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यूपी: बड़ी सफलता… एआई बताएगा कैंसर के मरीजों को कितना चाहिए रेडिएशन

कैंसर के मरीजों को रेडिएशन की खुराक देने के लिए केजीएमयू के रेडियोथेरेपी विभाग के डॉक्टरों ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) पर आधारित विशिष्ट उपकरण बनाने में सफलता हासिल की है। इस उपकरण को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार मिला है।

इस उपकरण से रोगी के शरीर के अन्य हिस्सों को कम से कम प्रभावित करते हुए कैंसरग्रस्त हिस्से को रेडिएशन की सटीक खुराक दी जा सकेगी। रेडियोथेरेपी विभाग के प्रोफेसर डॉ. सुधीर सिंह ने बताया कि कैंसर के मरीजों में सर्जरी और कीमोथेरेपी के साथ ही रेडियोथेरेपी का बड़ा रोल होता है।

रेडियोथेरेपी देने में मुख्य रूप से सबसे बड़ी चुनौती कैंसरग्रस्त हिस्से में ज्यादा से ज्यादा रेडिएशन देने की होती है। इसमें कैंसरग्रस्त हिस्से के अलावा शरीर के अन्य भाग को नुकसान पहुंचने की आशंका रहती है।

इसे ध्यान में रखते हुए रेडिएशन की सटीक खुराक देने के लिए लगातार नवाचार हो रहे हैं। इसी के तहत सबसे पहले कोबाल्ट मशीन आई। इस मशीन के जबड़े वर्ग या आयत के रूप में खुलते थे। इसीलिए रेडिएशन भी इसी आकार में दिया जा सकता था।

समस्या यह थी कि कैंसर तो इस आकार में होता नहीं है। इससे कैंसरग्रस्त हिस्से को कम रेडिएशन तथा अन्य हिस्से को नुकसान पहुंचने की आशंका रहती थी। इसे देखते हुए लीनियर एक्सीलरेटर मशीन से रेडिएशन को कैंसर के अनुरूप कर दिया गया, लेकिन इसमें भी यह संकट था कि सांस लेने के दौरान मरीज के विभिन्न अंग हिलते-डुलते हैं।

इससे रेडियोथेरेपी की सही खुराक देना संभव नहीं हुआ। ऐसे में एआई आधारित रेडिएशन देने पर विचार हुआ। प्रो. तीर्थराज वर्मा के मुख्य मार्गदर्शन में प्रो. सुधीर सिंह, डॉ. मृणालिनी वर्मा के सह मार्गदर्शन में श्रीराम राजुरकर ने वरिष्ठ पीएचडी स्कॉलर के रूप में आर्टिफिशियल इंटलिजेंस की मदद से यह उपकरण तैयार किया गया है। यह प्रोजेक्ट इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च से वित्तपोषित है।

ऐसे काम करता है उपकरण
इस उपकरण में रोगी के सांस लेने का पैटर्न लेजर का प्रयोग करते हुए रिकॉर्ड कर लिया जाता है। इसी के आधार पर रेडिएशन दिया जाता है। फिलहाल स्तन कैंसर के रोगियों में इसका प्रयोग किया जा रहा है। सांस के इस पैटर्न का अध्ययन कर यह पता लगाया जाता है कि किस अवस्था में फेंफड़ों और हृदय को कम से कम रेडिएशन देते हुए कैंसर चिकित्सा दी जा सकती है।

मलेशिया में मिला सम्मान
इस काम को पेनांग मलेशिया में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में प्रस्तुत किया गया। इसके लिए श्रीराम राजुरकर को विशेष पुरस्कार दिया गया। भारत से यह पुरस्कार प्राप्त करने वाले राजुरकर अकेले प्रतिभागी रहे। कुलपति प्रो. सोनिया नित्यानंद ने पूरी टीम को इसके लिए बधाई दी है।