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तुर्की ने जम्मू-कश्मीर में आयोजित जी-20 के टूरिज्म वर्किंग ग्रुप की मीटिंग से बना ली दूरी

जम्मू-कश्मीर में जी-20 के टूरिज्म वर्किंग ग्रुप की मीटिंग आज से शुरू हो गई है। इस मीटिंग में चीन, तुर्की, सऊदी अरब जैसे देश भी हिस्सा नहीं ले रहे हैं। चीन ने तो खुलकर कहा कि वह जम्मू-कश्मीर को विवादित क्षेत्र मानता है। इसलिए यहां हिस्सा नहीं लेगा। उसके अलावा तुर्की ने भी जम्मू-कश्मीर का राग फिर से अलापा है। तुर्की में आए भूकंप के दौरान भारत ने ऑपरेशन दोस्त चलाकर बड़ी मदद की थी। उसके बाद भी तुर्की ने पाकिस्तान के सुर में ही सुर मिलाया है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर तुर्की की पाकिस्तान से इतनी मजबूत दोस्ती की वजह क्या है। पाकिस्तान और तुर्की दोनों ही इस्लामिक गणतंत्र हैं। इसके अलावा दोनों देश अफगानिस्तान और मध्य एशिया में एक-दूसरे के हितों को पूरा करते हैं। यही नहीं सांस्कृतिक तौर पर कमजोर पाकिस्तान खुद को इस्लामिक विरासत से जोड़े रखने के लिए तुर्की को आदर्श के तौर पर देखता है। यहां तक कि पाकिस्तान के सिनेमा में भी तुर्की की ही छाप दिखती है। यही नहीं सऊदी अरब से अलग इस्लामिक मुल्कों के बीच पैठ बनाने की कोशिश में तुर्की, पाकिस्तान और मलयेशिया कई बार साथ आने की पहल भी कर चुके हैं। दोनों देशों के रिश्ते ऐतिहासिक रूप से भी थोड़ा बेहतर ही रहे हैं। भारत ने आजादी के बाद गुट-निरपेक्षता की नीति का पालन किया था। लेकिन पाकिस्तान ने अमेरिका का खेमा पकड़ लिया था। तब तुर्की भी अमेरिका के साथ हो गया था और वह 1952 से ही नाटो का मेंबर है। वहीं पाकिस्तान को 1954 से अमेरिका से सैन्य मदद मिल रही थी। इस तरह दोनों देश वैश्विक राजनीति में करीब 7 दशकों से एक ही ब्लॉक में हैं। पाकिस्तान और तुर्की के बीच पहला समझौता 1951 में हुआ था और फिर 1954 में कुछ और अग्रीमेंट हुए थे। यही नहीं पाकिस्तान, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम, ईरान और इराक ने बगदाद पैक्ट भी 1955 में किया था। इन देशों का मकसद था कि पश्चिम एशिया में भी नाटो जैसा संगठन तैयार किया जा सके। इसके बाद 1965 में तुर्की, पाकिस्तान और ईरान रीजनल कॉपरेशन फॉर डिवेलपमेंट की भी स्थापना की थी। इसके बाद ईरान में इस्लामिक क्रांति, अफगानिस्तान में रूस के हमले जैसी घटनाएं हुईं। इस दौरान तुर्की और पाकिस्तान की दोस्ती पहले जैसी नहीं रही। लेकिन 2003 में रिचेप तैय्यब अर्दोआन के तुर्की की सत्ता में आने के बाद स्थितियां फिर से बदल गईं। दोनों देश करीब आए। इसके बाद बीते तीन सालों में तो कई बार तुर्की ने संयुक्त राष्ट्र के मंच से जम्मू कश्मीर का मुद्दा उठाया।