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यूरोप में लगातार होने वाली गैस सप्‍लाई में कटौती कर रहा रूस..

यूरोप आने वाले दिनों को लेकर काफी चिंतित है। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि रूस लगातार यूरोप को होने वाली गैस सप्‍लाई में कटौती कर रहा है। जुलाई में नार्ड स्‍ट्रीम पाइपलाइन की मरम्‍मत के नाम पर करीब दो सप्‍ताह तक यूरोप को गैस की सप्‍लाई रोक दी गई थी। इससे यूरोप को जबरदस्‍त परेशानी का सामना करना पड़ा था। यूरोप की बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था जर्मनी के विकास का पहिया तो इसी गैस की सप्‍लाई पर घूमता है। रूस से गैस की सप्‍लाई बाधित होने पर जर्मनी के अलावा, फ्रांस, इटली, बुल्‍गारिया, नीदरलैंड समेत सभी देशों में परेशानी हुई थी। अब भी ये साफ नहीं है कि सर्दियों में यूरोप को रूस से पहले की तरह गैस की सप्‍लाई होगी भी या नहीं। जानकार इस बात को नजरअंदाज नहीं कर रहे हैं कि गैस के जरिए रूस यूरोप पर पश्चिमी देशों के लगाए प्रतिबंधों को खत्‍म करने का दबाव बना रहा है। वहीं जानकार ये भी मान रहे हैं कि दीर्घकाल में रूस का ये दांव उलटा भी पड़ सकता है।

जवाहरलाल नेहरू के प्रोफेसर एचएस भास्‍कर का कहना है कि जब से रूस ने यूक्रेन पर युद्ध थोपा है, तब से ही यूरोप में रूस की गैस सप्‍लाई भी बाधित हुई है। पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगे प्रतिबंधों ने इस सप्‍लाई को और कम किया है। इससे यूरोप के सामने ऊर्जा की समस्‍या तो पैदा हुई है, लेकिन साथ ही वो ये भी सोचने को मजबूर हुए हैं कि ऐसे हालातों का सामना करने के लिए उनके पास अपने विकल्‍प होने भी जरूरी हैं। जुलाई में रूस ने यूरोप को होने वाली गैस सप्‍लाई दो सप्‍ताह से अधिक समय के लिए रोक दी थी। इससे सभी यूरोपीय देशों में परेशानी बढ़ गई थी। लेकिन, इससे कुछ छोटे देशों ने सबक भी लिया है। यूरोप को गैस सप्‍लाई करने वाली कंपनी गजप्रोम ने कहा है कि मेंटेनेंस के चलते 31 अगस्‍त से 2 सितंबर तक गैस की सप्‍लाई पूरी तरह से बंद रहेगी।

ऐसे में यूरोप के कई देशों को लगने लगा है कि ऐसे हालातों में उनके पास दो ही विकल्‍प हैं। पहला ये कि वो रूस के आगे घुटने टेक दें और जैसा वो चाहता है वैसा होने दें। दूसरा विकल्‍प है कि वो अपना रास्‍ता खुद तलाश लें। यूरोप के छोटे देश अब दूसरे विकल्‍प तलाशकर उन पर काम शुरू कर चुके हैं। लात्विया, बुल्‍गारिया, नीदरलैंड और पोलैंड ने विकल्‍प के तौर पर अपने यहां पर गर्म पानी की सप्‍लाई के लिए बायलर लगाए हैं, जिससे लोगों को इसकी सप्‍लाई की जा सके। यहां के लोगों का मानना है कि ये रूस की गैस से कहीं अधिक सस्‍ता और आसान विकल्‍प है।

आपको बता दें कि रूस की गैस से जहां यूरोप के विकास का पहिया चलता है वहीं रूस की भी आर्थिक मजबूती का ये एक बड़ा जरिया है। आपको बता दें कि रूस की गैस की सबसे अधिक खपत जर्मनी, जो यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था है, में होती है। वहीं रूस की गैस का सबसे बड़ा ग्राहक भी है। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के मुताबिक वर्ष 2020 में रूस ने जर्मनी को करीब 42.6 अरब क्‍यूबिक मीटर गैस सप्‍लाई की थी। इसके बाद इटली में 29.2 अरब क्‍यूबिक मीटर, बेलारूस में 18.8 अरब क्‍यूबिक मीटर, तुर्की में 16.2 अरब क्‍यूबिक मीटर, नीदरलैंड में 15.7 अरब क्‍यूबिक मीटर, हंगरी में 11.6 अरब क्‍यूबिक मीटर, कजाखस्‍तान में 10.2 अरब क्‍यूबिक मीटर, पोलैंड में 9.6 अरब क्‍यूबिक मीटर, चीन में 9.2 अरब क्‍यूबिक मीटर, और जापान में 8.8 अरब क्‍यूबिक मीटर गैस की सप्‍लाई की थी। इस गैस सप्‍लाई से उसने अरबों डालर हासिल किए थे।

पश्चिमी देशों के रूस पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद रूस ने गैस की सप्‍लाई में दो तिहाई से अधिक की कमी की है। दीर्घकाल में रूस का यूरोप के प्रति गैस सप्‍लाई को लेकर ऐसा ही रुख रहा तो अधिकतर छोटे यूरोपीय देश अपना विकल्‍प खुद तलाश लेंगे। आपको बता दें कि यूरोप में घरों और आफिसों आदि को गर्म रखने के मकसद से रूस की गैस की खपत अधिक होती है। जर्मनी की पूरी अर्थव्‍यवस्‍था ही रूस की गैस पर टिकी हुई है। ऐसा नहीं है कि यूरोप को होने वाली रूस की गैस सप्‍लाई पर अभी संकट पैदा हुआ है। ये संकट काफी समय से चलता आ रहा है। रूस को इस बात का विश्‍वास है कि यूरोप उसकी गैस के बिना चल नहीं सकता है। यही वजह है कि वो यूरोप को गैस के नाम पर ब्‍लैकमेल कर रहा है।

प्रोफेसर भास्‍कर के मुताबिक जिस तरह से छोटे देश अपने विकल्‍प तलाशने में लगे हैं उसी तरह से यदि दूसरे देश भी इसी राह पर आगे बढ़ निकले तो दीर्घकाल में ये रूस के लिए परेशानी का सबब बन जाएगा। इस स्थिति में रूस को केवल गैस निर्यात से होने वाली कमाई का ही नुकसान नहीं होगा बल्कि उसने जो अरबों डालर का निवेश इस सप्‍लाई के लिए किया है उसका भी नुकसान उसको झेलना होगा। इस राह में उसको सबसे बड़ा झटका जर्मनी और फ्रांस भी दे सकते हैं। रूस से गैस की सप्‍लाई बाधित होन के बाद यूरोपीय संघ पहले ही इसकी खपत में कमी करने की अपील कर चुका है। ईयू की ये अपील अब काम भी कर रही है। यूरोप में गैस की सप्‍लाई के साथ उसकी खपत भी कम हुई है।

यूरोप के लोग इस बात को समझने लगे हैं कि यदि वो गैस की कम खपत कर इसको बचाने में कामयाब हो जाएंगे तो ये सर्दियों में उनके लिए अधिक उपयोगी साबित होगी। प्रोफेसर भास्‍कर की मानें तो रूस का रवैया नहीं बदला तो कुछ वर्षों में यूरोप में ये बदलाव आने तय हैं। यूरोप के दम पर अपनी अर्थव्‍यवस्‍था को मजबूती देने वाले रूस के लिए ये झटका कहीं अधिक होगा। भविष्‍य में यदि यूरोपीय संघ इस राह पर आगे बढ़ता है तो यूरोप में रूस की गैस के ग्राहकों की संख्‍या न के ही बराबर होगी। चीन और तुर्की उसको वो मुनाफा नहीं दे सकेंगे जो यूरोपीय संघ से उसको मिलता है।