श्रीकृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह प्रकरण में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा कोर्ट कमीशन के प्रार्थना पत्र को मंजूरी दे दी गई है। बृहस्पतिवार को इसका आदेश आते ही मथुरा के कृष्ण भक्तों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। कई जगह मिष्ठान का वितरण किया गया। श्रीकृष्ण जन्मभूमि के गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी और सचिव कपिल शर्मा ने कहा कि जीत की राह पर यह पहला कदम है। आगे भी श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से जीत हासिल होगी। विदेशी आक्रमणकारियों के चलते श्रीकृष्ण के जन्मस्थान पर मस्जिद का निर्माण हुआ।
कोर्ट से उम्मीद है कि वह इसे हटाने का फैसला जल्द सुनाएगी। इधर, वृंदावन के प्रियाकांत जु मंदिर पर देवकीनंदन महाराज ने कहा कि मथुरा, अयोध्या, काशी सनातन की धुरी है। यहां हिंदुत्व की आस्था विराजती है। यह उदारता ही है जो इतने वर्षों के अन्याय को सहते हुए हम आज भी न्यायालय के माध्यम से ही अपने अधिकार मांग रहे हैं। मुस्लिम पक्ष को भी समझदारी दिखाते हुए बाहरी आक्रांताओं द्वारा किए गए अपराधों से अपने को अलग करना चाहिए।
वहीं, इस मामले में पक्षकार कौशल किशोर ठाकुर ने कहा कि कोर्ट के फैसले का हृदय से स्वागत है। जन्मभूमि प्रकरण में ही पक्षकार दिनेश शर्मा ने मिष्ठान वितरण किया, आतिशबाजी की। हिंदू महासभा की जिला अध्यक्ष छाया गौतम व संजय हरियाणा ने कहा कि अब वह दिन दूर नहीं जब हिंदू जनमानस के पक्ष में फैसला आएगा और श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर एक भव्य मंदिर की परिकल्पना साकार होगी। इस अवसर पर राजेश पाठक, नीरज गौतम, अश्वनी शर्मा, विजयपाल सिंह, नीतू सक्सेना आदि मौजूद रहे।
एक सीढ़ी पर जीत, अब दूसरी पर निगाह
श्रीकृष्ण जन्मस्थान मुक्ति न्यास के अध्यक्ष एवं जन्मभूमि प्रकरण में पहले वादकारी अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि हाईकोर्ट का फैसला बेहद शानदार है। पूरा देश इसका स्वागत कर रहा है। कोर्ट कमीशन की मांग को मंजूरी मिलने से जन्मभूमि पक्ष को बहुत राहत मिली है। अब 18 दिसंबर को होने वाली सुनवाई पर कोर्ट से अपील की जाएगी की वह जन्मभूमि-ईदगाह की वस्तुस्थिति के निरीक्षण के लिए जल्द ही कमीशन को भेजे। इसके अलावा ईदगाह पक्ष की ओर से दाखिल सीपीसी 7/11 के प्रार्थना पत्र का भी विरोध किया जाएगा। इस प्रार्थना पत्र में ईदगाह पक्ष ने कहा है कि यह वाद पोषणीय नहीं है। इसे सुनवाई योग्य न माना जाए।
उनके प्रार्थना पत्र के विरोध में महत्वपूर्ण साक्ष्य और तर्क कोर्ट के सामने पेश किए जाएंगे। महेंद्र प्रताप ने बताया कि जन्मभूमि-ईदगाह केस पूजा स्थल अधिनियम 1991 पर टिका है। इसमें कहा गया है 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। यदि कोई इस अधिनियम का उल्लंघन करने का प्रयास करता है तो उसे जुर्माना और तीन वर्ष की जेल भी हो सकती है। ये कानून 1991 में तत्कालीन नरसिम्हा राव की सरकार लेकर आई थी। हालांकि कानून में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को अलग रखा गया था।
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