पिठोरी अमावस्या भाद्रपद माह की अमावस्या को मनाई जाती है। संतान की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए माताएं इस दिन व्रत रखती हैं। इस दिन पितरों का श्राद्ध और दान का भी महत्व है। इस तिथि पर विधिपूर्वक पूजा करने और कथा सुनने से संतान को सुख-समृद्धि मिलती है।
भाद्रपद महीने की अमावस्या तिथि को पिठोरी अमावस्या के रूप में मनाया जाता है। यह दिन विशेष रूप से उन माताओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, जो अपनी संतान की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्रत रखती हैं। पिठोरी अमावस्या पर पितरों का श्राद्ध, तर्पण और स्नान-दान का भी विशेष महत्व होता है, तो आइए इस तिथि से जुड़ी सभी जरूरी बातें जानते हैं, जो इस प्रकार हैं।
पिठोरी अमावस्या का महत्व
पिठोरी अमावस्या का व्रत मुख्य रूप से संतान की सुरक्षा और समृद्धि के लिए रखा जाता है। इस दिन माताएं देवी दुर्गा के 64 योगिनियों और भगवान शिव की पूजा करती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से संतान को सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है और उनके जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
स्नान और दान का समय – सूर्योदय से लेकर दोपहर तक।
पूजा की विधि
सुबह स्नान के बाद, व्रत का संकल्प लें और मन में देवी दुर्गा और भगवान शिव का ध्यान करें।
पूजा के लिए एक वेदी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं।
दूर्वा, फूल, रोली, चंदन, अक्षत अर्पित करें और दीपक जलाएं।
इस दिन आटे से बनी पिठोरी माता की मूर्ति की पूजा विधिपूर्वक करें।
पिठोरी अमावस्या की कथा पढ़ें या सुनें।
इसके बाद देवी की आरती करें।
फल और मिष्ठान का भोग लगाएं।
पूजा के बाद, यह भोग बच्चों को प्रसाद के रूप में दें।
इस दिन तामसिक चीजों से दूर रहें।
पिठोरी अमावस्या पूजा मंत्र
ऊं पितृभ्यः स्वधायिभ्यः स्वाहा।।
ऊं तत्पुरुषाय विद्महे, महामृत्युंजय धीमहि, तन्नो पितृ प्रचोदयात्।।
ऊं देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च, नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:।।