कानपुर में पनकी पावर प्लांट में पहले दिन 58 मेगावाट बिजली का उत्पादन हुआ, जिसे नेशनल ग्रिड पर भेजा गया। सोमवार देर शाम से शुरू हुई उत्पादन की प्रक्रिया मंगलवार की सुबह 4:11 बजे पूरी हो गई। अब एक महीने तक कोल हैंडलिंग और एश हैंडलिंग प्लांट की टेस्टिंग होगी, जबकि अक्तूबर की शुरूआत तक प्लांट पूरी क्षमता से चलने लगेगा।
पनकी में 660 मेगावाट क्षमता का पावर प्लांट तैयार किया गया है। यहां मार्च में बड़े और छोटे बॉयलर को लाइटअप (लाइट डीजल ऑयल को जलाया गया) किया गया था। इसके बाद ऑयल सिंक्रोनाइजेशन (तेल जलाकर बिजली पैदा करना) की तैयारी हुई, लेकिन किसी कारण पूरा नहीं हो सकी। सोमवार देर शाम ऑयल सिंक्रोनाइजेशन की प्रक्रिया चालू हुई और सुबह 4:11 बजे तक जारी रही।
बिजली बनते ही अधिकारियों और स्टाफ के बीच खुशी का ठिकाना नहीं रहा। अब कोल फायरिंग (कोयला जलाकर बिजली बनाना) की जाएगी। प्लांट की पूरी प्रक्रिया डिजिटल तरीके से कार्य करेगी। इसके हर फंक्शन को कंट्रोल रूम से देखा जा सकेगा। कहां पर कौन सा उपकरण किस तरह से कार्य कर रहा है, इसका पता चल जाएगा।
बटन दबाकर प्लांट को चालू किया
कंट्रोल रूम में बैठे स्टाफ मॉनीटर की मदद से उसको संचालित कर सकेंगे। इससे पहले प्लांट के सीजीएम जीके मिश्रा ने प्लांट का बटन दबाकर उसे चालू किया था। प्रबंध निदेशक रणवीर प्रसाद, बीएचईएल के नवीन सक्सेना, वीरेंद्र सिंह, केके समेले, अजय द्विवेदी, मनोज चौधरी, पुनीत शर्मा आदि मौजूद रहे।
20 दिन में तैयार होगी कनवेयर बेल्ट
प्लांट में रेलवे की लाइन पहले ही पड़ गई थी, जबकि पिछले महीने कोयले की रैक लाने वाला इंजन भी आ गया था। अभी यहां पर रैक से कोयले को उतारने वाली कनवेयर बेल्ट को तैयार किया जा रहा है। अधिकारियों के मुताबिक यह 18 से 20 दिन में बन जाएगा।
एयरोप्लेन की तकनीक पर चलता टरबाइन
सीजीएम जीके मिश्रा ने बताया कि प्लांट में सबसे महत्वपूर्ण टरबाइन, जेनरेटर और बॉयलर रहता है। ये तीनों अत्याधुनिक तकनीक पर आधारित हैं। टरबाइन एयरोप्लेन की तकनीक पर कार्य करता है। पहले दिन इसको 3000 आरपीएम की क्षमता से चलाया गया।