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भारत में आज वंचित समुदाय के प्रतिनिधि सर्वोच्च पदों पर आसीन

धार्मिक अहिष्णुता, भेदभाव और सामाजिक न्याय को लेकर अक्सर भारत को घेरने वाले पश्चिम को प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई ने आईना दिखाया है। उन्होंने कहा कि डॉ. बीआर आंबेडकर के सभी वर्गों के लिए समानता, स्वतंत्रता, न्याय एवं भाईचारे के दृष्टिकोण के अनुरूप भारत में आज वंचित समुदाय के प्रतिनिधि कुछ सर्वोच्च संवैधानिक पदों पर आसीन हैं।

डॉ. आंबेडकर की विरासत को रेखांकित किया

भारतीय संविधान के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में लंदन के ऐतिहासिक ग्रेज-इन में अपने विशेष व्याख्यान में गुरुवार शाम जस्टिस गवई ने संविधान के मुख्य वास्तुकार के तौर पर सामाजिक न्याय सुधारक डॉ. आंबेडकर की विरासत को रेखांकित किया। ग्रेज-इन में ही एक शताब्दी पूर्व डॉ. आंबेडकर ने इंग्लैंड में बैरिस्टर के रूप में पात्रता हासिल की थी।

जस्टिस गवई ने कहा कि आधुनिक इतिहास के सबसे महान लोगों में से एक की विरासत पर बात करना उनके लिए भावनात्मक क्षण है, जिनका उनके अपने करियर पर भी गहरा प्रभाव है।

डॉ. आंबेडकर को किया याद

जस्टिस गवई ने कहा, ‘इस ऐतिहासिक संस्थान में खड़े होकर मुझे डॉ. आंबेडकर की विरासत की याद आती है जो न सिर्फ कानूनी क्षेत्र में है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के ताने-बाने में भी है।

‘उन्होंने कहा, ‘मेरा जन्म डा. आंबेडकर के दिवंगत होने के चार वर्ष बाद 1960 में हुआ था। मैं भारत के नागरिक के रूप में पैदा हुआ था, न कि अछूत के रूप में। डॉ. आंबेडकर की उपस्थिति मेरे घर में हमेशा महसूस की जाती थी। छोटी उम्र से ही मैं उनके साहस, बुद्धिमता, समानता के लिए उनके अथक प्रयासों की कहानियां सुनता था। वे कहानियां मेरे मूल्यों, दृष्टिकोण और उद्देश्य का हिस्सा बन गईं।’

प्रत्येक नागरिक को संवैधानिक संरक्षण का पूरा लाभ मिले

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ”डॉ. आंबेडकर का समाज के लिए दृष्टिकोण, जहां प्रत्येक नागरिक को संवैधानिक संरक्षण का पूरा लाभ मिले; न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका के जरिये लगातार साकार हो रहा है।

”उन्होंने कहा, ”यह गर्व की बात है कि देश ने पिछले 75 वर्षों में दो महिला राष्ट्रपतियों को देखा है और अब देश में एक महिला राष्ट्रपति (द्रौपदी मुर्मु) हैं, जो आदिवासी समाज के सबसे हाशिए पर पड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व करती हैं। मुझे यह कहते हुए भी गर्व होता है कि भारत के पास एक प्रधान न्यायाधीश है, जो हाशिए पर पड़े वर्गों से आता है।

”जस्टिस गवई ने भारत के संविधान में निहित कुछ प्रगतिशील पहलुओं पर प्रकाश डाला, जिसमें न्यायपूर्ण और समावेशी समाज के लिए मौलिक अधिकार और निर्देशक सिद्धांत शामिल हैं।

डॉ. आंबेडकर बेहद दूरदर्शी थे

उन्होंने कहा, ‘इस जीवंत और प्रगतिशील दस्तावेज के 75 वर्ष पूरे होने पर मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि यह डॉ. आंबेडकर की दूरदर्शिता और दृष्टिकोण ही था जिसने संविधान को समय की कसौटी पर खरा उतरने में सक्षम बनाया।” गौरतलब है कि ग्रेज-इन लंदन के चार प्रतिष्ठित इन्स आफ कोर्ट या बैरिस्टरों एवं न्यायाधीशों के लिए व्यावसायिक संघों में से एक है।