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पैसे-पैसे को मोहताज है तालिबान हथियार बेचकर पैसे की जगह मांग रहा ‘हीरा’

नई दिल्ली: अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद अब अफगानिस्तान में तालिबान का राज है. तालिबान ने हथियारों के बल पर कब्जा तो जमा लिया लेकिन अब देश चलाने के लिए उसके पास पैसे नहीं है. इन दिन वह पैसों की भारी किल्लत से जूझ रहा है. अब तालिबान पैसों की कमी को दूर करने के लिए दूसरे देशों पर निर्भर हो गया है. सूत्रों की मानें तो तालिबान इस समय बड़ी मात्रा में अफ्रीकी देशों को हथियार मुहैया करा रहा है, लेकिन दिलचस्प बात ये है कि तालिबान आर्थिक तंगी को दूर करने लिए पैसो की जगह इन देशों से हीरा मांग रहा है. इसके पीछे तालिबान का मकसद ये है कि अफ्रीका की खदानों से निकलने वाला हीरा अच्छी क़्वालिटी का माना जाता है और यहां के हीरे दुनिया भर में मशहूर है. तालिबान का मेन मकसद अफ्रीकी देशों से हीरा लाकर दूसरे देशों में बेंचना चाहता है और इन हीरों की वह अपने हिसाब से मुंह मांगी कीमत तय करेगा.

तालिबान हीरे की बिक्री को अपनी कमाई का अहम जरिया बनाना चाहता है. इसके अलावा तालिबान पैसों के लिए राजनैतिक और सैन्य प्रतिद्वंदियों की प्रॉपर्टी खाली करवाकर कांधार में रह रहे पाकिस्तानियों को बेच रहा है. कई सरकारी सम्पतियों को भी तालिबान अब तक बेंच चुका है.

अफगानिस्तान रिपब्लिक साल्वेशन फ्रंट के चीफ और सीनियर काउंटर टेरर एनालिस्ट अज़मल सुहेल के मुताबिक सत्ता पर काबिज़ होने के बाद तालिबान को ये पता चलने लगा है कि महज लूट पाट, फिरौती, प्राचीन मूर्तियों और साजो सामान और ड्रग्स/नारकोटिक्स की तस्करी, मनी लॉन्ड्रिंग और अरब के शेखों के डोनेशन से देश को चलाने के लिए पैसों की जरूरत पूरी नहीं हो पाएगी.

ड्रग्स की तस्करी और दूसरे गैरकानूनी तरीकों से अब तक कमाई गई तालिबान की कुल आमदनी 3 बिलियन यानि 300 करोड़ थी, जो कि देश चलाने के लिए काफी नही है. तालिबान का ये पैसा क़तर के बैंकों में जमा होता है, और इस पर अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA की नजर है.

तालिबान फिलहाल अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आर्थिक मदद की जुगाड़ में लगा हुआ है. आर्थिक मदद के लिए उसने जर्मनी को भी एप्रोच किया है. सूत्रों के मुताबिक तालिबान भारत से भी आर्थिक मदद के लिए बातचीत करने में दिलचस्पी दिखा रहा है.

ईरान और मिडिल ईस्ट के जरिये वो ड्रग्स/नारकोटिक्स और हथियार अफ्रीका में सक्रिय आतंकी संगठनों बोको हरम और अल शबाब को बेच रहा है. तालिबान के लिए अफगानिस्तान की जरूरतों को पूरा करने के लिए अंतरराष्ट्रीय कम्युनिटी की मदद के बगैर पैसा इकट्ठा करना एक बड़ी चुनौती होगी.