के बिना वे इस संकट को नहीं रोक पाएंगे. “तो हमें उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए. उन्हें सही दिशा में आगे बढ़ाएं.” उन आलोचकों के बारे में बात करते हुए जो तर्क देते हैं कि तालिबान देश को अस्थिर कर देगा, खान ने 1989 में सोवियत की वापसी की ओर इशारा किया, जो “रक्तपात” में समाप्त हो गई.

खान ने कहा कि “हमारी खुफिया एजेंसियों ने हमें बताया कि तालिबान पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा नहीं कर पाएगा, और अगर उन्होंने अफगानिस्तान को सैन्य रूप से हासिल करने की कोशिश की, तो एक लंबा गृहयुद्ध होगा, जिससे हम डरते थे क्योंकि हमें ही इसका सबसे ज्यादा नुकसान होगा.”